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जब बच्चों की शरारत पर भारी पड़ी ‘तेल-शक्कर’ वाली चतुराई!

विंटर पार्क, फ्लोरिडा में एक पेड़ ने अपार्टमेंट की खिड़की को ढक लिया है, 90 के दशक की यादें ताजा करता हुआ।
यह सिनेमाई छवि मेरी विंटर पार्क की 90 के दशक की अपार्टमेंट की भावना को दर्शाती है, जहाँ एक विशाल पेड़ ने मेरी दृष्टि को बाधित किया, और अनोखी रोमांच की यादें ताजा की। जानिए कैसे वो पेड़ शरारत और यादों का बैकड्रॉप बना!

कहते हैं, हर इमारत की खिड़की के पीछे एक कहानी छुपी होती है। लेकिन अगर आपकी खिड़की के बाहर कोई पेड़ हो, और उस पर पड़ोस के बच्चे चढ़कर झाँकने लगें—तो यह कहानी थोड़ी मसालेदार हो जाती है! आज हम आपको 90 के दशक की एक ऐसी मजेदार घटना सुनाने जा रहे हैं, जिसमें एक छात्रा ने बच्चों की शैतानी का ऐसा इलाज किया, जो शायद आपके चेहरे पर भी मुस्कान ला देगा।

‘शरारती’ खिड़की के पीछे की कहानी

हमारे देश में भी अकसर देखा जाता है कि मोहल्ले के बच्चे अपनी जिज्ञासा के चलते किसी की छत, दीवार या पेड़ पर चढ़ जाते हैं। ऐसी ही परेशानी का सामना फ्लोरिडा के विंटर पार्क में पढ़ाई करने गई एक छात्रा को करना पड़ा। उसके अपार्टमेंट के ठीक पीछे एक घना पेड़ था, जो सूरज की तेज़ गर्मी से उसे राहत देता था और साथ ही उसकी प्राइवेसी की ‘गारंटी’ भी!

छात्रा इत्मीनान से अपने घर में आरामदायक कपड़ों में घूमती थी। एक दिन जब वह अपने दोस्त के साथ थी, अचानक बच्चों की हँसी-ठिठोली सुनाई दी। देखा तो वही पड़ोस के बच्चे पेड़ पर चढ़कर उसकी खिड़की से झांक रहे थे! ज़रा सोचिए, आपकी ही प्राइवेट जगह में कोई इस तरह घुसपैठ कर दे तो गुस्सा आना तो स्वाभाविक है।

प्रबंधन की बेफिक्री और छात्रा का नया ‘जुगाड़’

छात्रा ने तुरंत अपार्टमेंट ऑफिस में शिकायत की, पर वहाँ भी जवाब कुछ ऐसा मिला—“बच्चों के खेलने के लिए कोई पार्क नहीं, हम कुछ नहीं कर सकते।” अब ज़रा हमारे यहाँ भी सोचिए, कितनी बार आपने सुना होगा—“अरे बच्चे हैं, खेलने दो!” लेकिन भैया, प्राइवेसी तो प्राइवेसी है!

जब बच्चों की शरारतें फिर दोहराई गईं, तो छात्रा के दिमाग में बिजली सी कौंधी। उसने सब्जी का तेल, डिशवॉशिंग ग्लव्स, शहद और चीनी खरीदी। अपने लंबे दोस्त की मदद से रात के अंधेरे में पेड़ के तने और जितनी ऊपर तक पहुँच सके, वहाँ तक खूब तेल पोत दिया। पेड़ के नीचे शहद और चीनी फैला दी—ताकि अगली सुबह वहाँ आग-बबूला चींटियों की फौज भी तैनात रहे!

‘मास्टरस्ट्रोक’ का असर और मोहल्ले की हलचल

अगले दिन के बाद क्या हुआ? छात्रा ने देखा कि बच्चों के झूठे-झूठे पैरों के निशान तो ज़मीन पर थे, लेकिन पेड़ की चिकनाई और चींटियों के डर ने उनकी चढ़ाई की सारी हिम्मत निकाल दी। अब कोई बच्चा पेड़ पर चढ़ने की हिम्मत न कर सका! पूरे अपार्टमेंट में ‘तेल-शक्कर’ वाली इस अनोखी तरकीब की चर्चा होने लगी।

रेडिट पर लोगों ने भी इस कहानी पर खूब मज़ेदार टिप्पणियाँ कीं। एक ने लिखा, “सोचो जब बच्चे घर जाकर चिपचिपे हाथ-पैर लिए अपनी माँ को दिखाएँगे, तो माँ का चेहरा देखने लायक होगा!” वहीं, खुद छात्रा ने भी जवाब दिया, “अब उनके माता-पिता शिकायत भी नहीं कर सकते, क्योंकि बच्चे खुद नियम तोड़ रहे थे।”

किसी ने तो मज़ाक में लिखा, “आपने तो चींटियों के लिए नया घर बना दिया!” तो एक और ने सलाह दी, “भारत में होते तो शायद ‘पिचकारी’ से पानी मार देते या फिर मिर्ची वाला तेल लगा देते!”

प्राइवेसी, जुगाड़ और ‘छोटी सी बदला’ – हमारी संस्कृति में

हमारे यहाँ भी ऐसे किस्से अनगिनत हैं—किसी ने छत पर निंबू-मिर्ची टाँग दी, किसी ने दीवार पर काँच के टुकड़े लगा दिए, तो किसी ने शैतान बच्चों को सबक सिखाने के लिए घर के दरवाजे पर कुत्ता बाँध दिया! यह कहानी भी उन्हीं देसी जुगाड़ों की याद दिलाती है—जहाँ बड़ी-बड़ी समस्याओं का हल कभी-कभी रसोई की चीज़ों से निकल आता है।

यहाँ एक पाठक का मज़ेदार कमेंट भी याद आता है—“हमारी मम्मी होती तो कहती, ‘बच्चों के चक्कर में पेड़ मत खराब करो, सीधे इनके घर वालों को बोल दो!’” लेकिन कभी-कभी ऐसे रचनात्मक ‘बदले’ ज़िंदगी के सबसे मजेदार किस्से बन जाते हैं।

निष्कर्ष: आपकी बारी—आप क्या करते?

तो दोस्तों, अगर आपके साथ भी कभी किसी पड़ोसी की शरारत या झाँकने की आदत से परेशान होना पड़े, तो कैसा जुगाड़ अपनाएँगे? क्या आप भी ऐसी अनोखी तरकीब सोच सकते हैं? या फिर सीधे-सीधे डाँट-फटकार ही लगा देते? हमें कमेंट में जरूर बताएँ!

इस कहानी से एक बात तो साफ है—चाहे अमेरिका हो या भारत, जुगाड़ और हल्के-फुल्के बदले हर जगह चलते हैं। और हाँ, अगली बार पेड़ के नीचे शहद-चीनी देखो, तो समझ जाइए—कहीं कोई अपनी प्राइवेसी की रखवाली कर रहा है!

आपके मोहल्ले की ऐसी मजेदार घटनाएँ भी हमारे साथ साझा करें—कौन जाने, अगली कहानी आपकी ही हो!


मूल रेडिट पोस्ट: Climb the tree so you can peek into my apartment???