जब फुटबॉल कोच की 'सुपर शाइनी' मेंबरशिप ने एयरलाइन स्टाफ को परेशान कर दिया!
कभी-कभी ज़िंदगी में कुछ ऐसे किरदार टकरा जाते हैं, जो अपने आप में पूरी फिल्म होते हैं। खासकर जब बात हो बच्चों की खेल टीमों की यात्राओं की, तो होटल या एयरलाइन स्टाफ के लिए वो मौसम किसी परीक्षा से कम नहीं होता। अगर आपने कभी रेलवे स्टेशन पर स्कूल टूर्नामेंट वाली टीमों का हुजूम देखा है, तो आप समझ सकते हैं कि कर्मचारियों के दिल की धड़कन कैसे बढ़ जाती है।
तो चलिए, आज आपको ले चलते हैं एयरपोर्ट के टिकट काउंटर की उस खिड़की पर, जहां एक फुटबॉल कोच अपनी 'सुपर शाइनी' मेंबरशिप की दम पर स्टाफ को घुमा रहा था, और कर्मचारी भी किसी बॉलीवुड के जुगाड़ू हीरो से कम नहीं था!
फुटबॉल कोच, भारी बैग और 'सुपर शाइनी' का जादू
कहानी के दो मुख्य किरदार हैं: एक हैं 'क्रैंकी कोच' (यानि गुस्सैल कोच साहब) और दूसरे हैं हमारे अपने 'योर ट्रूली' (यानि कहानीकार खुद)। कोच साहब टिकट काउंटर पर आते हैं, साथ में एक बच्चा और एक भारी-भरकम बैग। बैग को तौलने पर पता चलता है कि वजन लिमिट से 5 किलो ज्यादा है।
स्टाफ विनम्रता से कहते हैं, "सर, या तो सामान थोड़ा कम कर लीजिए या फिर एक्स्ट्रा चार्ज देना पड़ेगा।" अब कोच साहब कौन सा पीछे हटने वाले थे! बोले, "मैं तो सुपर शाइनी मेंबर हूँ, मुझे तो कोई चार्ज नहीं देना चाहिए।" स्टाफ ने कंप्यूटर में चेक किया – कहीं कोई मेंबरशिप का नामोनिशान नहीं! फिर भी, नियम बताते हैं की मेंबरशिप से सिर्फ बैग की फीस माफ होती है, ज्यादा वजन की नहीं।
बात बहस तक पहुंचती है, लेकिन आखिरकार कोच साहब बैग से सामान निकालकर वजन कम कर लेते हैं। स्टाफ मन ही मन सोचते हैं – 'आज तो मूड खराब नहीं करना, बैग की फीस छोड़ देता हूँ'।
'प्रायोरिटी टैग' का गुप्त रहस्य
जब बैग पर टैग लगाने की बारी आई, कोच साहब बोले, "प्रायोरिटी टैग भी लगाओ, मैं सुपर शाइनी मेंबर हूँ!" अब क्या करें, स्टाफ ने सोच लिया – 'भैया, टैग लगा दो, वैसे भी हमारे यहां प्रायोरिटी टैग का मतलब सिर्फ कागज की पट्टी है, असल में कोई खास फायदा नहीं।'
इसी बीच कोच साहब पांव पटकते हुए बोर्डिंग पास मांगते हैं, और जब देखता है कि पास पर 'Zone D' लिखा है – फिर से शुरू! "मुझे तो Zone A चाहिए, मैं सुपर शाइनी मेंबर हूँ।" स्टाफ ने कमाल की जुगाड़ू बुद्धि दिखाई – शार्पी से 'Zone D' काटा और 'Zone A' लिख दिया। खुद सोचिए, ये जुगाड़ सिर्फ हिंदुस्तानी ही कर सकते हैं – 'असली काम तो निकलवा लो, बाकी जो होगा देखा जाएगा!'
टीम स्पिरिट बनाम 'मैं सबसे बड़ा'
सबसे मजेदार बात – कोच साहब ने अपने बच्चे के लिए भी बोर्डिंग पास मांगा, जिसमें 'Zone E' लिखा था – यानि कोच साहब सबसे पहले और बच्चा सबसे आखिर में चढ़ेगा! लेकिन कोच साहब को कोई फर्क नहीं पड़ा। भारतीय पाठकों के लिए ये सीन वैसा ही है जैसे शादी में दूल्हे के साथ-साथ बाराती भी VIP ट्रीटमेंट मांगने लगें!
रेडिट पर एक यूज़र ने कमेंट किया – "ऐसा ही होता है जब कोई ग्राहक हर बार नियम तोड़कर फायदा निकाल लेता है, तो अगली बार ऐसे लोग और बढ़ जाते हैं।" ये बात हमारे यहां की दुकानों, रेलवे टिकट खिड़कियों या सरकारी दफ्तरों में भी खूब देखी जाती है – 'जुगाड़' के नाम पर नियमों की धज्जियां उड़ जाती हैं!
होटल और एयरलाइन स्टाफ की असली परीक्षा
रेडिट कम्युनिटी में एक और यूज़र ने लिखा, "ये फुटबॉल और हॉकी टीमें तो मेरे पूरे करियर में पीछा नहीं छोड़तीं – कभी होटल की वॉशरूम, कभी एयरलाइन की लाइन!" भारतीय संदर्भ में देखें, तो स्कूल या कॉलेज टूर्नामेंट के समय होटल, ट्रेन या बस स्टाफ की हालत भी कुछ ऐसी ही होती है – जैसे कोई बाढ़ आ गई हो!
एक मजेदार कमेंट था – "सॉकर खिलाड़ी अगर शरारत करें तो हल्का सा टच करते ही गिर पड़ते हैं, लेकिन हॉकी वाले हो गए तो पुलिस तक को निपटा देंगे!" सोचिए, हमारे यहां कबड्डी या अखाड़ा प्रतियोगिता वाले खिलाड़ी आ जाएं तो क्या हाल होगा!
कर्मचारियों की इज्जत, ग्राहकों की जिम्मेदारी
कहानी का सबसे बड़ा सबक ये है कि नियम सबके लिए बराबर हैं, और कर्मचारियों की इज्जत करना भी हमारी जिम्मेदारी है। एक यूज़र ने बड़ी खूबसूरती से कहा – "एक बुरा ग्राहक बदलना आसान है, एक अच्छा कर्मचारी खोना नहीं।" यही बात हमारे समाज में भी लागू होती है – अगर हम कर्मचारियों का सम्मान करें, तो सेवा खुद-ब-खुद बेहतर हो जाएगी।
निष्कर्ष – अगली बार थोड़ा मुस्कुराएं!
दोस्तों, अगली बार जब आप एयरपोर्ट, होटल, या किसी भी सार्वजनिक जगह पर जाएं, तो कर्मचारियों के लिए थोड़ा धैर्य, थोड़ी मुस्कान और थोड़ी इज्जत साथ लेकर जाएं। याद रखिए, नियम तोड़ने से केवल सिस्टम कमजोर होता है और जुगाड़ की आदत बढ़ती जाती है।
क्या आपके साथ भी कभी ऐसे 'सुपर शाइनी' ग्राहक या कोच टकराए हैं? अपनी मजेदार यादें और किस्से कमेंट में जरूर लिखिए, क्योंकि हर कहानी में छुपा होता है एक नया मज़ा!
मूल रेडिट पोस्ट: In which your humble narrator pisses off a youth soccer coach