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जब प्रमोशन का सपना टूटा: ऑफिस की राजनीति ने उड़ाए होश

होटल के सेटिंग में सहायक फ्रंट ऑफिस प्रबंधक के पदोन्नति प्रस्ताव के साथ अप्रत्याशित नियुक्ति बदलाव।
एक होटल के फ्रंट ऑफिस की वास्तविक चित्रण, जिसमें सहायक फ्रंट ऑफिस प्रबंधक के पदोन्नति के प्रस्ताव की खुशी और अनिश्चितता का पल कैद किया गया है, जो अप्रत्याशित नियुक्ति मोड़ का सामना कर रहा है।

कर्मचारी जीवन में सबसे बड़ी खुशी तब मिलती है जब आपकी मेहनत को पहचान मिलती है, और बॉस खुद आगे बढ़कर प्रमोशन ऑफर करता है। सोचिए, महीने-भर की भागदौड़, एक्स्ट्रा काम, सबका साथ—और फिर अचानक सारा सपना एक झटके में टूट जाए! आज की कहानी है एक ऐसे होटल कर्मचारी की, जिसने अपना सबकुछ झोंक दिया, लेकिन ऑफिस की राजनीति ने उसकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया।

प्रमोशन का झुनझुना और धोखे का स्वाद

हमारे नायक को उनके फ्रंट ऑफिस डायरेक्टर ने कई बार 'असिस्टेंट फ्रंट ऑफिस मैनेजर' (AFOM) बनने का ऑफर दिया। सहकर्मी भी पीछे पड़े थे—"अरे, तुम्हीं तो सब संभालते हो, अब मना मत करो!" भाई साहब ने आखिरकार हां कर दी, वो भी उस भरोसे पर कि बॉस की लीडरशिप अच्छी है, और अपने ही होटल में आगे बढ़ना है। एक और होटल का बढ़िया ऑफर भी ठुकरा दिया, सिर्फ इस वफादारी के लिए।

लेकिन किस्मत देखिए, अगले ही दिन ऑफिस में इंटरव्यू हो रहा था—नए AFOM के लिए! नायक को लगा, शायद फ्रंट डेस्क एजेंट के लिए है, लेकिन हकीकत सामने आई—नई मैडम पांच दिन में जॉइन करेंगी। बॉस ने ठंडेपन से कह दिया, "GM और डायरेक्टर ऑफ रूम्स बाहरी उम्मीदवार चाहते थे। मैं तो तुम्हारे हां के इंतजार में था।"

अब नायक वही पुराना काम कर रहा है—मैनेजर का भी, एजेंट का भी, लेकिन टाइटल और सैलरी दोनों गायब!

ऑफिस की राजनीति: "ऊपर से आदेश आया था…"

हमारे देश में भी "ऊपर से आदेश आया था" एक बहाना नहीं, बल्कि एक परंपरा है। चाहे स्कूल के एडमिशन हों या सरकारी दफ्तर में ट्रांसफर, हर जगह यही सुना जाता है। यहां भी डायरेक्टर ने सारी जिम्मेदारी GM और डायरेक्टर ऑफ रूम्स पर डाल दी—"उन्हें एक्सटर्नल चाहिए था।"

रेडिट के एक यूज़र ने लिखा, "मैं ऐसे ऑफिस में एक पल नहीं रुकता। नौकरी ढूंढना शुरू करो, लेकिन तब तक काम करो—बस उतना ही जितना तुम्हारे जॉब डिस्क्रिप्शन में है।" यानी, जितनी दाल में नमक, उतना ही डालो; फ्री में बिरयानी मत बनाओ!

"मैनेजर का काम, टाइटल का नाम-ओ-निशान नहीं!"

हमारे यहां कहावत है—"ऊपर से फिट, अंदर से हिट!" बहुत से लोग ऑफिस में मैनेजर का काम करते हैं, लेकिन टाइटल और सैलरी मिलती है 'कर्मचारी' वाली। एक कमेंट में सलाह दी गई—"अब से मैनेजर का कोई काम मत करो, न ओवरटाइम, न एक्स्ट्रा हेल्प। नई मैनेजर की मदद भी मत करना। दूसरी नौकरी की तलाश शुरू कर दो।"

एक और यूज़र की बात बड़ी दिलचस्प थी—"अगर तुम हाय-हाय में मैनेजर को ट्रेन कर रहे हो, जिसे वो पोस्ट मिली जो तुम्हें मिलनी थी, तो समझ लो कि तुम्हारे साथ बड़ा खेल हो गया है।" भाई, यहां तो 'गोलगप्पा खिलाया, पानी किसी और ने पिया' वाली स्थिति हो गई!

सहकर्मी, स्वाभिमान और अगला कदम

हमारे नायक की कहानी हर उस व्यक्ति की है, जिसने वफादारी और मेहनत से अपने ऑफिस को घर समझ लिया। लेकिन जब सम्मान न मिले, तो दिल दुखता ही है। एक कमेंट में किसी ने कहा—"तुम्हें कभी भी इस अपमान का मलाल जाता नहीं, लेकिन तुम्हारा मेहनती स्वभाव तुम्हें गर्व देता रहेगा।"

फिर भी, एकदम भावुक होकर इस्तीफा देना भी ठीक नहीं। किसी ने सलाह दी—"पहले दूसरी नौकरी पक्की करो, फिर दो हफ्ते का नोटिस दो। बिना नई नौकरी के अचानक छोड़ना नुकसानदायक हो सकता है।"

हमारे यहां भी यही सीख है—"नया घर मिलने से पहले किराए का कमरा खाली मत करो!"

निष्कर्ष: क्या आप होते तो क्या करते?

इस कहानी ने ऑफिस की राजनीति, वफादारी और खुद्दारी का बेहतरीन उदाहरण पेश किया। अगर आपके साथ ऐसा हो, तो क्या आप भी बस चुपचाप सब देखेंगे, या अपने हक के लिए आवाज़ उठाएंगे? क्या एक्स्ट्रा मेहनत वाकई में प्रमोशन दिलवाती है, या फिर 'ऊपर वालों' की मर्जी ही सब कुछ है?

नीचे कमेंट में बताइए—क्या आपने भी कभी ऑफिस में ऐसा धोखा झेला है? आपके पास क्या सलाह है हमारे नायक के लिए? और हां, अगली बार जब बॉस प्रमोशन का वादा करे, तो दो बार सोचिएगा—"कहीं ये सिर्फ़ दाल में नमक ज्यादा तो नहीं?"

आखिर में, याद रखिए—अपनी कीमत जानिए, और जहां इज्जत ना मिले, वहां वक्त और हुनर दोनों बचाइए!


मूल रेडिट पोस्ट: Offered AFOM position then suddenly hired another person