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जब 'प्रिंटर चालू किया है?' पूछने पर भी चमत्कार नहीं हुआ

1990 के दशक के विनिर्माण वातावरण में सॉफ़्टवेयर समस्याओं का समाधान करते हुए फैक्ट्री ऑटोमेशन तकनीशियन।
1990 के प्रारंभ में एक फैक्ट्री ऑटोमेशन तकनीशियन की यथार्थवादी छवि, जो सॉफ़्टवेयर स्टार्टअप विफलता से जूझ रहा है। यह दृश्य उत्पादन लाइनों को सुचारु बनाए रखने की चुनौतियों और तात्कालिकता को दर्शाता है।

कहते हैं, भारत में अगर पंखा बंद हो जाए तो सबसे पहले स्विच देखो, फिर फ्यूज, फिर बिजली विभाग को फोन करो। कुछ ऐसा ही किस्सा तकनीकी सपोर्ट की दुनिया में भी है, बस फर्क इतना है कि यहाँ 'इज्जत' का सवाल हो जाता है! आज हम एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें सिर्फ एक बटन न दबाने की वजह से कंपनी के हजारों रुपये और घंटों बर्बाद हो गए।

फैक्ट्री का फसीना: एक सॉफ्टवेयर, एक संदेश और एक 'मशहूर' ऑपरेटर

सन् 1990 के शुरुआती साल। फैक्ट्री में मशीनें गरज रही थीं, सायरन बज रहे थे, और उसी शोर के बीच एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को फोन आता है—"भैया, आपकी मशीन का सॉफ्टवेयर चालू ही नहीं हो रहा!" अब भारत में ऐसे फोन रोज़ आते हैं, लेकिन वहाँ अमेरिका की फैक्ट्री थी, तो बात कुछ अलग ही थी।

हमारे नायक (सॉफ्टवेयर सर्विस इंजीनियर) ने पूछा, "प्रिंटर चालू है?" सामने से जवाब आया, "क्या आपको लगता है मैं कोई बेवकूफ हूँ? सब देख लिया है, अब आप खुद आकर ठीक कीजिए!" अब भैया, ग्राहक भगवान होता है, तो इंजीनियर साहब पूरा सामान गाड़ी में भरकर, दो घंटे की यात्रा करके फैक्ट्री पहुंचे।

जुगाड़ू समाधान की जगह 'सीधा' इलाज

जैसे ही फैक्ट्री पहुँचे, कानों में रुई ठूंसकर मशीन ऑपरेटर के पास पहुँचे। स्क्रीन पर बड़ा सा लाल संदेश चमक रहा था—"सॉफ्टवेयर लाइसेंसिंग की नहीं मिली, कृपया प्रिंटर चालू करें।" अब क्या था, बिना कोई जादू-मंतर किए, ऑपरेटर साहब के सामने प्रिंटर का दरवाजा खोला, स्विच ऑन किया, हरी बत्ती जली, सॉफ्टवेयर फिर से चालू किया, और लो, काम बन गया!

ऑपरेटर ने बड़ी मासूमियत से "ऊप्स" वाला इशारा किया और फिर शर्माते हुए अंगूठा दिखाया। वही भारतीय दफ्तरों में होता है न—"ओह, मुझे लगा वह बटन दबाया था..."

तकनीकी ज्ञान बनाम 'इज्जत' का सवाल

इंजीनियर साहब तो निकल लिए, लेकिन कमेंट सेक्शन में एक पाठक की बात बहुत गहरी लगी—"क्या आपने कंपनी से ट्रैवल चार्ज वसूला?" जवाब मिला—"जी हाँ, ट्रैवल टाइम, एक घंटे का ऑन-साइट चार्ज...कुल मिलाकर सैकड़ों डॉलर का बिल बना, और जब फैक्ट्री सुपरवाइज़र को पूरी रिपोर्ट भेजी, तुरंत पेमेंट हो गई!"

एक और कमेंट ने तो तंज कसते हुए कहा, "वो एक बटन न दबाने वाले को कंपनी ने सैकड़ों डॉलर का खर्चा करा दिया!" सोचिए, हमारे यहाँ तो पान की दुकान से लेकर सरकारी दफ्तर तक, ऐसे 'बटन' रोज़ दबाए या मिस किए जाते हैं, पर वहाँ ये मज़ाक महँगा पड़ सकता है।

अंत भला तो सब भला? नहीं… अभी भी ट्विस्ट बाकी है!

कहानी में असली ट्विस्ट तब आया जब इंजीनियर साहब बाहर आकर अपनी वैन के पास पहुँचे, तो देखा—चाबी अंदर लॉक हो गई! चार घंटे की मेहनत के बाद अब दो घंटे और वेटिंग! एक पाठक ने तो यहाँ तक लिखा—"क्या आपने वैन की चाबी देखी है?" इस पर बाकी सब हँसते रहे, जैसे हमारे यहाँ कोई कह दे, "कुंडी तो बाहर से लगी है!"

एक और पाठक ने अपनी कहानी सुनाई—"भाई, हमारे यहाँ भी एक बार केबल न लगी होने पर चार घंटे सफर करके केबल लगाई और लौट आए।" सच कहें तो, चाहे अमेरिका हो या भारत, तकनीकी सपोर्ट वाले सबकी कहानी एक जैसी है—'छोटी सी गलती, बड़ी मुसीबत'।

सीख: छोटा सवाल, बड़ी बचत!

इस पूरी कहानी से हमें क्या सीख मिलती है? भाई, तकनीकी लाइन में "क्या आपने स्विच दबाया?" पूछना कोई बेइज्जती नहीं है, बल्कि खुद की इज्जत बचाने का तरीका है! एक पाठक ने बढ़िया टिप दी—"अगर कोई पावर या केबल की गलती दिखे, तो तीन बार सबको चेक करवाओ, फोटो मँगवाओ, फिर इंजीनियर भेजो।"

पर एक कमेंट ने असली भारतीय दफ्तरों की पोल खोल दी—"मैनेजर साहब तो एसी रूम में बैठकर कॉल करते हैं, असली दिक्कत कहाँ है देखने खुद जाएंगे नहीं!" यही हाल अपने यहाँ भी है—बॉस साहब सिर्फ फोन करते हैं, ग्राउंड स्टाफ ही पसीना बहाता है।

निष्कर्ष: अपनी गलती से सीखो, दूसरों की मज़ाक में हँसो

तो दोस्तों, अगली बार जब कोई कंप्यूटर, मशीन या टीवी न चले, सबसे पहले स्विच और प्लग देख लें। क्या पता, आपकी भी कहानी कभी Reddit पर वायरल हो जाए! और हाँ, इंजीनियर साहब की तरह चाबी वैन में न छोड़ें, वरना दोस्त-यार सालों तक मज़ाक बनाते रहेंगे—"भैया, चाबी तो नहीं भूल गए?"

आपके ऑफिस या घर में भी कभी ऐसी कोई मज़ेदार तकनीकी गलती हुई है? कमेंट में जरूर बताइए, हो सकता है अगला किस्सा आपके नाम से सुनाएँ!


मूल रेडिट पोस्ट: When 'have you tried turning it on?' doesn't work