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जब पड़ोसी ने बाइक ब्लॉक की, तो इंटरकॉम ने बजाया बदला!

पोर्टो के प्रवेश द्वार में पड़ोसी ने मेरी बाइक को रोका, पीछे पुराने स्पीकर हैं, तनावपूर्ण क्षण को दर्शाते हुए।
इस फोटो यथार्थवादी छवि में, मेरे पोर्टो भवन का तंग प्रवेश द्वार मेरे पड़ोसी के साथ तनाव को उजागर करता है, जो मेरी बाइक को रोकते हुए अपने विशाल पुराने स्पीकर को दिखा रहा है। जानें कि मैंने हमारे छोटे टकराव में आवाज़ को कैसे बढ़ाने का निर्णय लिया!

शहरों में पड़ोसी तो जैसे किस्मत के साथ आते हैं—कोई गप्पू, कोई चुपचाप, कोई हर समय टांग अड़ाने वाला। अब सोचिए, आप अपनी साइकिल रोज़ाना उसी पुराने बिल्डिंग के गेट के पास रखते हैं, जहां हर किसी की चीज़ें सालों से रखी होती हैं। लेकिन एक दिन नया पड़ोसी आता है, और उसकी मोटरसाइकिल आपके रास्ते में दीवार बन जाती है!

क्या हो अगर वो पड़ोसी न तो समझाना माने, न ही आपकी परेशानी समझे? जनाब, असली मज़ा तो तब आता है जब 'बदला' भी थोड़ी खुराफाती स्टाइल में लिया जाए—बिल्कुल मसाला बॉलीवुड फिल्म की तरह!

नयी पड़ोसी, नयी मुसीबत – “मोटरसाइकिल महाराज” की एंट्री

हमारे कहानी के नायक (जो पेशे से अनुवादक हैं और घर से काम करते हैं) एक पुराने पुर्तगाली इमारत में रहते हैं। वहां का ग्राउंड फ्लोर गेट छोटा सा है—बस दो मीटर में सबकी साइकिलें और कबाड़ जैसे ज़रूरी-गैरज़रूरी सामान ठुंसे पड़े रहते हैं। दो साल से उनकी साइकिल का वहीं ठिकाना है, और सबको पता भी है।

तभी तीसरी मंज़िल पर नया किराएदार आता है। जनाब के पास है एक बड़ी, चमचमाती, पुरानी स्टाइल की मोटरसाइकिल—जैसे पुरानी हिंदी फिल्मों में हीरो के पास होती थी। ऊपर से उसपर महंगी तिरपाल, रोज़ाना पालिश, और इतनी देखभाल कि जैसे कोई बेशकीमती चीज़ हो!

लेकिन दिक्कत ये कि महाराज अपनी मोटरसाइकिल ठीक-ठीक साइकिल के सामने—पहिए से पहिए सटा कर—खड़ी कर देते हैं। अब साइकिल निकालनी हो तो उसकी मोटरसाइकिल हटा कर ही निकालना पड़े। भाई साहब, समझाओ, नोट छोड़ो, सीधा बोलो—लेकिन जवाब वही, “अरे, जगह ही जगह है, घुमा लो साइकिल!” अब बताइए, दो मीटर में और क्या घुमाएं!

साइकिल की जंग से इंटरकॉम का शोर – “बजाओ बदला, पड़ोसी का चैन चुराओ!”

तीन हफ्ते तक रोज़ वही झंझट—हर बार भारी-भरकम बाइक को सरकाओ, खुद का भी दम निकले! और जरा सोचिए, अगर गलती से बाइक गिरा दी तो? फिर तो पड़ोसी के दिल पर ही नहीं, जेब पर भी छुरी चल जाएगी!

मगर हमारे नायक भी कम नहीं। जब सीधी बात नहीं बनी, तो थोड़ा दिमागी खेल खेला। अब बात आती है उस पुरानी बिल्डिंग के इंटरकॉम सिस्टम की—जिसके हर फ्लैट में अलग-अलग स्पीकर लगे हैं और आवाज़ ऐसी कि जैसे मोहल्ले में लाउडस्पीकर बज रहा हो! और मज़े की बात, ये वॉल्यूम कम करने का ऑप्शन ही नहीं, बिल्कुल जैसे पुराने 80 के दशक के हिन्दी रेडियो।

अब शुरू हुआ 'बज़िंग बदला'! कभी सुबह 9:30 बजाओ, कभी दोपहर को, कभी शनिवार रात को—जब-जब खयाल आए, बस इंटरकॉम का बटन दबाओ। और पड़ोसी के फ्लैट में गूंजता रहा 'डिंग-डॉन्ग', वो भी जोर से! अब पड़ोसी की नींद, आराम, और रॉक म्यूज़िक सब डोलने लगे।

एक हफ्ते में जनाब खुद नीचे आकर पूछने लगे, “क्या आप ही बार-बार बजा रहे हैं?” मासूम सा जवाब—“अरे, गलती से हो गया, ये पुराने सिस्टम बहुत कंफ्यूजिंग हैं!” अब बेचारे पड़ोसी के पास जवाब क्या हो?

ऑनलाइन चर्चा: बदले की मिठास और 80s की कड़वाहट

इस कहानी को पढ़कर Reddit पर खूब बहस छिड़ गई। एक यूज़र ने लिखा, "ऐसे लोगों को तमीज़ सिखाना बड़ा मुश्किल होता है, लेकिन जो भाषा वो समझे, उसी में जवाब देना चाहिए।"

दूसरे ने मज़ाक में कहा, "भैया, 80 के दशक को ‘प्राचीन’ कह दिया, दिल टूट गया!" सोचिए, हमारे यहां तो आज भी लोग अपने घरों में वही बड़े-बड़े डायल वाले लैंडलाइन, पुराने रेडियो और टेप रिकॉर्डर संभाल के रखते हैं—कहते हैं, असली मज़ा तो इन्हीं में है!

कुछ पाठकों ने तो सुझाव दे डाले कि अगर पड़ोसी दोबारा गलती करे, तो टायर की हवा निकाल दो या फिर बाइक सीधा गिरा दो—लेकिन हमारे नायक का तरीका कहीं ज्यादा मज़ेदार और सुरक्षित था।

एक और टिप्पणी पढ़कर हंसी छूट गई, "जैसे ही बच्चों को कहता सुनता हूँ कि 'लेट 1900s' यानी 1990, मेरा मन करता है उन्हें एक झापड़ मारूं!" अब ये तो वही बात हो गई जैसे हमारे यहां कोई कह दे, '90s के गाने पुराने हो गए'—अरे भई, वो तो अभी कल ही की बात लगती है!

सबक और मसालेदार अंत – “शोर मचाओ, जगह पाओ!”

अंत में, पड़ोसी ने खुद ही बाइक दूसरी तरफ खड़ी कर दी। अब हमारी साइकिल को खुली हवा और रास्ता दोनों मिल गया! और शरारती इंटरकॉम भी चुप हो गया—कम से कम शायद...

इस पूरी घटना में सबसे बड़ा सबक यही है—कभी-कभी सीधी बात से बात नहीं बनती, तो थोड़ा सा रचनात्मक बदला लेना भी बुरा नहीं। और हाँ, पुराने जमाने की चीज़ें—चाहे वो 80s का इंटरकॉम हो या मोहल्ले की गपशप—कभी-कभी सबसे मज़बूत हथियार साबित हो सकती हैं।

अगर आपके पड़ोस में भी कोई ऐसा 'मोटरसाइकिल महाराज' है, तो इस कहानी से कुछ सीखें—शिष्टता से बात करें, न माने तो दिमाग लगाएं, और अगर फिर भी न माने, तो अपनी 'इंटरकॉम आर्मी' तैयार रखें!

क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है?

क्या आपके पड़ोसी ने कभी आपको परेशान किया है? क्या आपने कभी ऐसा 'शरारती बदला' लिया? अपने अनुभव कमेंट में ज़रूर शेयर करें—शायद आपकी कहानी अगली बार यहां छप जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: Neighbor kept blocking my bike, so I made sure his expensive speakers got a workout