विषय पर बढ़ें

जब पड़ोसी की चालाकी पर पड़ा पड़ोसी ही भारी: बिल बाँटने की जंग

एक रेस्तरां में भोजन कर रहे एक जोड़े का सिनेमाई दृश्य, प्रतिशोध और अलग बिलों के विषयों को उजागर करता है।
इस सिनेमाई चित्रण में, एक जोड़ा रात के खाने के दौरान तनावपूर्ण लेकिन मजेदार पल में व्यस्त है, जो इस कहावत को बखूबी दर्शाता है, "प्रतिशोध एक ऐसा व्यंजन है जिसे अलग बिल के साथ परोसा जाना चाहिए।" उनके चेहरे की भावनाएँ पुराने grievances और चतुर संवाद की कहानी बयां करती हैं, एक दिलचस्प कथा के लिए मंच तैयार करती हैं।

हमारे मोहल्लों में अक्सर खाने-पीने का न्योता देना एक आम बात है। लेकिन जब बात आती है बिल बाँटने की, तो कई बार रिश्ते में मिठास की जगह बिल का खट्टा स्वाद रह जाता है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है – जहाँ चालाक पड़ोसी ने बार-बार खाने का न्योता देकर अपने नए पड़ोसियों से उगाही करने की कोशिश की, लेकिन आखिर में बाज़ी पलट गई।

शुरुआत हुई एक शराफ़ती न्योते से

कुछ साल पहले की बात है, न्यूयॉर्क के एक छोटे से कस्बे में रहने वाले श्रीमान और उनकी पत्नी (जो उम्र में साठ-पैंसठ के करीब हैं) को उनके सड़क पार रहने वाले बुजुर्ग पड़ोसी ‘जॉय’ और ‘लिंडा’ ने खाने पर बुलाया। सोचा, मोहल्ले में मेलजोल बढ़ेगा, तो बढ़िया रहेगा। पहली दावत एक इतालवी रेस्टोरेंट में रखी गई, जहाँ हमारे दम्पति सीधे दफ्तर से पहुँचे। दोनों ने सादा खाना और एक स्टार्टर्स का ऑर्डर दिया, जिसे उन्होंने साझा किया। लेकिन जॉय और लिंडा ने तो जैसे आज पूरा मेन्यू ही चखने की ठानी थी—शुरुआत वाइन से, फिर हर किसी का अपना स्टार्टर्स, भारी-भरकम मुख्य भोजन, और फिर डेज़र्ट भी!

बिल आया, तो उन्होंने फटाफट उसे आधा-आधा बाँट दिया। टिप भी नाम मात्र की दी। हमारे दम्पति का हिस्सा कम था, लेकिन उन्हें बाकी का बोझ भी उठाना पड़ा। पहली बार में सोचा, कोई बात नहीं, चलो आगे से ध्यान रखेंगे।

“अरे भई! हर बार तो नहीं चलेगा ये खेल”

कुछ हफ्ते बाद फिर से खाने का न्योता आ गया, इस बार थोड़ी महँगी जगह पर। अब दम्पति को समझ आ गया था कि ये पड़ोसी तो बार-बार इसी बहाने से मुफ्त की दावत उड़ाना चाहते हैं। इसलिए इस बार श्रीमान ने जॉय को हल्के अंदाज़ में किनारे ले जाकर समझाया—“भाई, हम कम खाते हैं, तो अपना-अपना हिस्सा ही देंगे।” जॉय को बात हज़म नहीं हुई, लेकिन मजबूरी में मान गया। फिर भी, हरेक बार बिल का बँटवारा बहस का मुद्दा बन जाता, और आखिर में हमारे दम्पति को ही ज़्यादा देना पड़ता।

चालबाज़ी पर चालबाज़ी, लेकिन फिर पलटी बाज़ी!

अब जॉय ने एक दिन और भी महँगे रेस्टोरेंट का प्लान बनाया। लेकिन इस बार श्रीमान ने एक नई तरकीब निकाली। वेटर के आते ही, वे बहाने से वॉशरूम चले गए और वेटर को अलग से कह दिया—“हमारा बिल अलग बनाना।” वापस आकर वे मुस्करा रहे थे, जैसे कोई बड़ा काम कर आए हों। खाना शुरू, सबने ऑर्डर दिया, और जॉय-लिंडा ने फिर वही पुरानी हरकत—सबसे महँगी चीज़ें, डेज़र्ट्स, वाइन…!

पर जब बिल आया, तो दो अलग-अलग बिल देख कर जॉय-लिंडा के चेहरे का रंग उड़ गया। उनके हिस्से का बिल हमारे दम्पति से दोगुना था! और अब उन्हें मजबूरी में अपने हिस्से का पूरा पैसा देना पड़ा। मोहल्ले में ये किस्सा मज़ाक का मुद्दा बन गया—“देखो, जॉय का बिल कौन बाँटेगा!”

जब ‘मूछर’ बन गए सबक के हक़दार

रेडिट पोस्ट पर भी इस कहानी ने धूम मचा दी। एक पाठक ने लिखा, “रेस्टोरेंट में काम करते हुए, मैंने हमेशा देखा है कि जो लोग ज़्यादा खाते-पीते हैं, वही बिल बाँटने में सबसे ज़्यादा बहाने बनाते हैं।” एक और ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, “जब ऐसे लोग वेटर के सामने बटुआ खोलते हैं, तो लगता है जैसे सदियों बाद कोई खज़ाना खुल रहा हो!”

कई पाठकों ने सलाह दी कि ऐसे मौकों पर शुरू में ही साफ़-साफ़ कह देना चाहिए—“भैया, बिल अलग-अलग बना देना।” कुछ लोग तो समूह में खाने के बाद छोटी-छोटी रकम के हिसाब से अपना हिस्सा जोड़ते हैं और वेटर को टिप भी खुलकर देते हैं। किसी ने तो ये भी शेयर किया कि उनके परिवार में तो सब एक-दूसरे को चुपके से पूरा बिल चुकाने की होड़ लगाते हैं, ताकि रिश्तों में मिठास बनी रहे।

भारतीय संस्कृति में कैसे निभाएँ ये ‘बिल-कांड’?

हमारे यहाँ तो अक्सर शादी-ब्याह या दावतों में “जो बुलाए, वही खिलाए” का चलन है। लेकिन जब दोस्त या पड़ोसी साथ बाहर जाते हैं, तो ऐसे हालात बन सकते हैं। इसलिए कई लोग सलाह देते हैं कि शुरुआत में ही अपना हिस्सा तय कर लें—जैसे, “मैं तो सिर्फ़ पानी और सलाद लूँगा, मेरा हिसाब अलग कर लेना।” इससे न रिश्तों में कड़वाहट आती है, न जेब पर बोझ।

आजकल तो मोबाइल ऐप्स भी आ गए हैं, जहाँ हर कोई अपना हिस्सा जोड़ सकता है। एक पाठक ने बताया, “हम लोग Splyt ऐप से बिल बाँटते हैं, जिससे सबका हिसाब बिलकुल साफ़ रहता है।”

निष्कर्ष: चालाकी के बदले समझदारी

इस कहानी से यही सबक मिलता है—रिश्ते निभाइए, लेकिन अपनी सीमाएँ भी तय करिए। कभी-कभी सामनेवाला जितना भी चालाक क्यों न हो, थोड़ी सी समझदारी और हँसी-मज़ाक में आप उसकी पूरी योजना पर पानी फेर सकते हैं। और सबसे ज़रूरी—अगर कोई बार-बार आपको ‘मूछर’ बना रहा है, तो अगली बार आप भी ‘कूल’ अंदाज़ में कह दीजिए—“भाईसाहब, आज तो अपना-अपना ही चलेगा!”

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, जब किसी दोस्त या रिश्तेदार ने खाने के बिल पर चालाकी दिखाई हो? कमेंट में अपनी मज़ेदार या चौंकाने वाली कहानी ज़रूर साझा करें!


मूल रेडिट पोस्ट: Revenge is a dish best served with a separate check