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जब पड़ोसन की कुत्ते की गंदगी ने बच्चों को बना दिया 'डिटेक्टिव' – एक मज़ेदार बदले की कहानी!

गर्मियों की मस्ती में बच्चों द्वारा अपने आंगन में बिखरे कुत्ते की गंदगी की खोज करते हुए कार्टून-3D चित्रण।
इस मजेदार कार्टून-3D दृश्य में, हमारे शरारती बच्चों को अपने आंगन में एक अनोखी पहेली मिलती है—कुत्ते की एक बेतरतीब गंदगी! आइए, हम 90 के दशक की गर्मियों की शरारतों और बचपन के अप्रत्याशित सरप्राइज में शामिल होते हैं।

गर्मी की छुट्टियां, 90 के दशक का ज़माना, और बच्चों की शरारतें – क्या आपको भी अपने बचपन की यादें ताज़ा हो गईं? जब घर के बड़े बाहर हों और बच्चे अकेले, तो क्या-क्या कारनामे होते हैं! ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें दो बहनों ने अपने पड़ोसन की हरकत का ऐसा जवाब दिया कि पूरा मोहल्ला हंस-हंस कर लोटपोट हो गया।

वो अनचाही 'सुविधा' – हमारे आँगन में कुत्ते की गंदगी!

कहानी शुरू होती है एक आम मोहल्ले से, जहां हर सुबह मोहल्ले वाले अपनी-अपनी सफाई में लगे रहते हैं। पर हमारे कहानी के नायक-नायिका यानी दो बहनें, रोज़ाना अपने आँगन में अजनबी कुत्ते की गंदगी पाकर परेशान हो चुकी थीं। सोचिए, सुबह-सुबह स्कूल जाने की जल्दी में अगर किसी के पैर में गंदगी लग जाए... हाय राम! वैसे तो उनके घर के पीछे खुद के कुत्तों का पूरा खेल का मैदान था, लेकिन सामने का आँगन कोई और ‘स्पेशल’ कुत्ता गंदा कर जाता।

शुरू-शुरू में लगा, शायद कोई आवारा कुत्ता है। लेकिन जल्द ही असली गुनहगार का पर्दाफाश हुआ – मोहल्ले के कोने वाली बूढ़ी अम्मा और उनका छोटा सा कुत्ता! मज़े की बात, अम्मा जी अपने घर के ठीक सामने के ‘सोसायटी’ वाले हिस्से में रहती थीं, जहां कुत्ते की गंदगी पर जुर्माना भी लग सकता था। इसलिए अपना कचरा छुपाने के लिए उन्होंने पड़ोसी का आँगन चुना!

सब्र का बांध टूटा – अब आएगा असली खेल

एक दिन छोटी बहन की किस्मत इतनी खराब थी कि सीधा ताज़ा-ताज़ा गंदगी पर पैर पड़ गया। ऊपर से जब उसी पैर के साथ मम्मी की कार की पिछली सीट पर बैठना पड़ा, तो समझिए, गुस्सा सातवें आसमान पर!

पापा ने तो बस कह दिया, "अरे भई, कह दो अम्मा जी से कि कुत्ते की गंदगी उठा लिया करें!" लेकिन बच्चों को कौन समझाए? बदला लेना तो उनके बस की बात थी। अब शुरू हुई जासूसी – जैसे किसी हिंदी फिल्म में हीरो-हीरोइन खिड़की से निगाह रखते हैं, वैसे ही दोनों बहनें खिड़की से अम्मा जी का इंतजार करने लगीं।

'रिटर्न टू सेंडर' – बदला भी मासूमियत के साथ

जैसे ही अम्मा जी अपने कुत्ते के साथ वापस लौटती दिखीं, दोनों बहनों ने चुपके से मम्मी के गार्डन वाले तसले में ताज़ा गंदगी उठाई। प्लान था – गंदगी वहीं पहुंचानी है, जहां से आई थी! अब न कोई आग, न कोई थैला – सीधा अम्मा जी के दरवाज़े पर, उनके दरवाज़े की चटाई पर, एक रंगीन क्रेयॉन से लिखा नोट रखा, "आप ये भूल गई थीं।"

डोरबेल बजाई और झाड़ियों में छुप गईं। अब सोचा था, अम्मा जी खुद पैर रखकर चिल्लाएंगी! लेकिन किस्मत ने पलटी मारी – अम्मा जी के पति जी नंगे पैर बाहर आए और धड़ाम! पूरा मोहल्ला गूंज उठा, हम तो भागकर घर में छुप गए।

मोहल्ले की प्रतिक्रिया – सबक और ठहाके

बाद में जब बात घरवालों तक पहुंची, तो बहनों ने बड़े गर्व से अपना कारनामा कबूल किया। पापा ने तो साफ-साफ कह भी दिया, "भइया, अपनी बीवी को समझा दो, वरना फिर से गंदगी लौट सकती है!"

एक ऑनलाइन कमेंट में किसी ने क्या खूब लिखा – "आपकी बच्चियों से ऐसी उम्मीद नहीं थी!" जवाब में कोई लिखता, "फिर हम अम्मा जी से ऐसी हरकत की उम्मीद क्यों करें?" ये बहस तो भारत के हर मोहल्ले में आम है – बड़ों की गलती पर बच्चों को सिखाना, और बच्चों की शरारत पर हंसना!

मोहल्ले में सबको यह किस्सा इतना पसंद आया कि कोई कह रहा था, "बिल्कुल सही बदला लिया!" तो कोई बोला, "किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि गंदगी सीधा चटाई पर मिलेगी, लोग तो थैले या जलती हुई थैली की उम्मीद करते हैं – जैसे फिल्मों में दिखाते हैं!"

किसी ने तो हंसी में पूछा, "इतनी बदबू में कैसे सांस ली?" इसका जवाब – "मुंह से सांस ली, क्या करें!"

आखिरकार – गंदगी का कारनामा हुआ बंद

इस घटना के बाद अम्मा जी ने अपने कुत्ते को कभी आँगन में नहीं लाया। बल्कि, हमारे घर के सामने से गुजरना ही बंद कर दिया। मोहल्ले वालों ने भी चैन की सांस ली। और बहनों ने सीखा – कभी-कभी हिम्मत और थोड़ी शरारत, बड़ों को भी सही राह दिखा सकती है!

आपकी भी है कोई मज़ेदार पड़ोस वाली कहानी?

तो दोस्तों, क्या आपके साथ भी कभी किसी पड़ोसी ने ऐसी हरकत की है? या आपने कभी मासूमियत में ऐसा कोई बदला लिया हो? कमेंट में अपनी कहानी जरूर बताइए! और हां, याद रखिए, कभी-कभी हल्की-फुल्की शरारत से ही बड़े सबक मिलते हैं – और हंसी भी!


मूल रेडिट पोस्ट: A Dog, A Poo, and a Ding Dong Ditch