जब 'नाज़ी केविन' को थेरेपी से भी राहत नहीं मिली – एक कॉलेज की गज़ब कहानी
कहते हैं, कॉलेज की यादें ज़िंदगी भर साथ रहती हैं – दोस्ती, पढ़ाई, मस्ती और कभी-कभी अजीबोगरीब लोग भी। लेकिन आज जो किस्सा मैं सुनाने जा रहा हूँ, वो जितना हैरान करने वाला है, उतना ही सोचने पर मजबूर करने वाला भी है। सोचिए, अगर आपके रूममेट का सबसे अच्छा दोस्त अचानक नाज़ी विचारधारा का खुला समर्थक निकले और फिर अपने पक्ष में थेरेपी करवाने लगे, तो आपकी क्या हालत होगी?
कॉलेज के दिनों की उलझी कहानी
ये किस्सा न्यू इंग्लैंड के एक बहुत ही धार्मिक (क्रिश्चियन) कॉलेज का है। वहाँ पढ़ाई करने वाले एक छात्र की पहली साल के रूममेट ने ऐसे दोस्त बना लिए, जिनकी सोच बेहद कट्टर और नफ़रत से भरी थी। दरअसल, ये दोस्त – जिसे हम "नाज़ी केविन" कहेंगे – खुल्लम-खुल्ला अपने नाज़ी विचारों का प्रचार करता था। उसके लिए नफ़रत फैलाना, दूसरों पर कीचड़ उछालना और महिला विरोधी टिप्पणियाँ करना आम बात थी।
मज़े की बात ये है कि खुद रूममेट भी कुछ कम नहीं था, उसे भी नाज़ी केविन की बातें बहुत "प्रेरणादायक" लगती थीं। दोनों मिलकर धर्म, जाति, नस्ल जैसे मुद्दों पर ऐसी बातें करते कि आम आदमी का सिर घूम जाए। अब बेचारे पोस्ट लिखने वाले को मजबूरी में या तो वही सब सुनना पड़ता या अपना कमरा छोड़ना पड़ता।
अब थेरेपी भी क्या करेगी?
यही नाज़ी केविन, एक दिन अचानक थेरेपी कराने पहुँच गया – वो भी इस शिकायत के साथ कि "किसी को मेरे परिवार-आधारित और रूढ़िवादी विचारों की कदर ही नहीं है!" असलियत में, उसके ये 'रूढ़िवादी विचार' असल में घोर यहूदी-विरोधी, महिला विरोधी और जातिवादी थे।
थेरेपी से उसे उम्मीद थी कि काउंसलर उसे बताएँगे कि वही सही है और पूरी दुनिया गलत। लेकिन हुआ उल्टा! न तो कोई थेरेपिस्ट उसकी बातों में आया, न किसी ने उसकी वाहवाही की। बेचारे ने दस महीने में सात थेरेपिस्ट बदल डाले, फिर भी उसे समझ ही नहीं आया कि दिक्कत दरअसल उसमें ही है।
एक कमेंट करने वाले ने बड़े चुटीले अंदाज़ में कहा – "भाई, ये तो दिमाग से गया हुआ है, फिर भी क्रिश्चियन कॉलेज में कैसे घुस गया?" वहीं, एक और ने बड़ी गहरी बात कही – "देखा जाए तो कई जगह ऐसे लोग मिल जाते हैं जिन्हें बाइबिल या किसी ग्रंथ की असली सीख से कोई लेना-देना नहीं, बस अपने हिसाब से धर्म को मोड़ लेते हैं।"
नाटक, हंगामा और कॉलेज की राजनीति
केविन की हरकतें यहीं नहीं रुकीं। एक बार हैलोवीन पर उसने नाज़ी अफसर की वर्दी पहनकर मोहल्ले में लोगों को डराना शुरू कर दिया। कुछ घंटे तक तो नाटक चला, फिर किसी ने उसकी धुनाई कर दी और पुलिस उठा ले गई। लेकिन हैरानी की बात – कॉलेज ने उस पर कोई खास कार्रवाई नहीं की, उल्टा वह वापस पढ़ाई पर लौट आया और महीनों तक "मुझे तो सताया गया" का रोना रोता रहा।
एक और खुराफात – केविन और उसका साथी कॉलेज की लड़कियों की बिना इजाजत तसवीरें खींचते और उन्हें अश्लील साइट्स पर डाल देते। सोचिए, एक धार्मिक कॉलेज में भी ऐसे लोग पकड़े नहीं जाते!
एक कमेंट में एक यूज़र ने कहा, "अरे, ऐसे लड़कों से तो मोहल्ले की आंटी भी निपट लें, लेकिन यहाँ तो कॉलेज ही ढीला है।" वहीं, एक और ने हँसी में कहा, "लगता है, केविन को तो हर जगह 'मैं ही सही हूँ' का रोग लग गया है!"
क्या समाज को बस सहना चाहिए?
यह कहानी सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच पर सवाल खड़े करती है। जब कोई खुलेआम नफ़रत फैलाता है, दूसरों को नुकसान पहुँचाता है और फिर खुद को ही पीड़ित समझता है – तो क्या हमें बस देखना चाहिए?
पोस्ट लिखने वाले ने भी यही सवाल उठाया – "मुझे आज तक समझ नहीं आया, केविन को ये क्यों लगा कि थेरेपी से उसे अपने नाज़ी विचारों का समर्थन मिलेगा?"
दरअसल, ऐसे लोगों को समाज का आईना दिखाना ही सबसे ज़रूरी है। जैसा एक कमेंट में लिखा था, "जब तक इंसान अपने अंदर झाँककर कमी नहीं देखेगा, तब तक न कॉलेज बदल सकता है, न थेरेपी, न समाज।"
निष्कर्ष: सोच बदलो, समाज बदलेगा
तो दोस्तों, इस कहानी से हमें क्या सीख मिलती है? सबसे पहले – नफ़रत, कट्टरता और दूसरों के प्रति असम्मान से कभी किसी का भला नहीं हुआ। थेरेपी, धर्म, या समाज – कोई भी आपको तब तक नहीं बचा सकता जब तक आप खुद अपनी सोच न बदलें।
अगर आपके आस-पास भी कोई "केविन" दिखे, तो चुप न रहें। उसे सही-गलत का फर्क बताना भी ज़रूरी है। आखिरकार, समाज तभी आगे बढ़ेगा जब हम मिलकर गलत को चुनौती देंगे और इंसानियत को अपनाएँगे।
आपको क्या लगता है? क्या ऐसे लोगों के लिए थेरेपी का कोई असर हो सकता है? अपने विचार नीचे कमेंट में जरूर लिखिए – शायद किसी केविन तक भी हमारी बात पहुँच जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: NAZI Kevin goes to therapy