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जब नए मैनेजर की जिद ने पूरे ऑफिस का खेल बिगाड़ दिया: टाइमशीट का महाभारत

एक तनावग्रस्त कर्मचारी देर शाम डेस्क पर टाइमशीट भरते हुए।
इस फोटोरियलिस्टिक छवि में, एक समर्पित कर्मचारी देर रात टाइमशीट पूरे करने के दबाव का सामना कर रहा है, जो कार्यस्थल की अपेक्षाओं की चुनौतियों को दर्शाता है।

भाइयों और बहनों, ऑफिस की दुनिया भी किसी कटहल के पेड़ से कम नहीं! यहाँ हर दिन कुछ नया पकता है—कभी बॉस की मीठास, तो कभी नियमों का कसैला स्वाद। आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ एक ऐसी कहानी, जिसमें एक अस्थायी मैनेजर ने अपनी ‘नवाबी’ दिखाने के चक्कर में खुद की ही बैंड बजवा ली। टाइमशीट भरने के एक छोटे से नियम ने पूरे ऑफिस को अपनी मर्जी से घुमाने की कोशिश की, लेकिन कर्मचारियों ने भी ‘जैसे को तैसा’ का शानदार जवाब दिया!

ऑफिस का ‘सिस्टम’ और हमारी मस्त मैनेजर

अक्सर हमारे यहाँ भी देखा जाता है कि पुरानी, अनुभवी मैनेजरें ऑफिस के काम को ऐसे चलाती हैं जैसे घर का चूल्हा—सलीके से, बिना बेवजह का टेंशन दिए। Reddit पर एक यूज़र (u/JoeyJoJo_Senior) ने बताया कि उनके ऑफिस में हर पंद्रह दिन पर शुक्रवार को, बिज़नेस क्लोज होने से पहले टाइमशीट भरनी और जमा करनी होती थी। उनकी मैनेजर भी बहुत समझदार थी—शुक्रवार सुबह ही लोगों से टाइमशीट ले लेती, साइन कर देती और शाम से पहले-पहले पे रोल डिपार्टमेंट को भेज देती। सब मजे में, कोई टेंशन नहीं, ऑफिस का माहौल बिल्कुल ‘हिंदुस्तानी चाय की प्याली’ जैसा—गर्म, मीठा, और रिलैक्स!

फिर एक दिन मैडम अपने नाती-नातिन के जन्म के मौके पर छुट्टी चली गईं। अब अस्थायी तौर पर एक नौजवान मैनेजर आया, और यहीं से शुरू हुआ असली ड्रामा।

नए मैनेजर की जिद और कर्मचारियों की चालाकी

नवाब साहब ने आते ही अपना रौब गाँठना शुरू कर दिया। उन्होंने फरमान जारी किया—"भैया, टाइमशीट सिर्फ तभी भरोगे, जब पूरे पंद्रह दिन का काम कर लो, यानी शुक्रवार शाम 5 बजे के बाद ही।" अब इसमें दिक्कत यह थी कि पे रोल डिपार्टमेंट भी 5 बजे ही बंद हो जाता था। यानी, टाइमशीट सोमवार को ही जाएगी, और सैलरी लेट! सोचिए, तनख्वाह समय पर न मिले, तो भारतीय कर्मचारी का मन कैसा खट्टा हो जाता है!

लेकिन यहाँ कहानी में ट्विस्ट आया। कर्मचारियों ने सोचा, "ठीक है जनाब, आपकी जिद पर हम भी अपना रंग दिखाएंगे।" शुक्रवार को काम खत्म होते ही सबने टाइमशीट भरना शुरू किया, लेकिन आराम-आराम से, गप्पें मारते हुए। सामने ही सस्ता बार था, 6 से 7 के बीच सस्ते ड्रिंक्स मिलते थे। तो सबने सोचा—टाइमशीट भरना भी, बार जाने से पहले का बहाना! मैनेजर को रुकना पड़ा, साइन करने के लिए। एक बार तो 6 बजे के ठीक पहले ही सबने टाइमशीट थमाई। मैनेजर जी का पारा सातवें आसमान पर!

‘जैसे को तैसा’—समुदाय की टिप्पणियों का तड़का

Reddit की जनता भी इस किस्से पर खूब हंसी। एक यूज़र (u/PAUL_DNAP) ने चुटकी ली, “क्या आपने टाइमशीट भरने के ओवरटाइम का भी बिल जोड़ दिया?” OP ने जवाब दिया—“बिल्कुल! और ओवरटाइम भी इन्हीं जनाब से साइन करवाया!” इसपर कईयों ने कहा, "पैसे का मामला हो, तो ऐसी ‘मालिशियस कंप्लायंस’ असली मज़ा देती है।"

एक और कमेंट में कहा गया—“तीन हफ्ते तक हर किसी को एक-एक घंटे का ओवरटाइम साइन कराना पड़े, तब भी जनाब की आँख न खुले, तो क्या कहें!” किसी ने तो मजाक में पूछ लिया—“पहला राउंड बार में मैनेजर की तरफ से था क्या?” ऐसी मिर्च-मसाला वाली टिप्पणियाँ पढ़कर लगता है कि ऑफिस के पचड़े, चाहे पश्चिम में हों या भारत में, सब जगह एक जैसे ही हैं।

एक अनुभवी Reddit सदस्य ने लिखा—"एक जिम्मेदार मैनेजर वही है, जो काम चलने दे, न कि बेवजह नियमों की बोटियाँ बनाए।" सच ही है, भारत में भी अकसर देखा गया है कि ‘रूल्स के राजा’ आते ही सिस्टम को उल्टा-पुल्टा कर जाते हैं और फिर खुद ही फंस जाते हैं।

सबक: ऑफिस में ‘सिस्टम’ से छेड़छाड़? ज़रा सोच समझकर!

यह ड्रामा पूरे 6 हफ्ते चला। आखिरकार, जब पूरी टीम की सैलरी बार-बार लेट हुई, HR और फाइनेंस डिपार्टमेंट में घंटी बजी। तुरंत खोजबीन हुई और नए मैनेजर साहब को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। पुराने मैनेजर की वापसी तक, एक अनुभवी सहकर्मी को जिम्मेदारी सौंप दी गई। सब कुछ फिर से पटरी पर आ गया—जैसे हमारी लोकल ट्रेनें, थोड़े झटकों के बाद भी हमेशा सही समय पर पहुँच ही जाती हैं।

इस किस्से से सीख यही मिलती है—ऑफिस के पुराने, चले आ रहे सिस्टम को समझे बिना उसमें तानाशाही चलाना, अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारना है। भारत में भी हम अकसर नए बॉस के बड़े-बड़े भाषण सुनते हैं, लेकिन असली समझदार वही है जो टीम को साथ लेकर चले, न कि ‘रूल्स’ के नाम पर सबका जीना हराम कर दे।

निष्कर्ष: आपकी राय क्या है?

तो प्यारे पाठकों, आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा कोई ‘नवाब’ आया है क्या, जिसने बिना सोचे-समझे नियम बदल दिए हों और सबका जीना मुहाल कर दिया हो? अपने अनुभव या मजेदार किस्से कमेंट में जरूर साझा करें। आखिरकार, ऑफिस की दुनिया में तानाशाही ज्यादा दिन नहीं टिकती—आखिरकार, टीम वर्क ही जीतता है!


मूल रेडिट पोस्ट: Manager insisted we do timesheets after hours