जब नई मैनेजमेंट की जिद ने कंपनी को मुसीबत में डाल दिया: टाइम ज़ोन की तकरार की दिलचस्प कहानी
कंपनी में नई मैनेजमेंट आई हो और उसने आते ही नए-नए नियम लागू कर दिए हों, तो समझिए ऑफिस में हलचल तय है। खासकर जब ये नियम बिना ज़मीन-आसमान देखे, बस अपने अनुभव के भरोसे बना दिए जाएं। ऐसी ही एक दिलचस्प घटना अमेरिका की एक बड़ी मीडिया एजेंसी में घटी, जिसने ये साबित कर दिया कि 'नया बर्तन ज़्यादा बजता है'।
यह कहानी 2008 के आसपास की है, जब वर्क फ्रॉम होम का नामोनिशान तक नहीं था। न्यूयॉर्क की इस कंपनी में काम करने वाले नौजवानों की टीम, अपने कैलिफोर्निया वाले क्लाइंट्स के मुताबिक ऑफिस आती-जाती थी। सुबह 10 बजे आना और रात 7-8 बजे तक काम करना आम बात थी। कई बार तो 9 बजे तक रुकने के बदले कैब सर्विस भी मिल जाती थी, तो कौन मना करता! मगर फिर आई नई सीईओ साहब की एंट्री, और सब उलट-पुलट हो गया...
जब सीईओ साहब ने दिखाया यूरोपीय रंग
नई सीईओ महोदया यूरोप की आदतों के साथ आई थीं। उन्हें यह रास नहीं आया कि कर्मचारी 8 बजे ऑफिस क्यों नहीं आ रहे। बिना ज़्यादा पूछताछ किए, सीधा फरमान जारी कर दिया – "अब से सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक ऑफिस रहना अनिवार्य है।"
टीम ने भी सोचा – चलो, जल्दी घर जाने का मौका मिलेगा, वरना देर रात तक रुकना पड़ता है। आदेश की चुपचाप पालना शुरू हो गई। लेकिन असली बवाल तो तब शुरू हुआ जब पश्चिमी तट (वेस्ट कोस्ट) के क्लाइंट्स ने शाम के बाद फोन घुमाना शुरू किया और उधर से कोई जवाब नहीं मिला।
यहां एक कमेंट करने वाले ने बिलकुल सही लिखा, "अगर आप नये हैं, तो पहले माहौल समझिए, फिर नियम बनाइए।" (u/bsb_hardik) ऑफिस की संस्कृति, क्लाइंट्स की जरूरतें – ये सब समझना तो बिजनेस स्कूल का पहला पाठ है!
टाइम ज़ोन की अनदेखी – भारी पड़ गई
अब ज़रा सोचिए – न्यूयॉर्क और कैलिफोर्निया में तीन घंटे का अंतर! जब न्यूयॉर्क में शाम के 5 बजते हैं, तब कैलिफोर्निया में तो अभी दोपहर ही होती है। मतलब कंपनी के सबसे बड़े क्लाइंट्स को 'आपका कॉल हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण है' वाला संदेश मिलना शुरू हो गया।
रेडिट पर एक यूज़र ने अपने अनुभव साझा करते हुए लिखा, "हमारे यहां एक वेस्ट कोस्ट वाले सहकर्मी ने शुक्रवार दोपहर की मीटिंग रखी, जो हमारे लिए शाम को हो जाती थी – छुट्टी का मूड खराब! मैंने भी बदले में सोमवार सुबह उनकी मीटिंग रख दी। जब उन्हें सुबह 5 बजे उठना पड़ा, तो खुद ही मीटिंग का वक्त बदल दिया।" (u/Particular_Ticket_20)
ऐसी छोटी-छोटी टाइमिंग की चूकें भारत में भी खूब देखने को मिलती हैं – दिल्ली-मुंबई या बेंगलुरु-कश्मीर में काम करने वाली कंपनियों को अकसर टाइम ज़ोन और लोकल छुट्टियों का ध्यान रखना पड़ता है। वरना, 'अरे साब, वो तो आज ऑफिस ही नहीं आए' जैसे जवाब आम हैं!
'नये बर्तन' और 'पुराने रस्म-रिवाज'
रेडिट कम्युनिटी में कई लोगों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि नये मैनेजर या सीईओ को पहले माहौल को समझना चाहिए। एक यूज़र ने लिखा, "कोई भी बदलाव करने से पहले, कम से कम एक महीने तक देखिए-समझिए, फिर टीम से सलाह लीजिए।" (u/Wadsworth_McStumpy)
हमारे भारतीय दफ्तरों में भी कुछ ऐसा ही होता है। नया बॉस आते ही अगर 'बदलाव का झंडा' लेकर दौड़ पड़े, तो पुराने लोग चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं – "देख लेंगे, कब तक चलता है!" और अक्सर बदलाव टिकता नहीं।
एक और कमेंट ने गजब की बात कही, "अगर आप किसी देश में काम करने जा रहे हैं, तो वहां की संस्कृति को समझना ज़रूरी है। नियम थोपने से काम नहीं चलता।" (u/speculator100k)
अंत भला तो सब भला – सीख क्या मिली?
आखिरकार, दो हफ्ते से भी कम समय में नया नियम वापस ले लिया गया। सीईओ साहब को खुद क्लाइंट्स को जवाब देना पड़ा कि 'हमारे लोग अब शाम में उपलब्ध नहीं हैं', और जैसे-तैसे पुरानी व्यवस्था बहाल हुई।
इस पूरे किस्से से ये सबक मिलता है – जब भी नई जगह, नई टीम या नए देश में काम शुरू करें, तो सबसे पहले वहां की जरूरतों, संस्कृति और लोगों को समझने की कोशिश करें। वरना, 'आ बैल मुझे मार' वाली हालत हो जाती है।
रेडिट की भाषा में कहें तो – "अगर खुद झेल नहीं सकते, तो दूसरों पर थोपिए भी मत!" (u/radenthefridge)
क्या आपके साथ भी हुआ है ऐसा?
क्या आपके ऑफिस में कभी ऐसे अजीब नियम लागू हुए हैं, जिनका कोई सिर-पैर न रहा हो? या फिर आपको भी कभी टाइम ज़ोन, छुट्टियों या लोकल संस्कृति की अनदेखी का खामियाजा भुगतना पड़ा हो? अपने मजेदार किस्से और अनुभव नीचे कमेंट में साझा करें – शायद अगली बार आपकी कहानी भी सुर्खियों में हो!
तो अगली बार जब बॉस बोले – "कल से नया नियम लागू!", तो मुस्कुराइए और सोचिए – "देखते हैं, कब तक चलता है!"
मूल रेडिट पोस्ट: Management said we had to work 8am - 5pm (ET). So we did, and let them deal with explaining to our California clients why we weren't available.