जब नई फोटोकॉपी मशीन का रंग बना प्रबंधन का सिरदर्द

एक आनंदित ऑफिस फोटोकॉपी मशीन की एनीमे-शैली की चित्रण, जिसे एक तकनीशियन द्वारा फिर से रंगा जा रहा है।
इस जीवंत एनीमे चित्रण में, हमारी प्रिय पुरानी फोटोकॉपी मशीन को नए रंग में रंगा जा रहा है, यह सब प्रिंटर के विशेषज्ञ की मेहनत के कारण। कौन जानता था कि एक साधारण मशीन ऑफिस में इतनी खुशी ला सकती है?

ऑफिस की दुनिया में हर कोई सोचता है कि मुश्किलें बस कंप्यूटर हैंग होने या इंटरनेट स्लो होने तक ही सीमित हैं। लेकिन कभी-कभी असली सिरदर्द कहीं और से आता है – जैसे ऑफिस की फोटोकॉपी मशीन के रंग से! जी हाँ, आज की कहानी है एक ऐसी IT टीम की, जिन्होंने सिर्फ नई मशीन लाने का ही नहीं, बल्कि उसे CEO की पसंद का रंग देने का भी ‘सम्मान’ पाया।

तो कहानी शुरू होती है एक मीडियम साइज कंपनी से, जहाँ करीब 200 लोग काम करते हैं। प्रिंटर तो दर्जनों, पर फोटोकॉपी मशीन बस एक और वो भी लगभग 18 साल पुरानी! फिर भी, उस मशीन पर काम चलता आ रहा था क्योंकि मेंटेनेंस का ठेका ऐसे बंदे के पास था जिसे वहाँ सब ‘प्रिंटर विस्परर’ कहते थे – यानी प्रिंटरों का जादूगर।

एक दिन प्रिंटर विस्परर ने आईटी मैनेजर को बताया कि अब फोटोकॉपी मशीन की उम्र पूरी हो चुकी है, क्योंकि उसके पार्ट्स मिलना बंद हो चुके हैं। मतलब, अब कुछ खराब हुआ तो रिपेयर का कोई जुगाड़ नहीं! नया मॉडल लेने की सलाह दी गई। उन्होंने कुछ ऑप्शन भेज दिए – सस्ता, भरोसेमंद, वही पुराना फील, वही मेन्युअल, बस रंग थोड़ा डार्क ग्रे।

आईटी मैनेजर ने फटाफट प्रपोजल मैनेजमेंट को भेजा, ऊपरी मंज़ूरी मिली और नई मशीन ऑर्डर हो गई। प्रिंटर विस्परर ने आकर सब सेटअप कर दिया – सब कुछ एकदम सही!

लेकिन असली ट्विस्ट आया अगले दिन, जब CTO ने मेल भेजी – "नई फोटोकॉपी मशीन तुरंत वापस भेजो, अगली बार CEO से पूछे बिना ऑर्डर मत करना।"

आईटी मैनेजर का माथा ठनक गया – ये क्या माजरा है? मशीन स्पेशल ऑर्डर आई थी, उसे लौटाना न प्रैक्टिकल था, न ही प्रिंटर विस्परर के लिए फायदेमंद। छोटे शहरों में अच्छे ठेकेदार मिलना वैसे भी मुश्किल है, और इतने सालों का भरोसा एक मशीन के लिए खोना कोई समझदारी नहीं थी।

अगले दिन सीधे CEO से मिले – "क्या दिक्कत है नई मशीन में?" CEO बोले – "ये देखने में बहुत भद्दी है!"
आईटी वाले का दिमाग घूम गया – "सर, ये तो हर फोटोकॉपी मशीन जैसी ही दिखती है।"
CEO बोले – "पुरानी हल्की रंग की थी, ये डार्क है। क्या इसे रीपेंट नहीं कर सकते?"

अब आईटी वाले की हालत वही हुई, जैसे किसी ने कह दिया हो – ‘सर, कंप्यूटर का कीबोर्ड थोड़ा खुशरंग चाहिए, गुलाबी करवा दो!’

फिर भी, प्रिंटर विस्परर को फोन किया – "भाई, क्या रंग बदल सकते हैं?"
प्रिंटर विस्परर भी सुनते ही ठहाका मारने को था, लेकिन बोला – "अंदर के पुर्जे मत छेड़ना, बाहर जो करना है कर लो।"

बस फिर क्या था! आईटी टीम ने पुरानी मशीन के पैनल देखे, नई के खुले हिस्से निकाले, और उन्हें लेकर डेकोरेटिव कंपनी पहुँच गए। वहाँ वाले भी हैरत में – "फोटोकॉपी मशीन के पैनल पेंट करवाने आए हो?"
आईटी वाला बोला – "CEO का हुक्म है, हल्का रंग चाहिए।"

कंपनी ने पैनल रंग दिए, फिर मशीन में फिक्स कर दिए। अब मशीन थोड़ी ‘सुंदर’ तो दिखने लगी, लेकिन क्या मजाल कि सहकर्मी ताने न मारें – "अगली बार कॉफी मशीन पिंक करवा देना!", "माउस का रंग नीला क्यों नहीं?" वगैरह-वगैरह।

इसी पर एक कमेंट था – “अब तो हर डिलीवरी के साथ कलर स्प्रे कैन ले आना, और CEO से पूछना – ‘सर, चटख पीला चलेगा या हरा पसंद करेंगे?’”

असल में, ये मामला सिर्फ रंग का नहीं था, ऑफिस की राजनीति और ‘बाइकशेडिंग’ (मतलब – बेवजह छोटी बात पर बहस) का था। एक कमेंट करने वाले ने लिखा – “बड़े-बड़े फैसलों को छोड़कर बेवजह रंग-रूप पर ध्यान देना, यही है असली लीडरशिप!”

किसी और ने तो यहाँ तक कह दिया – “कुछ CEO को तो AI या लॉटरी से भी रिप्लेस कर दो, शायद कंपनी ज्यादा बढ़िया चले!”

कई पुराने कर्मचारियों ने भी अपने अनुभव बाँटे – “हमारे ऑफिस में तो फेंग शुई के नाम पर एआईओ यूनिट्स को नई रंगत दी गई थी, किसी को नीला चाहिए था तो किसी को गुलाबी। बस, पैसे वालों की पसंद का क्या कहें!”

एक मज़ेदार कमेंट आया – “मशीन पर आग की लपटें बनवा दो, शायद कॉपी भी तेज़ निकले!”

इस किस्से से एक सीख मिलती है – चाहे आप कितने ही प्रोफेशनल हों, कभी-कभी ऑफिस में फैसले तर्क की जगह ‘रंग-रूप’ पर हो जाते हैं। और जब बॉस का मूड रंगीन हो, तो टेक्नोलॉजी टीम को भी पेंट ब्रश थामना पड़ सकता है!

तो अगली बार जब आपके ऑफिस में नई मशीन आए, तो रंग का ऑप्शन ज़रूर देख लें – क्या पता, बॉस की नजर बस वहीं जा अटके!

आपके ऑफिस में भी कभी ऐसी मजेदार ‘बॉसगिरी’ हुई है? कमेंट में जरूर बताएं – और हाँ, अगली बार कौन सी चीज़ का रंग बदलवाएं, ये भी सुझाएँ!


मूल रेडिट पोस्ट: That time I had a photocopier repainted