जब दो साल बाद ड्यूटी भूल गया नाइट ऑडिटर: ऑफिस की थकान, बॉस और DND का तड़का!
क्या आपने कभी ऑफिस की थकान में दिन-रात का फर्क ही भूल गए हों? या फिर काम का ऐसा बोझ कि छुट्टी और ड्यूटी का कोई हिसाब ही न रहे? आज हम एक ऐसे नाइट ऑडिटर की कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसे दो साल बाद आखिरकार अपनी पहली बड़ी गलती का सामना करना पड़ा। और यकीन मानिए, इसमें शरारत, थकान, बॉस की चालाकियाँ और मोबाइल का DND मोड – सबकुछ है!
थकान की चक्की में पिसता एक ईमानदार कर्मचारी
हमारे नायक हैं – एक होटल के नाइट ऑडिटर, जिनकी शिफ्ट है रात की, हफ्ते में चार दिन। अब रात की नौकरी वैसे ही नींद और थकान की दुश्मन मानी जाती है। ऊपर से जब बॉस बिना पूछे ही शेड्यूल बदल दें, तो गड़बड़ होना तय है। इसी हफ्ते मैनेजर ने उनकी ड्यूटी संडे से वेडनेसडे की जगह मंडे से थर्सडे कर दी। बेचारे को आदत ही नहीं थी, और थकान की वजह से दिन-रात, तारीख, सब गड्डमड्ड हो गए।
सिर्फ ऑफिस की दौड़-धूप नहीं, बल्कि निजी ज़िंदगी में भी बहुत बदलाव – जैसे कि शिफ्टिंग, पैकिंग – चल रहा था। थकान कम करने के लिए विटामिन्स शुरू किए, लेकिन असली थकान तो "बॉस-जनित" थी, जो किसी गोली से दूर नहीं होती!
वो ऐतिहासिक रात – जब अलार्म भी हार गया
इसी हफ्ते की बात है – रात को 9 बजे से 3 बजे तक मज़े से सोए रहे। अचानक 3 बजे रात फोन पर मिस्ड कॉल और मैसेज की बारिश! दोनों मैनेजर बार-बार कॉल कर चुके थे, लेकिन DND (Do Not Disturb) ऑन था, इसलिए सब वॉइसमेल में ही गिर गए। दो साल में पहली बार ऐसा हुआ कि ड्यूटी मिस कर दी।
इस घटना के बाद हमारे नायक ने मैनेजर को माफ़ी भेज दी – "जो मेरी जगह आया, उसकी शिफ्ट मैं अगले हफ्ते कर लूंगा।" लेकिन साथ ही दिल में एक अजीब-सी राहत भी थी – "अगर नौकरी गई तो वो भी मंज़ूर, अब थक गया हूँ!"
ऑफिस की राजनीति, बॉस की चतुराई और कर्मचारियों की मजबूरी
रेडिट पर इस कहानी को पढ़कर कई लोगों ने अपने-अपने अनुभव साझा किए। एक यूज़र ने लिखा – "कभी-कभी थकान का इलाज न सिर्फ़ विटामिन है, बल्कि 'ना' कहना भी है। जब तक आप बॉस की हर एक्स्ट्रा ड्यूटी उठाते रहेंगे, वे आपको ही इस्तेमाल करते रहेंगे।" क्या बात कही! ये तो हर भारतीय कर्मचारी का दर्द है – बॉस 'थके' हों तो आपकी शिफ्ट बढ़ा देंगे, लेकिन जब आप थके हों, तो 'ऑफिस का काम है, करना ही पड़ेगा' सुनने को मिलेगा।
एक और पाठक ने सलाह दी – "अगर मैनेजर चुपचाप शेड्यूल बदल दें और आपको बताएं भी नहीं, तो गड़बड़ होना लाज़िमी है। हर बार शेड्यूल की जानकारी देना उनकी ज़िम्मेदारी है, वरना ऐसी गड़बड़ियाँ होती रहेंगी।" ये बिलकुल वैसा ही है जैसे शादी-ब्याह में मेहमानों को टाइम न बताया जाए, और फिर ग़लतफहमी हो जाए!
DND मोड: छुट्टी का असली जादू
हमारे नायक ने DND (Do Not Disturb) मोड का भी ज़िक्र किया – "अब मैं DND ऑन कर के सोता हूँ, कोई भी बार-बार कॉल करे, तो भी फोन नहीं बजेगा।" कई पाठकों ने DND के फायदे-नुकसान गिनाए। किसी ने बताया कि उनके फोन में चार-चार अलार्म सेट रहते हैं – एक उठने के लिए, एक स्नूज़ के डर से, एक नहाने के लिए और एक घर से निकलने के लिए! भारत में भी लोग अलार्म पर भरोसा कम ही करते हैं, नानी-दादी की आवाज़, या पंखे का रुकना ही असली अलार्म है!
नौकरी और सेहत – कौन है ज्यादा जरूरी?
एक पाठक ने बड़ा गहरा सवाल उठाया – "अगर होटल में सिर्फ एक ही नाइट ऑडिटर है और उसे भी जला डाला, तो फिर होटल का क्या होगा? आज एक कर्मचारी चला जाए, कल दूसरा, लेकिन सेहत लौट कर नहीं आती।" यही बात हमारे समाज में भी लागू होती है – नौकरी मिल जाएगी, लेकिन सेहत गई तो सब बेकार!
अंत में – क्या करें जब थकान हद से पार हो जाए?
कहानी का नायक अब तय कर चुका है – अगर मैनेजर ने फिर से शेड्यूल बिना बताए बदला, या एक्स्ट्रा काम के लिए परेशान किया, तो 'ना' कहने में हिचकिचाएगा नहीं। यही सीख बाकी पाठकों ने भी दी – बॉस की 'हाँ में हाँ' मिलाने से आप ही घाटे में रहते हैं। अपना हक़ जानिए, अपनी सीमाएँ तय कीजिए, और सेहत को सबसे ऊपर रखिए।
आपके साथ भी ऐसा हुआ है?
अगर आपने भी कभी ऑफिस की थकान में ड्यूटी भूल दी हो, या बॉस की वजह से परेशान हुए हों, तो अपनी कहानी जरूर शेयर करें। आपके अनुभव, आपके जज़्बात और आपकी सीख – शायद किसी दूसरे थके हुए कर्मचारी के लिए राहत की वजह बन जाए!
जो भी हो, अगली बार अगर DND ऑन कर के सो रहे हों, तो अलार्म का ध्यान जरूर रखिए – वरना आप भी इस कहानी के नायक की तरह, दो साल बाद एक ऐतिहासिक गलती का शिकार हो सकते हैं!
आपका क्या कहना है – क्या 'ना' कहना वाकई सबसे बड़ा विटामिन है? कमेंट में जरूर लिखिए!
मूल रेडिट पोस्ट: After 2 years, it finally happened