जब दो 'केविन' बने एक-दूसरे के भरोसे: कॉलेज की सबसे बड़ी फजीहत!
कॉलेज का पहला साल... नए दोस्त, नई जगह, और ढेर सारा आज़ादी का एहसास! लेकिन कभी-कभी ये आज़ादी इतनी भारी पड़ जाती है कि इंसान खुद ही अपने लिए मुसीबत खड़ी कर लेता है। आज की कहानी है दो 'केविन' की, जिनकी दोस्ती और लापरवाही ने उनका पूरा साल उल्टा-पुल्टा कर दिया।
कॉलेज लाइफ: दोस्ती, मस्ती और गलतफहमी का तड़का
अगर आपने कभी हॉस्टल या कॉलेज में रहकर पढ़ाई की है, तो आप जरूर समझेंगे कि रूममेट्स का क्या असर होता है। कभी ये दोस्त जिंदगी बना देते हैं, कभी सिरदर्द! हमारे यहां तो कहावत है - "दो नावों में सवार आदमी डूबता ही है," लेकिन ये दोनों केविन तो एक ही नाव को डुबाने में लगे हुए थे।
ये कहानी एक क्रिश्चियन कॉलेज की है, जहां एक 'रूममेट केविन' और 'नाज़ी केविन' नाम के दो दोस्त अपने-अपने तरीके से लापरवाह थे। दोनों ने सोच रखा था कि जब भी किसी जरूरी क्लास में जाना होगा, दूसरा जरूर हाजिर रहेगा। नतीजा? दोनों क्लास में नहीं जाते, बल्कि क्लास के वक्त साथ बैठ कर गप्पें मारते, या फिर गुमनाम 'College Kevin' से मिली अजीबोगरीब दवाइयां (पश्चिमी देशों में इन्हें 'psychedelics' कहते हैं) खा लेते।
एक कमेंट में किसी ने हंस कर लिखा, "ये दोनों साथ में क्लास बंक करते थे और दोनों को लगता था, दूसरा क्लास में है। क्या सच में ऐसा हो सकता है?" इस पर खुद कहानीकार ने जवाब दिया, "उनकी हालत ऐसी हो गई थी कि दिमाग घूम गया, शायद उन अजीब दवाइयों का असर था।"
प्रोफेसर का डर: 'आंटी नंबर वन' जो फेल करवाने की कसम खा बैठीं
अब जरा सोचिए, उस प्रोफेसर का नाम Rate My Professor वेबसाइट पर सबसे नीचे दर्ज है। कहते हैं, "जब शेर भूखा होता है, तो जंगल कांपता है," वैसे ही ये प्रोफेसर अपनी 'फेल करवाने की नीति' के लिए कुख्यात थीं। न लेट असाइनमेंट, न रीटेक, और हाज़िरी तो ऐसे चेक होती थी जैसे सरकारी दफ्तर में बॉस की आंखें!
क्लास में 20% नंबर सिर्फ हाज़िरी के थे, और 20% नंबर छोटे-छोटे क्विज़ के! लेकिन केविन दोनों ही समझ बैठे कि दूसरा सब मैनेज कर लेगा। भारतीय मम्मियों की तरह कोई उन्हें डांटने वाला भी नहीं था! नतीजा – न हाज़िरी, न असाइनमेंट, और न क्विज़।
बवाल की शुरुआत: जब मिली असफलता और आरोपों की बारिश
सेमेस्टर का अंत आया, रिजल्ट सामने था – दोनों केविन की हालत पतली! अब जब पानी सिर से ऊपर चला गया, तो दोनों पहुंच गए उसी प्रोफेसर के पास, जिनसे बचने के लिए क्लास बंक करते थे। ना अपॉइंटमेंट, ना ऑफिस ऑवर का ख्याल; सीधे जा धमके और घुमा-फिरा कर बोले, "हमें पता ही नहीं था ये क्लास इतनी जरूरी है!"
जैसी उम्मीद थी, प्रोफेसर ने कोई रियायत नहीं दी। अब क्या? दोनों ने मिलकर कॉलेज प्रशासन में प्रोफेसर पर नस्लभेद और लिंगभेद (रजिस्ट्रार साहब भी हैरान!) का आरोप लगा दिया। कॉलेज ने भी जांच-पड़ताल के बाद साफ कह दिया, "भैया, अपनी गलती खुद सुधारे, यहाँ कोई भेदभाव नहीं हुआ है।"
एक और कमेंट में किसी ने मज़ाक में लिखा, "ऐसा लगता है जैसे ये कॉलेज उन बच्चों के लिए था जिन्हें माता-पिता ने सुधारने भेजा था!"
सीख की बात: अपनी जिम्मेदारी खुद समझिए, वरना...
आखिरकार, दोनों केविन की सारी चालें उल्टी पड़ गईं। नतीजा – दोनों को उस क्लास में फेल कर दिया गया और GPA (ग्रेड प्वाइंट एवरेज) ऐसी गिरी कि पूरा साल दोबारा पढ़ना पड़ा। बाकी क्लासों में भी क्या हुआ, किसी को नहीं पता, क्योंकि कहानीकार ने दोनों से रिश्ता वहीं खत्म कर लिया।
बचपन में दादी-नानी कहती थीं, "अपनी करनी, अपने सिर!" ये कहानी उसी कहावत को मज़ेदार अंदाज में सच साबित करती है। आज के युवाओं के लिए बढ़िया संदेश – चाहे कितना भी स्मार्ट बनो, मेहनत का कोई शॉर्टकट नहीं!
निष्कर्ष: क्या आपने भी कभी ऐसी गलती की है?
तो दोस्तों, केविन की ये कहानी हमें हंसाती भी है, चौंकाती भी है, और आखिर में सोचने पर मजबूर कर देती है कि कहीं हम भी तो अपने किसी दोस्त के भरोसे खुद की जिम्मेदारी से नहीं भाग रहे?
अगर आपके साथ भी कोई ऐसी घटना हुई हो, जब आपने या आपके दोस्तों ने लापरवाही के चक्कर में मुसीबत मोल ले ली हो, तो कमेंट में जरूर बताइएगा! आपकी कहानी भी किसी केविन को सीख दे सकती है!
चलते-चलते, याद रखिए – 'क्लास बंक करने से ज्यादा जरूरी है, अपनी जिम्मेदारी निभाना!'
मूल रेडिट पोस्ट: NAZI Kevin and roommate kevin unite and it backfires