जब दफ्तर की 'पेटी' नीति ने खर्चा बढ़ा दिया: छोटी सोच, बड़ा बिल!
कई बार दफ्तर की नियमावली इतनी अजीब होती है कि समझ ही नहीं आता – हँसें या सिर पकड़ लें! खर्च कम करने के चक्कर में कंपनियाँ ऐसे-ऐसे नियम बना देती हैं कि कर्मचारी का दिमाग चकरा जाए। आज की कहानी भी ऐसी ही एक कंपनी की है, जहाँ "छोटी सोच, बड़ा नुकसान" का असली मतलब समझ आया।
जब $6 बचाने के चक्कर में $1000 फूँक दिए गए
तो साहब, किस्सा कुछ यूँ है कि हमारे कहानी के नायक (जिन्हें अमेरिका में OP कहा जाता है) पिछले साल ऑफिस के काम से पाँच दिन की कॉन्फ्रेंस में गए। कंपनी ने होटल, यात्रा सबका इंतज़ाम किया, लेकिन डिनर का खर्चा अपने जिम्मे छोड़ दिया। होटल और कॉन्फ्रेंस सेंटर जुड़े हुए थे, तो OP ने कार किराए पर लेने की बजाय एयरपोर्ट से Uber ली (लगभग $60) – बढ़िया सोचा!
अब डिनर के लिए न बाहर जा सकते थे, न होटल में था कोई खास इंतज़ाम। तो DoorDash से खाना मंगवाया और हर दिन की रसीद ऑफिस में लगा दी। यहाँ कंपनी की 'पेटी' पॉलिसी आड़े आ गई – बोले, डिलीवरी फीस ($6 प्रतिदिन) का पैसा नहीं मिलेगा! बाकी खाने का मिल जाएगा, लेकिन डिलीवरी चार्ज 'अयोग्य खर्च' है।
OP ने भी सोचा – "ठीक है भाई, नियम तो नियम हैं।" अगले साल वही कॉन्फ्रेंस, लेकिन इस बार टशन से एयरपोर्ट से कार किराए पर ली, होटल पार्किंग और पेट्रोल का खर्चा भी कंपनी के जिम्मे डाला। पाँच दिन का कुल खर्च – सीधा $1000! अब डिलीवरी चार्ज तो बच गया, लेकिन कंपनी की जेब से गई मोटी रकम!
दफ्तर की दिमागी कसरत: 'छोटी बचत, बड़ा घाटा'
ये कहानी पढ़कर एक Reddit यूज़र ने बढ़िया कमेंट किया – "एक रुपया बचाने के लिए दस खर्च कर दिए!" (हमारी भाषा में – ‘पैसे के पीछे भागो, लाख गंवाओ’)। ऐसी ही सोच अक्सर हमारे सरकारी दफ्तरों, बैंकों या बड़ी कंपनियों में भी देखने को मिलती है।
एक और यूज़र (जो खुद अकाउंटेंट हैं) ने लिखा – "हमारे यहाँ तो टैक्स ऑफिस सबको चोर मानता है, लेकिन मैं तो डिलीवरी फीस भी मंज़ूर कर देता।" यानी कई बार नियम ज़रूरी हैं, पर दिमाग भी लगाना चाहिए।
यहाँ भारत में भी ऐसा खूब देखने को मिलता है – कभी ट्रेन टिकट के फालतू चार्ज, कभी ऑफिस में 'टीए-डीए' का पेंच, तो कभी सरकारी छुट्टियों का हिसाब। नियम इतने जटिल बन जाते हैं कि असल में नुकसान कंपनी या ऑफिस को ही होता है।
नियम बनाम समझदारी: किसका पलड़ा भारी?
कहावत है – "नियम तोड़ने से बड़ा जुर्म, नियम बिना दिमाग लगाए मानना है!" Reddit पर एक और यूज़र ने मज़ेदार किस्सा सुनाया – "मुझे ट्रेनिंग के लिए पास वाले होटल में नहीं रुकने दिया, क्योंकि बजट से 10 पाउंड ज्यादा था। नतीजा – दूर के होटल में रुका और टैक्सी का चार गुना खर्च ऑफिस ने दिया!"
हिंदुस्तान में भी कितनी बार देखा है – किसी को ऑफिस कैब नहीं मिली तो अपना ऑटो किया, लेकिन रसीद न होने के कारण पैसा नहीं मिला। तो अगली बार सबने बड़ी गाड़ी बुक कर ली, भले ही महंगी हो। ऐसे में न कर्मचारी खुश, न कंपनी का फायदा।
एक कमेंट में किसी ने लिखा – "कंपनी वाले छोटी-छोटी चीज़ों पर बचत करने के चक्कर में बड़ी रकम गंवा देते हैं।" यही बात यहाँ भी लागू होती है – 'पैसे-पैसे जोड़ के करोड़ों का नुकसान!'
असली 'पेटी रिवेंज': सिस्टम को उसकी भाषा में जवाब
हमारा नायक OP भी यही सोच रहा था – "जब नियम इतने सख्त हैं, तो मैं भी उनका पूरा इस्तेमाल करूंगा!" अगले साल कार किराए पर लेकर, पेट्रोल और पार्किंग का बिल लगाकर ऑफिस को दिखा दिया कि डिलीवरी फीस बचाने के चक्कर में असल में कितना खर्च बढ़ गया।
कई यूज़र्स ने इसे 'जबरदस्त बदला' माना – "नियम बनाओ, तो खुद भुगतो!" एक और ने लिखा – "कभी-कभी ऐसी मूर्खता पर हँसी भी आती है, और गुस्सा भी!"
यह किस्सा हमें सिखाता है कि ऑफिस या कंपनी में नियम बनाते समय सिर्फ किताब की बातें नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत भी देखनी चाहिए। कर्मचारी अगर ईमानदारी से काम कर रहा है, तो छोटी-छोटी डिलीवरी फीस पर रोक लगाने से कंपनी का कोई भला नहीं होता। उल्टा, खर्चा और बढ़ जाता है!
पाठकों से सवाल: आपके ऑफिस में भी ऐसे अजीब नियम हैं?
दोस्तों, क्या आपके दफ्तर में भी ऐसे अजीबोगरीब खर्च के नियम हैं, जिनका कोई सिर-पैर नहीं? या आपने कभी ऐसी 'पेटी रिवेंज' ली हो, जिससे बॉस या ऑफिस को अपनी गलती का एहसास हुआ हो?
नीचे कमेंट में जरूर बताइए – आपकी कहानी भी किसी को हँसा सकती है, तो किसी को सिखा भी सकती है! और हाँ, अगली बार ऑफिस का खर्चा भरते वक्त ये किस्सा जरूर याद रखिएगा – कहीं कंपनी को 'छोटी सोच, बड़ा घाटा' न हो जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Don’t want to pay delivery…okay then