जब दफ्तर के नियमों ने बॉस को ही चूना लगा दिया: एक छोटी सी मेहरबानी, हज़ारों यूरो का झटका
हमारे देश में दफ्तर के नियम-कानून अक्सर सिर्फ नाम के लिए होते हैं। चाय-पानी से लेकर, प्रिंटर पर अपने बच्चों की प्रोजेक्ट निकालने तक, हर कोई थोड़ी-बहुत 'जुगाड़' करता ही है। पर सोचिए, अगर किसी दिन बॉस आप पर सख्ती कर दे और कह दे—"ऑफिस का सामान सिर्फ ऑफिस के काम के लिए!" तो फिर क्या होगा? आज की कहानी इसी मुद्दे पर है, जिसमें एक छोटा सा निजी काम, बॉस की कड़ाई और फिर नियमों का 'घातक' पालन, कंपनी को भारी पड़ गया।
जब नियमों की सख्ती उल्टा पड़ गई
कहानी है एक आर्किटेक्ट साहब की, जो किसी यूरोपीय देश की कंपनी में काम करते थे। एक दिन उन्होंने ऑफिस के लैपटॉप पर फ़ोटोशॉप से अपनी बेटी का बर्थडे इनविटेशन बना लिया। कुल दस मिनट का काम था, न कोई बड़ा अपराध, न ही कंपनी को कोई नुकसान। लेकिन बॉस को पता चल गया। वो बड़े ही तेवर में बोले, "कंप्यूटर सिर्फ काम के लिए है, पर्सनल इस्तेमाल मना है।"
अब साहब ने भी सिर झुका कर 'ठीक है' कह दिया। आखिर बॉस के सामने कौन बहस करे?
नियमों का 'ईमानदारी से' पालन—और बॉस की फजीहत
अगले ही हफ्ते, आर्किटेक्ट साहब को एक नए शहर में सर्वे के लिए भेजा गया। कंपनी ने टेप माप, लेज़र—all प्रोफेशनल टूल्स दिए, लेकिन कैमरा नहीं दिया। सर्वे हो गया, वो वापस लौट आए। बॉस ने पूछा—"फोटो कहाँ हैं?"
अब सुनिए जवाब—"मैंने कोई फोटो नहीं ली, क्योंकि मेरा मोबाइल पर्सनल है।"
बॉस के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था, लेकिन वो कुछ बोल नहीं पाए। क्योंकि कुछ महीने पहले ही साहब ने ऑफिस से वर्क फोन मांगा था, जो कंपनी ने देने से मना कर दिया था।
कंपनी की जेब पर पड़ा भारी—'हद से ज्यादा नियम पालन'
अगले ही दिन, डेस्क पर एकदम नया Samsung फोन रखा मिला। अब दुबारा उसी शहर जाना पड़ा—फिर से फ्लाइट, होटल, और खर्चा कंपनी के सिर! एक छोटा सा नियम, और कंपनी की जेब हल्की, वो भी केवल दस मिनट के पर्सनल काम के लिए।
यह सुनकर आपको शायद बचपन की वो कहावत याद आए—"बिल्ली के गले में घंटी बांधना आसान नहीं।" ऑफिस के नियम भी कभी-कभी ऐसी ही घंटी बन जाते हैं, जो खुद बॉस के गले पड़ जाती है।
कम्युनिटी की बातें—जैसे अपने देश की तासीर
रेडिट पर इस किस्से ने खूब धूम मचाई। एक यूज़र ने लिखा—"ये है असली malicious compliance, बॉस को उन्हीं के नियम का स्वाद चखाया!"
एक और ने बड़ी कमाल की बात कही—"देखो, नियमों का पालन करना बुरा नहीं, पर जब वो तर्कहीन हो जाएं, तो नुकसान कंपनी को ही होता है।"
कुछ लोगों ने तो यह भी लिखा कि वर्क फोन मिलना इनाम नहीं, बल्कि सिरदर्द है। "अब कंपनी 24x7 पकड़ में रहेगी, मज़ा आया क्या?" हमारे देश में भी वॉट्सएप या कॉल्स की बाढ़ वर्क फोन पर आती है, और कई लोग दफ्तर छूटते ही फोन को साइलेंट करके बैग में डाल देते हैं।
एक मज़ेदार कमेंट था—"ऑफिस का फोन सिर्फ ऑफिस के टाइम में चालू, घर जाते ही डेस्क पर छोड़ दो!" यानी, दफ्तर का काम दफ्तर तक सीमित रहे, निजी जिंदगी में दखल न हो।
भारतीय दफ्तरों में भी यह जंग जारी है
हमारे यहां भी ऐसे किस्से कम नहीं। कितनी बार आपने सुना होगा—"प्रिंटर, इंटरनेट, चाय—सब ऑफिस का है, पर देखो, बॉस की नजर न पड़े।" कभी-कभी तो कोई स्टाफ अपने बच्चों की फीस या शादी के कार्ड प्रिंट करवा लेता है और पकड़े जाने पर सिर झुका लेता है।
लेकिन अगर कंपनियां नियमों को लेकर ज़्यादा सख्त हो जाएं, तो कर्मचारियों को भी 'सिस्टम' समझ में आ जाता है। फिर शुरू होता है 'नियमों का अक्षरशः पालन'—जिसका नतीजा कभी-कभी बहुत महंगा पड़ जाता है।
कोई भी कंपनी हो, अगर वह अपने कर्मचारियों को साधारण इंसान समझे और थोड़ा भरोसा दिखाए, तो ऐसी नौबत ही न आए। आखिरकार, दस मिनट की मेहरबानी और हज़ारों की चपत में बहुत फर्क है!
निष्कर्ष—क्या सीखें हम इस कहानी से?
तो साथियों, इस कहानी से साफ है—नियम ज़रूरी हैं, पर उनमें लचीलापन रखना और इंसानियत को न भूलना भी उतना ही अहम है। अगर बॉस ने थोड़ी नरमी दिखाई होती, तो न कंपनी को नुकसान होता, न ही दोबारा यात्रा की नौबत आती।
अब आपकी बारी है—क्या आपके ऑफिस में भी ऐसे 'हद से ज्यादा नियम प्रेम' का किस्सा हुआ है? या कभी आपको भी बॉस ने 'केवल काम के लिए' वाला डायलॉग मारा है? कमेंट में बताइए, और अगर कहानी पसंद आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर कीजिए।
काम की दुनिया है जनाब, यहां कभी-कभी थोड़ा 'जुगाड़' करना भी जरूरी है, वरना नियम खुद ही आपको चूना लगा देंगे!
मूल रेडिट पोस्ट: A ten minute favor vs thousand euro bill