जब थीम पार्क में रेडियो की बैटरी ने करवा दिया झूला बंद: एक अजीब दास्तान
सोचिए, आप गर्मी की छुट्टियों में एक थीम पार्क में काम कर रहे हैं, दोस्त हैं, मौज है, मस्ती है, लेकिन अचानक एक छोटी सी बैटरी आपकी पूरी टीम की नींद उड़ा देती है! जी हाँ, आज की कहानी है एक ऐसे ही थीम पार्क की, जहाँ एक रेडियो की बैटरी ने सबको नचा डाला—और मैनेजमेंट की बेवकूफी ने सबका दिमाग घुमा दिया।
कई बार ऑफिस या काम की जगह पर मैनेजमेंट इतने अजीब नियम बना देता है कि समझ नहीं आता, हँसा जाए या सिर पकड़ा जाए। ‘अगर एक रेडियो की बैटरी खत्म हो जाए, तो पूरा झूला बंद!’ — बस, इसी अजीब नियम ने यहाँ सबकी शामत ला दी।
झूले के पीछे की कहानी: जिम्मेदारी और जुगाड़
हमारे नायक (या यूँ कहें, ‘शिकार’) 17 साल की उम्र में थीम पार्क में काम कर रहे थे। जैसा हमारे यहाँ अक्सर होता है, जब कोई बच्चा तेज-तर्रार निकले, तो सारी जिम्मेदारी उसी के सिर पर डाल दी जाती है। टीम में कॉलेज का एक इंटर्न लीड (यहाँ M कह लें) था, जो ना तो काम में माहिर था, ना ट्रेनिंग देने में।
अब इस झूले को चलाने के लिए कम से कम तीन लोग चाहिए—एक कंट्रोल बूथ में, एक एंट्री पर, एक एग्जिट पर। सबकी सीधी नजर एक-दूसरे पर नहीं पड़ती, इसलिए रेडियो का इस्तेमाल होता था। अगर रेडियो फेल हो जाए, तो हाथ के इशारे—यानी देसी जुगाड़! ये इशारे पूरे पार्क में मान्य थे, जैसे हमारे गाँव में दूर से चिल्ला के बुलाने की बजाय इशारे कर लेते हैं।
बैटरी ड्रामा और मैनेजमेंट की ‘चतुराई’
एक दिन पार्क में भारी भीड़ थी। M को किसी और झूले पर भेज दिया गया। काम चल ही रहा था और अचानक रेडियो की बैटरियां एक-एक कर दम तोड़ने लगीं। हमारे नायक ने सोचा, चलो रेडियो की बैटरी बदल लाते हैं—कुल 10 मिनट लगे। वापस आए तो देखा, M ने फिर अपना पल्ला झाड़ लिया और किसी और को भेज दिया, जो उस झूले का इतना माहिर नहीं था।
बस, यहीं से हंगामा शुरू। कंट्रोल पर नया लड़का था, अचानक झूला कुछ फीट ऊपर जाकर रुक गया। एंट्री गेट का लड़का फेंस के अंदर फँस गया—मतलब झूले के खतरनाक इलाके में। शुक्र है, कंट्रोल वाले ने फौरन E-Stop दबा दिया, वरना बड़ी अनहोनी हो सकती थी।
मैनेजमेंट की ‘लाजवाब’ कार्यशैली और कर्मचारियों की कुर्बानी
अब आई मैनेजमेंट की बारी! ऊपर से बड़े-बड़े अफसर आए, सबको अलग-अलग बुलाकर पूछताछ—ऐसे जैसे CID के ACP साहब हों। नया लड़का तुरंत बर्खास्त, बाकी टीम को भी हटा दिया गया। ऊपर से इल्जाम—‘रेडियो की बैटरी तुम ले गए थे, इसलिए हादसा हुआ।’ भाई, बैटरी तो वापस भी लाए थे, और इशारे भी थे! लेकिन मैनेजमेंट को किसे सुनना था?
एक कमेंट में किसी ने खूब लिखा, “असल गलती रेडियो या बैटरी की नहीं, बल्कि लीड (M) की थी, जिसने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लिया।” (कहावत है न, जब नाव डूबे, तो नाविक ही सबसे पहले भागता है!) लेकिन यहाँ तो उल्टा कर्मचारियों को ही बलि का बकरा बना दिया गया।
नया नियम और जुगाड़ का जवाब
अब मैनेजमेंट ने नया नियम बना दिया—एक भी रेडियो की बैटरी खत्म हो जाए, तो झूला बंद। अब सोचिए, हमारे यहाँ जैसे बिजली गई नहीं कि सब काम ठप, वैसे ही झूला बंद! अगली बार जब रेडियो की बैटरी खत्म हुई, हमारे नायक ने नियम का पूरा पालन किया—झूला बंद, लाइन में लगे दर्जनों लोग गुस्से से आगबबूला! सबको बताया—रेडियो की बैटरी के चक्कर में बंद है। कुछ देर में मैनेजर दौड़ते आए, नई बैटरी दी और चुपचाप चले गए।
अब मजेदार बात—लोगों की शिकायतों के बाद, मैनेजमेंट को समझ आ गया कि उनका नियम कितना बेतुका है। आखिरकार, फिर से हाथ के इशारे मान्य कर दिए गए। एक पाठक ने टिप्पणी की, “सही कर दिया, भीड़ को असली वजह बताकर सही लोगों को कटघरे में खड़ा कर दिया।”
‘मालिशियस कम्प्लायंस’ का असली मजा
यह कहानी एकदम देसी अंदाज में ‘मालिशियस कम्प्लायंस’ (मतलब, नियम का हद से ज्यादा पालन करके उसकी असलियत दिखा देना) की मिसाल है। जैसे हमारे दफ्तरों में कई बार बॉस कोई बेतुका आदेश दे दें, और फिर जब नतीजा उल्टा पड़ जाए तो खुद ही माथा पीट लें! यहाँ भी ठीक वही हुआ—नायक ने नियम का पालन किया, और मैनेजमेंट को अपनी गलती का अहसास हो गया।
एक कमेंट में किसी ने लिखा, “थीम पार्क में हर साल नई-नई टीम आती है, पुराने मैनेजर चले जाते हैं, और अगली बार सिस्टम सुधर जाता है।” यही हुआ—अगले साल वही नायक वापस आया, इस बार खुद लीडर बनकर, और जिम्मेदारी भी निभाई।
निष्कर्ष: हर नियम का तोड़ भी होता है, जुगाड़ भी!
तो भाइयों-बहनों, इस कहानी से दो बातें सीखने लायक हैं—एक, कभी-कभी मैनेजमेंट के फैसलों का विरोध नियम से ही करना चाहिए; और दूसरी, हर जगह देसी जुगाड़ (हाथ के इशारे, आपसी समझ) का कोई न कोई फायदा निकल ही आता है।
क्या आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा कोई अजीबो-गरीब नियम बना है? या कभी ‘मालिशियस कम्प्लायंस’ का मजा लिया है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, आपकी कहानी भी अगली बार छापेंगे!
मूल रेडिट पोस्ट: If a single radio's battery dies, shut it all down