जब तूफ़ान के बाद ट्रैवल एजेंट्स ने मचाया हंगामा: ‘ATM में पैसे नहीं, तो रिसॉर्ट जिम्मेदार!’
‘मेहमान भगवान होते हैं’—यह कहावत भारतीय होटलों में अक्सर सुनने को मिलती है। लेकिन जब मेहमान खुद को राजा समझ लें और हर मुसीबत का ठीकरा रिसॉर्ट के माथे फोड़ें, तब क्या हो? आज की कहानी है एक ऐसे ही लग्ज़री रिसॉर्ट की, जहां तूफ़ान के बाद ‘ट्रेवल एजेंट्स’ का गुस्सा पूरे स्टाफ पर टूट पड़ा। सोचिए, तूफ़ान के बाद जब लोग राहत की सांस ले रहे हों, तब कुछ मेहमान ATM खाली होने पर हंगामा मचा रहे हों—वो भी ऐसे कि मानो रिसॉर्ट ने खुद बादलों से कह दिया हो कि ‘आज बरस जाओ!’
तूफ़ान के बाद की सुबह: जंग के मैदान में रिसॉर्ट
ये किस्सा कुछ साल पहले का है, जब मैं कॉलेज से निकलकर पहली बार एक लग्ज़री रिसॉर्ट में नौकरी कर रहा था। आमतौर पर यहाँ हर चीज़ शानदार होती थी—लेकिन उस रात एक भयंकर तूफ़ान ने सब उलट-पुलट कर दिया। शुक्र था कि जान-माल का नुकसान बहुत कम हुआ, पर अगली सुबह रिसॉर्ट का नज़ारा ऐसा था जैसे किसी युद्ध के बाद बची-खुची फौज हो। हर कर्मचारी अपनी ड्यूटी के साथ-साथ मेहमानों की भावनाओं को भी संभाल रहा था। कोई रिफंड मांग रहा था (जैसे मौसम हमारे हाथ में हो!), कोई किसी कमरे की शिकायत कर रहा था, तो कोई बस दिलासा चाहता था।
इसी अफरातफरी में दो ट्रैवल एजेंट्स—एक लंबा, एक छोटा—गुस्से से तमतमाए हुए फ्रंट डेस्क पर आ पहुंचे। लंबा साहब बोले, “ATM में पैसे नहीं हैं!” अब भैया, ये तो ऐसा ही हुआ जैसे कोई कहे—“सड़क पर पानी भर गया, होटल साफ़ कराओ!” छोटा महाशय तो और दो कदम आगे निकले। वो तो गुस्से में फ्रंट डेस्क के सामने रखी संगमरमर की मेज़ पर मुट्ठियाँ बरसाने लगे!
जब गुस्सा सातवें आसमान पर हो और तर्क धरती पर...
छोटा एजेंट तो ऐसे भड़के कि मानो चाय में मक्खी गिर गई हो—मेज़ पर हाथ पटक-पटककर बोले, “कैश एडवांस दो!” होटल की नीति के हिसाब से ये मुमकिन नहीं था, इसलिए मैंने politely कहा, “सर, एक मिनट, मैनेजर से पूछ लेता हूँ।” बस, इतना सुनते ही जैसे बत्तीसी में मिर्च लग गई! छोटा महाशय मैनेजर के सिर पर मंडराने लगे, उनकी personal space में घुस गए। एक सीनियर सहकर्मी (जो कद-काठी में अच्छे खासे थे) आकर चुपचाप पास खड़े हो गए। उनकी मौजूदगी ही काफी थी—आधा गुस्सा वहीं ठंडा पड़ गया।
इस हंगामे को देखकर बाकी ट्रैवल एजेंट्स भी आ जुटे। अब पूरी टोली तैयार थी—जैसे बारात में नाचते-गाते बाराती!
‘मेहमान’ बनाम ‘अधिकार’: कब तक सहें होटल वाले?
आमतौर पर ट्रैवल एजेंट्स का होटल में बड़ा रुतबा होता है—आखिर वे ही तो अगले सीज़न में ग्रुप बुकिंग दिलवाते हैं! पर इस बार होटल मैनेजर ने सब्र का प्याला छलका दिया। जनरल मैनेजर ने साफ़ आदेश दिया—इन सबकी रूम की चाबियां डिएक्टिवेट कर दो और इन्हें बाहर का रास्ता दिखाओ। मैं चौंक गया—but दिल ही दिल में मिठाई बंट रही थी!
बाकी एजेंट्स बचाव में आए—“अरे, छोटा तो बस हमारे ग्रुप में आया था, हम जानते नहीं उसे!” पर होटल स्टाफ ने भी ठान लिया था—अब कोई बहाना नहीं चलेगा। वैसे भी, ये वही लोग थे जो बार-बार पुराने होटल की तारीफ कर रहे थे—जिसे तूफ़ान में सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ था! कुछ पाठक सोच सकते हैं, क्या होटल ने रिफंड दिया? एक कमेंट में किसी ने लिखा, “मेरा कज़िन भी ऐसे ही एक तूफ़ान में फँसा था—रिफंड तो मिला ही नहीं, मौसम का जोख़िम खुद लेना पड़ता है।”
सोशल मीडिया की सीख: ‘ATM खाली है, होटल दोषी है?’
रेडिट पर इस किस्से पर एक पाठक ने शानदार तंज कसा, “ATM में स्याही खत्म हो गई है, इसलिए पैसे नहीं निकल रहे!” (जैसे बैंक वाले नोट छापने की मशीन साथ लेकर घूमते हैं)। एक और कमेंट ने बिल्कुल सही कहा—“कभी मत मानो कि कोई भी शख्स नुकसान नहीं कर सकता।” यानी, गुस्से में आदमी क्या कर बैठे, कौन जानता है!
कुछ लोगों ने सवाल उठाए—“क्या किसी को रिफंड मिला?” जवाब में एक यूज़र ने कहा, “भैया, सस्ते में सीज़न में बुकिंग करोगे तो रिस्क भी खुद उठाना पड़ेगा!” यानी, ‘जहाँ सस्ता, वहाँ खतरा।’
एक और पाठक ने मज़ेदार तर्जुमा किया—“मुझे समझ नहीं आता कि होटल को ATM खाली होने की ज़िम्मेदारी क्यों दी गई? जैसे होटल वाले बादल फाड़ सकते हैं या नोट छाप सकते हैं!”
अंत में: सबक और मुस्कान
इस पूरी घटना से एक बात साफ़ है—कभी-कभी मेहमानों की अपेक्षाएँ आसमान छू जाती हैं, और होटल वालों की मजबूरी ज़मीन से भी नीचे चली जाती है। हर भारतीय ने कभी न कभी ऐसे ‘हक़ जताने वाले’ मेहमान देखे हैं—चाहे वो शादी में फाइव स्टार दाल मांग रहे हों, या ट्रेन लेट होने पर टीटी से झगड़ रहे हों।
तो अगली बार जब तूफ़ान आए, ATM खाली हो, या कोई और आफ़त टूट पड़े—ज़रा सोचिए, होटल वाले भी इंसान हैं! और हाँ, कभी-कभी ‘अतिथि देवो भव’ का अर्थ ये भी होता है कि अगर अतिथि मर्यादा लांघ जाए, तो विदा कर देना ही बेहतर है।
आपकी राय क्या है—क्या होटल का रवैया सही था, या ट्रैवल एजेंट्स का गुस्सा जायज़ था? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए, और अगर आपके साथ भी कोई मज़ेदार ‘मेहमान बनाम होटल’ किस्सा हुआ हो, तो ज़रूर साझा करें!
मूल रेडिट पोस्ट: Travel Agents Tantrums Because the ATM Is Empty After Hurricane