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जब डॉगी की टट्टी बनी बदला: पड़ोसी की अजीब 'डॉग फोबिया' का अनोखा जवाब

एक एनीमे-शैली की चित्रण जिसमें एक ऊँची इमारत के कॉन्डो में एक कुत्ता लिफ्ट का इंतज़ार कर रहा है, शहरी पालतू चुनौतियों को दर्शाता है।
इस जीवंत एनीमे दृश्य में, एक व्यस्त 35-मंजिला कॉन्डो में लिफ्ट का इंतज़ार करने की चुनौती को जीवंत किया गया है, साथ ही शहरी जीवन में कुत्ता पालने के कठिनाइयों को भी। आप ऊँची इमारत में पालतू देखभाल कैसे करते हैं?

अगर आपने कभी ऊँची-ऊँची बिल्डिंगों में रहना अनुभव किया है, तो आप जानते होंगे कि वहाँ की लिफ्टें सुबह-शाम किसी सरकारी दफ्तर की लाइन से कम नहीं लगतीं। सोचिए, आप अपने प्यारे डॉगी के साथ 34वीं मंजिल पर रहते हों, और हर घंटे उसे नीचे टहलाने ले जाना पड़े—वो भी तब, जब लिफ्ट के लिए 15-20 मिनट तक इंतज़ार करना आम बात हो। अब ऐसे माहौल में अगर कोई पड़ोसी सिर्फ इसलिए आपको रोक दे क्योंकि उसे कुत्तों से डर लगता है, तो आपके दिमाग की बत्ती तो वैसे ही गुल हो जाएगी!

ऊँची बिल्डिंग, लंबा इंतज़ार और डॉगी की मुश्किलें

हमारे कहानी के नायक—चलो इन्हें 'शर्मा जी' कह लेते हैं—का किस्सा भी कुछ ऐसा ही है। शर्मा जी का प्यारा लैब्राडोर 'बुब्बा' बीमार हो गया था। डॉक्टर ने ऐसा इलाज दिया कि बुब्बा को हर घंटे बाहर जाना जरूरी था। सोचिए, 34वीं मंजिल से बार-बार नीचे जाना, और ऊपर से लिफ्ट का जाम—ये तो किसी 'कुंभ के मेले' की भीड़ के बराबर अनुभव है।

अब मुसीबत तब बढ़ी जब एक पड़ोसन, जिन्हें 'मिश्रा आंटी' कह सकते हैं, हर बार शर्मा जी और उनके डॉगी को देखकर लिफ्ट अपने लिए ‘आरक्षित’ करना चाहती थीं। उनका कहना, "मुझे कुत्तों से डर लगता है, आप अगली लिफ्ट ले लीजिए।" ज़रा सोचिए, सुबह 7 बजे या शाम 5 बजे का वक्त, ऑफिस जाने-आने की भागदौड़, और किसी को 15 मिनट और रुकने को बोला जाए, वो भी बिना किसी वाजिब वजह के!

पड़ोसन का 'डॉग फोबिया' या कुछ और?

अब यहाँ मज़ेदार बात ये थी कि मिश्रा आंटी सिर्फ डरती नहीं थीं, बल्कि कई बार तो दूसरों के कुत्तों को लात भी मार देती थीं या पकड़ने की कोशिश करती थीं। एक पाठक की टिप्पणी थी, "अगर सच में डर लगता हो, तो कोई किसी डॉगी को छूने या लात मारने की हिम्मत नहीं करेगा। असली डरपोक तो दूर-दूर रहते हैं।"

एक और पाठक ने लिखा, "लगता है आंटी को कुत्तों से प्यार नहीं, नफ़रत है।" वैसे भी, हमारे समाज में देखा गया है—जो लोग सच में डरते हैं, वो आमतौर पर बस नजरें फेर लेते हैं या रास्ता बदल लेते हैं, मारपीट या छेड़छाड़ नहीं करते।

टट्टी से बदला: जब गुस्सा हुआ काबू से बाहर

एक दिन हद तब हो गई, जब मिश्रा आंटी ने शर्मा जी के बुब्बा को पकड़ने की कोशिश की। अब शर्मा जी भी इंसान हैं, और बुब्बा तो उनका परिवार जैसा है। शर्मा जी ने सोचा, "अब बहुत हुआ!"

यहीं से शुरू हुई ‘टट्टी वाली जंग’। शर्मा जी ने बुब्बा की हर बार की टट्टी को बैग में डालकर मिश्रा आंटी के दरवाज़े के बाहर चुपचाप रख दिया। अगली सुबह आठ बजे तक, दरवाज़े पर दस चमचमाते ‘पैकेट’ सजे थे। किसी ने कमेंट किया, "भले ही ये हरकत छोटी हो, पर जिसने कुत्ते को लात मारी हो, उसे तो ये सबक मिलना ही चाहिए!"

किसी और ने लिखा, "ये तो पड़ोसीगिरी की हद है—भाई, गुस्सा हो तो भी टट्टी से बदला? खुशबू पूरे फ्लोर तक जाती होगी!" एक और पाठक बोले, "अरे, असली समाधान तो यही था कि दोनों लिफ्ट में भिड़ जाते—ना रहेगा बांस, ना बजेगी बांसुरी!"

डॉगी के मालिक और पड़ोसी—कौन सही, कौन गलत?

यहाँ बहस यही थी कि डॉगी की टट्टी दरवाजे पर छोड़ना कितना जायज़ है? कई लोगों को लगा, ये दोनों ही अपनी-अपनी जगह गलत थे। कोई बोला, "अगर किसी को सच में डर हो, तो वो लिफ्ट में आते वक्त खुद ही सावधान रहेगा, दूसरों के डॉगी को मारने या पकड़ने की कोशिश नहीं करेगा।"

एक दिलचस्प कमेंट था, "अगर कोई मेरे डॉगी को लात मारे, तो मैं भी उसी अंदाज़ में जवाब दूँगा!" और किसी ने तो अपने बचपन की कहानी सुनाई, "मेरी मम्मी ने एक बार हमारे डॉगी को लात मारने वाले को पकड़कर धमकी दी थी कि उसके कानों की बालियां भी बना देंगे!"

भारतीय संदर्भ में कुत्ता-प्रेम और पड़ोसी-पत्र

हमारे यहाँ, मोहल्ले के कुत्ते से लेकर घर के पालतू तक, हर किसी की अपनी जगह है। लेकिन जब बात आती है साझा जगहों की—जैसे लिफ्ट, पार्क या गली—तो थोड़ा लिहाज और समझदारी जरूरी है। आखिर, एक फ्लैट में रहने का मतलब है कि कुछ समझौते सभी को करने पड़ते हैं।

शायद शर्मा जी को भी गुस्से में टट्टी वाली हरकत न करनी चाहिए थी, और मिश्रा आंटी को भी अपने डर या नफरत को दूसरों के डॉगी पर नहीं निकालना चाहिए था।

निष्कर्ष: आप क्या सोचते हैं?

तो पाठको, आपकी राय में इस किस्से में किसकी गलती ज्यादा थी? क्या टट्टी से बदला लेना वाजिब है? या फिर ऐसे मामलों में बातचीत और समझदारी ही सबसे बेहतर हल है?

नीचे कमेंट में जरूर बताएं—क्या आप भी कभी ऐसे किसी ‘पेट्टी रिवेंज’ का हिस्सा बने हैं? या आपके मोहल्ले में भी कोई ‘लिफ्ट वाली आंटी’ है?

कुत्तों से डरना या उनसे प्यार करना—दोनों ही आम बात है, लेकिन इंसानियत सबसे ऊपर होनी चाहिए। और हाँ, अगली बार लिफ्ट में जाएं तो अपने डॉगी का ध्यान रखें—कहीं कोई 'मिश्रा आंटी' टट्टी का बदला न ले ले!


मूल रेडिट पोस्ट: Want to demand an elevator for yourself because you are afraid of dogs? Hope you like the smell of poo in a bag.