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जब डॉक्टर के टॉयलेट ने बदला लिया: एक छोटी-सी मगर मजेदार बदला कहानी

टॉयलेट की परेशानी से कौन नहीं गुज़रा है? लेकिन जब ये परेशानी डॉक्टर के क्लिनिक में हो, वो भी ऐसे डॉक्टर के यहाँ जिसे देखकर आपको मदद की उम्मीद हो – तब मामला कुछ और ही हो जाता है। आज की कहानी है एक ऐसे मरीज की, जिसने अपने डॉक्टर की लापरवाही का अनोखा और मजेदार बदला लिया। कहानी में ट्विस्ट है, ह्यूमर है और थोड़ा-सा ताना भी – जैसा कि हमारे हिंदी समाज में अक्सर होता है।

डॉक्टर का क्लिनिक और टूटा हुआ टॉयलेट: मरीज की असली परीक्षा

कल्पना कीजिए, आप मानसिक परेशानी से जूझ रहे हैं, डॉक्टर के पास उम्मीद लेकर जाते हैं, और वहाँ के टॉयलेट में ही आफत है! Reddit यूज़र u/MrCokeHead ने अपनी आपबीती साझा की कि वे लगभग साढ़े पाँच साल तक एक मनोचिकित्सक ‘Dr. Hag’ के पास गए। शुरू में सब ठीक था, पर धीरे-धीरे डॉक्टर की बेरुखी और जजमेंटल स्वभाव ने उनकी मुश्किलें बढ़ा दीं।

इसी बीच, क्लिनिक का एकमात्र बाथरूम महीनों से खराब पड़ा था। डॉक्टर और उनके साथी तो पास की बिल्डिंग के बाथरूम इस्तेमाल कर लेते, पर बेचारे मरीजों को या तो खुद को रोकना, या दूर किसी कैफे में भागना पड़ता! सोचिए, किसी को मजबूरी में सेशन बीच में छोड़कर Starbucks के बाथरूम तक जाना पड़े – भारतीय संदर्भ में तो ये मानो रेलवे स्टेशन का पब्लिक टॉयलेट खोजने जैसी त्रासदी है!

डॉक्टर से टाइम बदलने की भी गुजारिश की, पर डॉक्टर साहिबा ने दो टूक मना कर दिया। ये सिलसिला करीब दो महीने चला – मरीज की परेशानी, डॉक्टर की अनदेखी और बाथरूम का ताला।

बदले की बयार: जब सब्र का बाँध टूट गया

अब होता है असली ट्विस्ट! एक दिन, मरीज ने तय किया कि अब और नहीं सहेंगे। इस बार सेशन के दौरान खुद को रोक लिया, सेशन खत्म कर वेटिंग रूम में बैठ गए, जब अगला मरीज डॉक्टर के पास चला गया तो 10-15 सेकंड बाद... मरीज ने उसी टूटी टॉयलेट में कोहराम मचा दिया!

यहाँ दिलचस्प बात ये थी कि टॉयलेट में पानी तो था, मगर फ्लश काम नहीं करता था। यानी देखने में सब सामान्य, लेकिन असल में ‘बारूद’ छुपा हुआ। अगला मरीज या स्टाफ जब आता, तो हैरान रह जाता। Reddit यूज़र ने बड़ी मासूमियत से लिखा – शायद यही वजह थी कि आखिरकार किसी ने प्लंबर बुलाया और अगले हफ्ते टॉयलेट ठीक हो गया।

कम्युनिटी की चुटीली प्रतिक्रियाएँ: “छोटा पैकेट, बड़ा धमाका!”

Reddit पर इस किस्से ने सबका दिल जीत लिया। एक कमेंट में किसी ने लिखा, “यही तो असली ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ है – बिना शोरगुल के दुश्मन का बजट हिला दिया!” (हमारे भारतीय संदर्भ में, यह बिल्कुल वैसा है जैसे किसी पड़ोसी की दीवार में चुपके से कील ठोककर उसकी नींद खराब कर देना।)

एक और मजेदार कमेंट था, “क्लिनिक वाले अक्सर ऐसा बहाना बनाते हैं – बाथरूम को खुद ही ‘खराब’ दिखा देते हैं ताकि सफाई या खर्चा न बढ़े।” ये बात सच है – हमारे यहाँ भी छोटे ऑफिस या दुकानें अक्सर ‘बाथरूम खराब है’ का बोर्ड टांग देती हैं, ताकि ग्राहक बाहर ही निपट लें।

एक अन्य यूज़र ने तो अपने पुराने ऑफिस का किस्सा सुनाया – जहाँ पुरुषों का टॉयलेट भगवान भरोसे, और महिलाओं का बाथरूम स्वर्ग जैसा था! उसने भी बदले में ऐसी बदबूदार चीज़ छुपा दी कि पूरा ऑफिस हिल गया, और अंत में नया बाथरूम बनवाना पड़ा। भाई, बदला लेने के तरीके तो कमाल के हैं, बस फिल्मी मसाला चाहिए!

क्या सीखें इस कहानी से? हँसी, व्यंग्य और थोड़ी-सी सोच

इस मजेदार बदले की कहानी में छुपा है गहरा संदेश – जब जिम्मेदार लोग अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लेते हैं, तो कभी-कभी आम आदमी को ‘अनोखा उपाय’ अपनाना पड़ता है। हमारे समाज में भी कई बार छोटी-छोटी तकलीफें बड़ी लगने लगती हैं, सिर्फ इसलिए क्योंकि कोई सुनवाई नहीं होती। चाहे ऑफिस का घिसा-पिटा बाथरूम हो या मुहल्ले की सड़क – जब तक कोई ‘हिम्मत’ नहीं दिखाता, तब तक हालात नहीं बदलते।

तो दोस्तों, अगली बार जब आपको लगे कि आपके साथ नाइंसाफी हो रही है – तो जरूर सोचिए, क्या आपके पास भी कोई ‘छुपा बदला’ है? हाँ, ये ध्यान रखिए – बदला मज़ाक में हो, नुकसान पहुँचाने वाला न हो। आखिर, हँसी-मजाक में ही तो ज़िंदगी का असली स्वाद है!

आपकी राय क्या है?

क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है जहाँ आपको छोटी-सी शरारत करनी पड़ी हो? क्या आपने कभी ऑफिस, स्कूल या पड़ोस में ‘प्यारा बदला’ लिया है? नीचे कमेंट में जरूर साझा करें – हो सकता है, आपकी कहानी भी किसी के चेहरे पर मुस्कान ले आए!

आखिर में, जैसा कि हमारे बुजुर्ग कहते हैं – “न्याय न मिले, तो जुगाड़ काम आता है!”
पढ़ते रहिए, हँसते रहिए – और सफाई का ध्यान रखिए!


मूल रेडिट पोस्ट: Revenge for a broken toilet