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जब टीचर ने मनोविज्ञान का असाइनमेंट दिया, छात्रों ने उन्हें असली जिंदगी का पाठ पढ़ा दिया

एनीमे शैली की चित्रण, हाई स्कूल की कक्षा में एपी मनोविज्ञान के दौरान, एक हल्के पल को दर्शाते हुए।
इस जीवंत एनीमे चित्रण में, हम एक उत्साही हाई स्कूल की कक्षा में हैं, जहाँ छात्र एक लंबे एपी मनोविज्ञान पाठ के बाद मजेदार फिल्म दिवस का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं। वातावरण उत्साह और पुरानी यादों से भरा हुआ है, जो सीखने के प्रति मेरी युवा उत्सुकता और इसके साथ आने वाले अजीब अनुभवों को दर्शाता है।

किताबों के बाहर असली ज़िंदगी के सबक अक्सर कक्षा में मिल जाते हैं। स्कूल और कॉलेज में हम सबने ऐसे असाइनमेंट किए होंगे, जो पहले तो आसान लगते हैं, लेकिन बाद में समझ आता है कि बात कुछ और ही थी। आज की कहानी एक ऐसे ही असाइनमेंट की है, जिसने न सिर्फ एक छात्रा बल्कि उसकी टीचर की सोच ही बदल दी।

यह कहानी है एक अमेरिकी हाई स्कूल की, जहाँ AP Psychology (मनोविज्ञान) की क्लास में एक नया असाइनमेंट आया। जैसा कि अक्सर बोर्ड एग्ज़ाम के बाद होता है, टीचर ने सोचा—चलो बच्चों को थोड़ा रिलैक्स करते हैं और एक फिल्म दिखाते हैं। फिल्म चुनी गई – Pixar की 'Inside Out', जिसमें यादों और भावनाओं की बात होती है। लेकिन इसके बाद जो असाइनमेंट आया, उसने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया।

यादों का असाइनमेंट, दर्द का सामना

टीचर ने बच्चों से कहा—'अपनी सबसे अच्छी और सबसे बुरी याद लिखो, और उसे चित्रित भी करो।' पहली नजर में ये बड़ा ही मासूम सा असाइनमेंट लगा। आखिरकार, बचपन की यादें कौन नहीं बाँटना चाहता? लेकिन यहाँ बात थी अपनी सबसे बुरी याद लिखने की, और वो भी ज़बरदस्ती।

हमारे समाज में भी अक्सर ऐसा होता है कि बड़ों को लगता है, बच्चों की ज़िंदगी में कौन सा बड़ा दुख आया होगा—'अरे, सबसे बुरी याद क्या होगी, खिलौना टूट गया या मार्क्स कम आ गए।' लेकिन असलियत ये है कि हर किसी की ज़िंदगी में कुछ न कुछ ऐसा होता है, जिसे बाँटना आसान नहीं होता।

जब सच ने टीचर को आईना दिखाया

कहानी की नायिका, जो खुद ऑटिस्टिक हैं, उनसे जब पूछा गया तो उन्होंने टीचर से निवेदन किया—'क्या मैं दोनों अच्छी यादें लिख सकती हूँ?' लेकिन टीचर ने साफ़ मना कर दिया कि असाइनमेंट में एक अच्छी और एक बुरी याद लिखना ज़रूरी है।

अब हमारे यहाँ भी अक्सर होता है, 'गुरुजी का आदेश, टालना मना है!' लेकिन छात्रा ने सोचा, क्यों न असली सच ही लिख दूँ। उन्होंने अपनी सबसे अच्छी याद तो लिखी—अपनी छोटी बहन के जन्म की। लेकिन जब सबसे बुरी याद लिखने की बारी आई, तो उन्होंने अपने साथ हुई एक गंभीर घटना (CSA) का सच-सच जिक्र कर दिया—वो भी विस्तार से और चित्र सहित।

अब सोचिए, एक मासूम सी लगने वाली टीचर को जब ये असाइनमेंट पढ़ने को मिला, तो उनके होश उड़ गए। असाइनमेंट पर बस लिखा था—'I’m so sorry' और 100% नंबर।

क्लासरूम में संवेदनशीलता: टीचर भी इंसान हैं

इस घटना के बाद टीचर ने पूरी क्लास से माफी माँगी और कहा कि ये असाइनमेंट देना गलत था। उन्होंने माना कि किसी भी छात्र से उसकी सबसे बुरी याद जबरन पूछना ठीक नहीं। उन्होंने ये भी कहा कि आगे से कोई भी छात्र अपने अनुभव या यादें अपनी मर्जी से चुन सकता है।

रेडिट पर इस कहानी ने खूब चर्चा बटोरी। एक कमेंट में किसी ने लिखा—'असल में, ये असाइनमेंट टीचर के लिए था, न कि छात्रों के लिए।' किसी ने कहा—'बहुत से बड़ों को अंदाजा ही नहीं होता कि बच्चों की ज़िंदगी में कितने गहरे घाव हो सकते हैं।' एक टीचर ने भी अपनी राय दी—'ऐसे असाइनमेंट से हमें भी सीख मिलती है कि हर छात्र की निजी ज़िंदगी अलग है।'

एक यूज़र ने लिखा—'तुम्हारी ईमानदारी ने शायद आगे आने वाले छात्रों को अनजाने दर्द से बचा लिया।' वहीं, किसी ने हँसी-मजाक में कहा—'अब ये टीचर भी समझ गई होंगी कि हर किसी की सबसे बुरी याद "गोल्डफिश का मरना" नहीं होती!'

बड़ों की ज़िम्मेदारी, बच्चों की भावनाएँ

हमारे यहाँ भी अकसर बड़ों को लगता है कि बच्चों को सब बताना चाहिए—'बोलो बेटा, क्या हुआ?' लेकिन कई बार हम ये भूल जाते हैं कि हर बच्चा अपने दर्द को शब्दों में बाँट नहीं सकता। और जबरदस्ती किसी से उसकी सबसे बुरी याद पूछना, चाहे वो असाइनमेंट ही क्यों न हो, सही नहीं है।

रेडिट पर एक मनोवैज्ञानिक ने लिखा—'यह ज़रूरी है कि हम दूसरों का दर्द जानने की जिज्ञासा में खुद को संवेदनशील रखें। प्रोफेशनल थैरेपिस्ट भी एक सीमा तय करते हैं—कभी-कभी उन्हें भी ब्रेक लेना पड़ता है, क्योंकि दूसरों का दर्द सुनना आसान नहीं।'

सीख: हर कहानी के दो पहलू

इस घटना का सबसे बड़ा संदेश यही है—शिक्षा सिर्फ किताबों से नहीं, अनुभवों से भी मिलती है। इस छात्रा ने अपनी ईमानदारी से न सिर्फ खुद को, बल्कि अपनी टीचर को भी एक ज़रूरी सबक सिखा दिया। अब आगे आने वाले छात्रों को अपनी मर्जी के हिसाब से यादें लिखने की छूट मिल गई।

तो अगली बार जब कोई असाइनमेंट या सवाल आपको असहज कर दे, तो याद रखिए—ईमानदारी से जवाब देना भी कभी-कभी सबको बड़ा सबक सिखा जाता है। और टीचर्स को भी समझना चाहिए कि हर छात्र की ज़िंदगी एक खुली किताब नहीं होती।

अंत में – आपके अनुभव?

क्या आपके साथ कभी ऐसा कोई असाइनमेंट या घटना हुई है, जिसमें आपने सच बोलकर या अपनी हिम्मत दिखाकर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया हो? नीचे कमेंट में जरूर बताइए—शायद आपकी कहानी भी किसी को नया नजरिया दे दे!


मूल रेडिट पोस्ट: My very immature response to an AP Psychology assignment