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जब छात्र ने ज़िद की अकेले प्रोजेक्ट करने की, और मिली ज़िंदगी की सबसे बड़ी सीख

छात्रों के एक प्रोग्रामिंग प्रोजेक्ट पर सहयोग करते हुए कार्टून-3D चित्रण, चुनौतियों और मांगों के साथ।
इस जीवंत कार्टून-3D दृश्य में, छात्र एक समूह प्रोग्रामिंग प्रोजेक्ट की ऊँचाइयों और निचाइयों का सामना करते हुए, आईटी क्षेत्र में टीमवर्क और संचार के महत्व को समझते हैं।

हम सभी ने कभी न कभी ऐसा कोई छात्र या सहकर्मी देखा है, जिसे लगता है कि उसे सब कुछ आता है, दूसरों की ज़रूरत ही नहीं है। स्कूल या कॉलेज की ग्रुप असाइनमेंट्स में तो ऐसे लोग अक्सर मिल ही जाते हैं – "मुझे तो अकेले ही करना है, टीम वर्क मेरे बस की बात नहीं!" आज की ये कहानी ऐसे ही एक छात्र की है, जिसने अपनी ज़िद और घमंड में खुद को ऐसी परेशानी में डाल लिया, जिसकी उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी।

"मुझे अकेले ही करना है" – ज़िद का अंजाम

कहानी एक कंप्यूटर साइंस के शिक्षक की है, जो अपने छात्रों को ग्रुप प्रोजेक्ट्स देते हैं ताकि वे टीम वर्क, कोडिंग और रियल वर्ल्ड स्किल्स सीख सकें। लेकिन एक छात्र – मान लीजिए उसका नाम "राहुल" है – थोड़ा अलग था। जनरेशन AI (GenAI) का ज़माना है, तो राहुल भी ChatGPT और AI टूल्स का खूब इस्तेमाल करता था। लेकिन वो बस कोडिंग कॉपी-पेस्ट करता, खुद समझता नहीं था। जब भी टीचर उससे पूछते – "बेटा, ये कोड कैसे काम करता है?" – तो वो गोलमोल जवाब देता, जैसे दिल्ली की सर्दी में धुंध में रास्ता ढूँढना।

राहुल को ग्रुप में काम करना बिल्कुल पसंद नहीं था। वो बार-बार टीचर से कहता, "मुझे अकेले प्रोजेक्ट करना है।" टीचर ने समझाया – "बेटा, असली दुनिया में टीम वर्क बहुत जरूरी है। मार्क्स भी ग्रुप वर्क पर मिलेंगे।" लेकिन राहुल अपनी ज़िद पर अड़ा रहा। आखिरकार, टीचर ने सोचा – "ठीक है, बच्चे को उसकी मर्ज़ी से ही सीखने दो।"

टीम वर्क का महत्व – भारतीय संदर्भ में

हमारे देश में तो शुरू से ही कहा जाता है – "एकता में बल है।" क्रिकेट टीम हो या ऑफिस की मीटिंग, साथ मिलकर काम करने वाले ही आगे बढ़ते हैं। एक कमेंट में किसी ने बड़ा सही लिखा – "असल दिक्कत ये है कि राहुल को असली दुनिया की ज़रूरतें ही पता नहीं हैं। टीम वर्क के बिना, आगे की ज़िंदगी में मुश्किल ही मुश्किल है।"

कई लोगों ने अपने कॉलेज के दिनों की यादें ताज़ा कीं – "भाई, ग्रुप प्रोजेक्ट्स में कभी-कभी पूरी टीम कामचोर निकलती है, लेकिन जब प्रेजेंटेशन का दिन आता है तो मज़ा आ जाता है।" किसी ने तो ये भी लिखा – "अगर सिर्फ AI से काम चला लोगे, तो डिग्री AI को दे दो, इंसान को नहीं!"

ज्ञान बिना मेहनत – शॉर्टकट्स का क्या अंजाम?

राहुल ने प्रोजेक्ट को अकेले ही किया, लेकिन उसकी कोडिंग में दम नहीं था। सबसे बड़ी बात – जो प्रोजेक्ट टीचर ने बताया था, उसका आधा-अधूरा ही काम किया। टीम वर्क के मार्क्स तो वैसे ही गए, क्योंकि उसने किसी के साथ मिलकर कुछ किया ही नहीं। जब टीचर ने उसे बुलाकर पूछा – "समझाओ ज़रा, ये कोड कैसे चलता है?" – तो राहुल के पास जवाब नहीं था। यानी, साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं मिली।

यहाँ एक और कमेंट याद आता है – "अगर आप खुद को धोखा देंगे, तो असली दुनिया में बहुत जल्दी आपकी पोल खुल जाएगी।" एक सज्जन ने तो मज़ाकिया अंदाज़ में लिखा – "ऐसे बच्चों को तो डिग्री की जगह झाड़ू पकड़ा दो, कम से कम सफाई तो कर लेंगे!"

भारतीय शिक्षा व्यवस्था और AI का युग

आजकल AI और ChatGPT जैसे टूल्स से पढ़ाई आसान ज़रूर हो गई है, लेकिन समझदारी और मेहनत की जगह कोई नहीं ले सकता। एक पाठक ने बढ़िया बात कही – "कैलकुलेटर भी तभी काम आता है, जब आपको बेसिक गणित आती हो। अगर बेसिक ही नहीं पता, तो टेक्नोलॉजी भी बेकार है।"

हमारे यहाँ तो 'गुरु-शिष्य परंपरा' रही है – ज्ञान के लिए गुरु का मार्गदर्शन और अपनी मेहनत सबसे ऊपर मानी जाती है। शॉर्टकट्स से आप एक-दो एग्ज़ाम पास कर सकते हैं, लेकिन ज़िंदगी की असली परीक्षाएँ ऐसे नहीं निकलीं।

एक और पाठक ने कहा – "कई बार ऐसे बच्चे बाद में दोष भी टीचर को ही देते हैं – 'मुझे पास क्यों नहीं किया?' लेकिन जब खुद मेहनत ही नहीं की, तो किस बात की शिकायत?"

निष्कर्ष – सीख और सवाल आपके लिए

कहानी का अंत बड़ा दिलचस्प है – राहुल फेल हो गया, और अब फिर उसी टीचर के पास री-एग्ज़ाम देने आना है! यानी, अपने ही किए की सज़ा दोबारा भुगतनी पड़ेगी।

सोचिए, अगर आप राहुल की जगह होते, तो क्या करते? क्या आप भी शॉर्टकट्स का सहारा लेते या टीम वर्क और मेहनत से असली ज्ञान हासिल करते?

कमेंट्स में बताइए – आपके कॉलेज या स्कूल के दिनों में ऐसे कोई मज़ेदार या सीख देने वाले अनुभव हुए हों, तो जरूर साझा करें। और हाँ, अगली बार जब ग्रुप प्रोजेक्ट आए, तो याद रखिए – "एकता में ही असली ताकत है!"


मूल रेडिट पोस्ट: Student made demands regarding a project and found out the hard way.