जब घर का राजा बना 'आलसी भाई': एक छोटी सी बदला कहानी
हमारे भारतीय घरों में अक्सर एक ऐसा सदस्य जरूर मिल जाता है, जो घर के कामों से ऐसे भागता है जैसे दूध में से मक्खन! कभी-कभी मम्मी-पापा की नरमी और भाई-बहनों की मजबूरी ऐसे लोगों को और भी 'राजा बेटा' बना देती है। लेकिन जब सब्र का घड़ा भर जाता है, तो छोटी-छोटी शरारतें भी किसी बड़े सबक से कम नहीं होतीं।
घर-घर की वही पुरानी कहानी: 'भैया, ज़रा मदद कर दो!'
इस कहानी की नायिका है एक लड़की, जो अपने माता-पिता और 27 साल के बड़े भाई के साथ रहती है। अब सोचिए, 27 की उम्र में जहाँ लोग नौकरी, शादी, या कम से कम अपने कपड़े खुद धोना सीख जाते हैं, वहाँ ये साहब घर के कामों से ऐसे बचते हैं जैसे बच्चा कड़वी दवा से भागता है। मम्मी-पापा अगर कभी प्यार से कह दें, "बेटा, ज़रा प्याज़-टमाटर काट दो," तो साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर!
यहाँ तक कि जब पिताजी और बेटी मिलकर बर्गर बना रहे थे, तो पिताजी ने बड़े प्यार से भाई साहब को कहा – "प्याज़, टमाटर और सलाद काट दो।" भाई साहब ने तो सलाद छुआ तक नहीं! और प्याज़-टमाटर काटे भी तो ऐसे, मानो लकड़ी के टुकड़े हों – मोटे-मोटे स्लाइस, जिनसे बर्गर खाने में जबड़ा दुख जाए!
'वेपनाइज़्ड इनकंपिटेंस' – ये क्या बला है?
अगर आपने कभी ध्यान दिया हो, हमारे समाज में कुछ लोग जान-बूझकर कोई काम इतना बेढंग तरीके से करते हैं कि अगली बार उनसे कोई काम ही न करवाए। Reddit पर इसे 'weaponized incompetence' कहते हैं, यानी अपनी नालायकी का हथियार बना लेना!
यहाँ भी भाई साहब ने वही किया – कूड़े का थैला बाहर रखना भूल गए, नई कचरा थैली डालना भूल गए, और अब प्याज़-टमाटर के मोटे टुकड़े काट दिए। एक कमेंट में किसी ने सही ही लिखा, "अगर आपको लगता है कि ये टुकड़े खाने लायक हैं, तो खुद ही खाइए!" और यही हुआ – बहन ने वही मोटे टुकड़े भाई के बर्गर में डाल दिए। अब भाई साहब ने खा भी लिया, बस बोले – "थोड़ा मोटा था, चाकू ठीक नहीं था।" वाह जी, बहाने भी बड़े गजब!
परिवार की भूमिका: प्यार और सख्ती में संतुलन कहाँ?
कई पाठकों ने सवाल उठाया, "इतनी उम्र में भी ऐसे बेटे को घर से क्यों नहीं निकाला?" एक कमेंट में किसी ने लिखा, "माँ-बाप की नरमी कभी-कभी बच्चों के लिए जहर बन जाती है।" असल में, भारतीय घरों में 'बच्चा घर पर रहे, चाहे जैसा भी हो' वाली भावना बहुत गहरी है। लेकिन इसका असर बाकी परिवार पर पड़ता है – खासकर जब एक सदस्य सारा बोझ उठा रहा हो।
बहन ने भी खुलकर बताया कि उसकी खुद की तबियत भी ठीक नहीं रहती, फिर भी वह घर के कामों में हाथ बँटाती है। किसी और कमेंट में सलाह दी गई, "जिसके लिए खाना बनाओ, वही मदद भी करे। वरना अपने-अपने लिए बनाओ, सबक खुद मिल जाएगा।" ये बात गाँव-देहात में तो खूब सुनने को मिलती है – "जो बोएगा, वही काटेगा।"
क्या ये आदतें भविष्य में मुसीबत बन जाएँगी?
कई लोगों ने चिंता जताई कि अगर अभी न सुधरने दिया गया, तो यही भाई कल को कहीं और भी ऐसे ही 'राजा बेटा' बन जाएगा। किसी ने तो अपने अनुभव भी साझा किए – "मेरी 95 साल की दादी आज भी अपने 65 साल के बेटे की सेवा कर रही हैं, क्योंकि बचपन में ही आदत बिगड़ गई थी।" सोचिए, अगर समय रहते सख्ती न दिखाई जाए, तो ये आदतें कितनी लंबी चल सकती हैं!
कुछ लोगों ने यह भी पूछा कि क्या भाई को कोई मानसिक समस्या है? बहन ने बताया, "हाँ, उसे बाइपोलर डिसऑर्डर और डिप्रेशन है। इसी वजह से माँ-बाप उसे ज्यादा नहीं टोकते।" लेकिन कई लोगों ने साफ कहा, "मानसिक समस्या का मतलब ये नहीं कि जिम्मेदारी से भागा जाए।"
हल्की-फुल्की शरारत, बड़ी सीख!
अंत में, इस बहन की छोटी सी बदला लेने की तरकीब ने ना सिर्फ भाई को बिना बोले सबक सिखाया, बल्कि बाकी परिवार को भी सोचने पर मजबूर कर दिया। ये कहानी हँसी-मजाक में भले लगे, लेकिन असल में हर घर के लिए एक आईना है – कि प्यार के साथ-साथ जिम्मेदारी भी जरूरी है।
जैसा कि एक पाठक ने लिखा, "भाई साहब को अब खुद खाना बनाना चाहिए, तभी पता चलेगा कि मोटे प्याज़-टमाटर कैसे लगते हैं!"
निष्कर्ष: आप क्या सोचते हैं?
क्या आपके घर में भी कोई ऐसा 'राजा बेटा' या 'राजकुमारी बिटिया' है जो घर के कामों से दूर भागता है? या आपने कभी किसी को ऐसे सबक सिखाया है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें! याद रखिए – घर सबका होता है, काम भी सबका होना चाहिए।
मूल रेडिट पोस्ट: Eat the fucked up pieces then