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जब घमंडी दोस्त को एक सेब ने सबक सिखाया

एक व्यक्ति जो सेब पकड़े हुए बौद्धिक घमंड का सामना कर रहा है, का कार्टून-3डी चित्रण।
इस मजेदार कार्टून-3डी चित्रण में, हम दोस्ती और बौद्धिक घमंड के अनोखे रिश्तों की खोज करते हैं, जबकि हमारा नायक सेब पकड़े साहसिकता से खड़ा होता है। आइए इस हल्के-फुल्के व्यंग्य और सूक्ष्म प्रतिशोध की कहानी में शामिल हों!

हम सभी के ग्रुप में एक न एक ऐसा दोस्त ज़रूर होता है जो खुद को चलती-फिरती विश्वकोश समझता है। वो हर बात में टांग अड़ाता है, चाहे बात छोटे-मोटे खाने-पीने की हो या किसी बड़ी फिलॉसफी की। ऐसा ही किस्सा हाल ही में एक Reddit यूज़र ने शेयर किया, जिसने अपने ‘ज्ञानी’ दोस्त को सेब खाते वक्त ही उसकी अकड़ निकाल दी! कहानी में मज़ा भी है, सीख भी और ढेर सारी मिर्च-मसाला भी – बिल्कुल वैसे, जैसे हमारे यहाँ चाय के साथ गपशप चलती है।

ज्ञानबाज़ी का अड्डा और सुबह की चाय-सेब

अब आप सोचिए – एक नया शहर, पुराने दोस्त, मस्त माहौल और सुबह-सुबह नाश्ते की टेबल। वैसे ही हल्की-फुल्की ठंड और गर्म चाय के साथ सेब का मज़ा ले रहे थे। तभी कहानी के ‘विशेषज्ञ’ दोस्त की नजर पड़ी – “अरे, सेब का कोर क्यों नहीं खाया?” अब भाई, आम आदमी तो यही कहेगा कि कोर क्यों चबाएँ, उसमें क्या स्वाद है? मगर हमारे दोस्त ने सवाल ही ऐसे लहजे में पूछा, जैसे हम कोई अपराध कर बैठे हों!

हर ग्रुप में ये ‘ज्ञानपंथी मित्र’ होते हैं, जो सही बात भी ऐसे बताते हैं कि सामने वाले को छोटा महसूस हो। Reddit पर एक कमेंट था – "ये दोस्त तो Reddit में नौकरी करता होगा!" यानी ये टाइप के लोग हर जगह मिल ही जाते हैं। कोई भी चर्चा छेड़ दो, ये अपने ज्ञान का डंका बजा देंगे – फ़िर चाहे वो भाषा हो, कविता हो या फल-सब्ज़ी का मसला!

सेब के कोर में छुपा बदला

अब असली मज़ा तब आया जब कहानी के लेखक ने इस ज्ञानपंथी दोस्त को उसी की भाषा में जवाब देने की ठान ली। उसने झट से कह दिया, "भाई, सेब के बीजों में cyanide होता है, इसलिए नहीं खाता।" अब हमारे ‘ज्ञानगुरु’ को लगा कि उन्हें मौका मिल गया – अब वो ‘असल में तो...’ वाला ज्ञान उड़ेलेंगे। लेकिन लेखक ने मुस्कुरा के कह दिया – "अरे, मज़ाक कर रहा हूँ।"

बस, यहां खेल पलट गया! हमारे ज्ञानी दोस्त के चेहरे का रंग बदल गया, जैसे किसी ने उनका ‘ब्रह्मास्त्र’ छीन लिया हो। Reddit पर एक कमेंट में तो किसी ने लिखा, "सेब के कोर तक काट दिया उसे!" (Cut him to the core!) और एक और ने मज़ाक में जोड़ा, "अब उसकी peeling हो गई!" मतलब, सबको मज़ा आ गया कि पहली बार वो भी चुप रह गया।

घमंड और असली समझदारी – क्या फर्क है?

हमारे समाज में भी कई बार ऐसे लोग मिलते हैं, जो छोटी-छोटी बातों में दूसरों को नीचा दिखाने में ही अपनी शान समझते हैं। एक Reddit यूज़र ने बड़ा अच्छा लिखा – “अकड़ असल में एक तरह की सामाजिक झिझक है, जिसमें सामने वाला खुद को सबसे बड़ा दिखाने की कोशिश में, असल में सबसे छोटा बन जाता है।” कई बार तो ऐसा भी लगता है कि ये ‘ज्ञानी मित्र’ अपने अंदर की असुरक्षा को छुपाने के लिए इस तरह की हरकतें करते हैं।

एक और मज़ेदार कमेंट था – "हर बार जब वो फालतू ज्ञान बाँटे, तो हँस दो। उससे बड़ा बदला कोई नहीं!" यानी जब कोई बार-बार जलेबी जैसी उलझी हुई बातें करे, तो सीधी सी बात कह दो – "भैया, किसी को फर्क नहीं पड़ता!" ये तरीका भी अपने-आप में एक छोटा बदला है, जिससे सामने वाला खुद ही सोचने पर मजबूर हो जाता है।

क्या सीखें इस सेब-कथा से?

इस छोटी-सी घटना में बड़ी गहरी सीख छुपी है। असली समझदारी और ज्ञान वही है, जो दूसरे को प्रेरित करे, न कि नीचा दिखाए। हमारे यहाँ तो कहते हैं – “विद्या विनय देती है।” अगर कोई विद्या से घमंड पाल ले, तो उसका असर भी सेब के बीज जैसा ही होता है – ऊपर से मीठा, अंदर से थोड़ा कड़वा।

कई पाठकों ने ये भी लिखा कि ऐसे ज्ञानपंथी दोस्तों से बहस करने का कोई फायदा नहीं। बल्कि जब भी वो अपनी अकड़ दिखाएँ, तो हल्के-फुल्के मज़ाक में ही उनका स्वागत कर लो, जैसे – "क्या मिलेगा तुम्हें सही साबित होकर?" या "भैया, अपनी दुनिया में मस्त रहो, हम तो ऐसे ही ठीक हैं।" ऐसे जवाब न केवल माहौल हल्का रखते हैं, बल्कि सामने वाले को भी आईना दिखा देते हैं।

सेब, cyanide और देसी तड़का

अब बात रहे सेब के बीजों की – क्या वाकई उनमें ज़हर होता है? हाँ, सेब के बीजों में amygdalin नामक कंपाउंड होता है, जिससे थोड़ी मात्रा में cyanide बनता है, लेकिन एक-दो बीज खाने से कुछ खास नुकसान नहीं होता। वैसे हमारे यहाँ तो दादी-नानी भी यही कहती थीं – "बीज मत खाओ, पेट में पेड़ उग जाएगा!" यानी बचपन से ही हल्के-फुल्के डर और हँसी-मज़ाक के साथ ये बातें चलती आई हैं।

कुछ पाठकों ने तो ये भी लिखा कि असली पोषण तो सेब के छिलके और गूदे में है, बीजों में नहीं। तो अगली बार जब कोई आपको सेब का कोर खाने की सलाह दे, तो मुस्कुरा कर कह देना – "भैया, cyanide का डर है!" और फिर वही मुस्कुराहट सब पर भारी पड़ जाएगी।

निष्कर्ष – अकड़ की दवा, हँसी और हल्कापन

अंत में यही कहना चाहूँगा – हर ग्रुप में एक ‘ज्ञानपंथी’ होता है, लेकिन उससे जूझने का सबसे अच्छा तरीका है – थोड़ी-सी हँसी, थोड़ा-सा तंज और बहुत सारा आत्मविश्वास। जैसे इस कहानी के लेखक ने सेब के बहाने अपना बदला ले लिया, वैसे ही आप भी अपने आस-पास के घमंडी दोस्तों को हल्के-फुल्के मज़ाक में उनकी जगह दिखा सकते हैं।

तो अगली बार जब कोई आपको फालतू ज्ञान बाँटे, तो याद रखिए – आपकी मुस्कान और जवाबदारी ही सबसे बड़ा जवाब है। और हाँ, सेब के बीज खाने या न खाने पर बहस करने की कोई ज़रूरत नहीं – क्योंकि असली ज़हर तो घमंड में होता है, सेब के बीजों में नहीं!

आपकी राय क्या है? क्या आपने भी कभी किसी ‘ज्ञानी’ दोस्त को ऐसे ही चुप कराया है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए!


मूल रेडिट पोस्ट: Facing intellectual arrogance with an apple