जब घमंड का घड़ा पेशाब में फूटा: होटल रिसेप्शन की अनोखी कहानी

मेहमान और मेज़बान के बीच तनावपूर्ण क्षण, हवा में परेशान करने वाली पेशाब की गंध के साथ, सिनेमाई शैली में कैद।
इस सिनेमाई चित्रण में, मेज़बान और अनचाहे मेहमान के बीच असहजता स्पष्ट है, जो एक चिंताजनक स्थिति के परिप्रेक्ष्य में है। पुरानी पेशाब की तीखी गंध वातावरण में फैली हुई है, जो इस असामान्य मुठभेड़ की तनावपूर्णता को उजागर करती है।

हमारे देश में अक्सर कहा जाता है – "जैसा करोगे, वैसा भरोगे।" लेकिन कभी-कभी ज़िंदगी ऐसे गैंगस्टर स्टाइल में सबक सिखाती है कि बंदा उम्रभर याद रखे। होटल रिसेप्शन की ये कहानी कुछ ऐसी ही है, जहाँ घमंड से भरे एक मेहमान को अपने ही कर्मों का सिला कुछ यूँ मिला कि सभी के चेहरे पर मुस्कान आ जाए।

अब ज़रा सोचिए, आप किसी होटल के रिसेप्शन पर हैं, सुबह का समय है, लोग नाश्ता कर रहे हैं, माहौल हल्का-फुल्का है। तभी एक बुजुर्ग महिला अंदर आती हैं, उनसे हल्की पेशाब की गंध आ रही है। हमारे यहाँ तो ऐसे वक्त पर लोग मन ही मन दुआ करते हैं – "भगवान, मैं तो बूढ़ा हो जाऊँ लेकिन ये हाल ना हो।" रिसेप्शनिस्ट ने भी यही सोचा, और आदर से उन्हें बाथरूम दिखाने लगा।

लेकिन, किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। जब तक रिसेप्शनिस्ट समझ पाता, बुजुर्ग महिला गलती से अपने रास्ते में 'झील' छोड़ चुकी थीं – यानी रिसेप्शन से बाथरूम तक एक लंबी पेशाब की लाइन। अब आप समझ सकते हैं, नाश्ते वालों का मूड कैसा हुआ होगा! कई लोग तो उठकर चले गए, जैसे शादी में बेस्वाद खाना देखकर लोग प्लेट छोड़ देते हैं।

रिसेप्शनिस्ट बेचारा झाड़ू और पोछा लेकर आया ही था कि तभी कहानी का खलनायक – यानी वो घमंडी मेहमान – प्रकट हुआ। इस महाशय को रिसेप्शनिस्ट से जाने क्या दुश्मनी थी, लेकिन अपना रोब झाड़ना जरूरी समझते थे। रिसेप्शनिस्ट ने विनम्रता से कहा, "सर, यहीं रुक जाएँ, मैं सफाई कर रहा हूँ।" लेकिन जनाब को कौन समझाए! वह तो ऐसे आगे बढ़े जैसे कुम्भ के मेले में गंगा स्नान करने जा रहे हों, और सीधा पेशाब की झील में अपना पाँव रख दिया।

अब यहाँ से कहानी में ट्विस्ट आ गया। साहब ने तुरंत मुंह बनाया और बोले, "क्या गंदी बदबू है, लगता है ये सब तुम्हारी वजह से है!" रिसेप्शनिस्ट ने बड़ी शांति से जवाब दिया, "नहीं सर, ये मेरे कारण नहीं है। एक बुजुर्ग महिला से गलती हो गई थी।" लेकिन घमंडी महाशय बोले, "बुजुर्ग महिला को दोष मत दो, मुझे पता है बदबू कहाँ से आ रही है!"

फिर रिसेप्शनिस्ट ने कहा, "सर, एक बार नीचे देखिए..." घमंड का घड़ा यहीं फूटा – जनाब खुद पेशाब के गड्ढे में खड़े थे! उनकी शक्ल देखने लायक थी, और हड़बड़ाकर ऐसे भागे जैसे किसी ने उनके नीचे लाल मिर्च रख दी हो।

जैसा कि एक कमेंट में किसी ने लिखा – "कर्मा बड़ी चीज़ है, भाई! यहाँ तो जूतों की कुर्बानी देनी पड़ी होगी।" (एक यूज़र ने मज़ाकिया अंदाज में कहा कि 'उम्मीद है इन्हें नए जूते खरीदने पड़े होंगे!') वहीं किसी और ने लिखा – "ऐसा आदमी तो होटल में घुसने के लायक ही नहीं था, जो समझाने पर भी न माने।"

एक मज़ेदार कमेंट में किसी ने हमारे यहाँ की कहावत को दोहराया – "जैसी करनी, वैसी भरनी!" (अंग्रेज़ी वाले कहते हैं – 'कर्मा इज़ अ बिच', लेकिन हमारे यहाँ तो कर्मा 'चाचा चौधरी' की तरह तुरंत काम करता है!)

इतना ही नहीं, एक शख्स ने लिखा – "मुझे तो पढ़कर ही हँसी आ गई।" और सच मानिए, ऐसी घटनाएँ हमें ये भी सिखाती हैं कि बड़ों का सम्मान करें, किसी की हालत पर हँसें नहीं; कल को वही हाल हमारा भी हो सकता है।

यहाँ एक टिप्पणीकार ने अपने अनुभव साझा किए – "मुझे अब बुजुर्गों के प्रति ज्यादा सहानुभूति हो गई है। मेरी माँ भी अब इस अवस्था में हैं, तो अब ये बातें समझ में आती हैं।"

और अंत में, रिसेप्शनिस्ट ने उस पूरे इलाके को अच्छे से साफ किया, खिड़कियाँ खोलकर हवा भी ताज़ी कर दी। जब वही घमंडी मेहमान दोबारा आया, तो इस बार वो दरवाज़े पर ही ठिठक गया – पहले नीचे देखा, फिर रिसेप्शन की तरफ बढ़ा! अब इसे कहिए – 'डर के आगे जीत' या 'पेशाब के आगे सीख'!

तो दोस्तों, इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है – चाहे ऑफिस हो या होटल, थोड़ी विनम्रता और समझदारी हमेशा काम आती है। और कभी-कभी ज़िंदगी खुद ही ऐसे मज़ेदार सबक सिखा जाती है, जो किसी किताब में नहीं मिलते।

आपका क्या कहना है? क्या आपके साथ भी किसी घमंडी ग्राहक या सहकर्मी ने ऐसा कुछ किया है, जिसका जवाब उसे खुद की गलती से मिला हो? या कभी किसी मुश्किल हालात में आपसे कोई ऐसी मज़ेदार चूक हो गई हो? कमेंट में जरूर बताइएगा – आपकी कहानियाँ पढ़ना हमें बहुत अच्छा लगेगा!

इस ब्लॉग को पढ़कर अगर आपके चेहरे पर मुस्कान आ गई हो, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार के साथ शेयर करना न भूलें। आखिर, हँसी और सीख – दोनों ही बाँटने से बढ़ती है!


मूल रेडिट पोस्ट: Stood in urine because he didn’t like me.