जब गांव के मुखिया की गंदी चाल पर भारी पड़ गई ‘झागदार’ बदला कहानी
कहते हैं न, “जैसी करनी वैसी भरनी।” गांवों में तो यह कहावत और भी सच साबित होती है, जहां हर कोई एक-दूसरे को जानता है और छोटी-छोटी बातें भी सालों तक याद रहती हैं। आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ एक ऐसी ‘पेटी रिवेंज’ (छोटी मगर मीठी बदला) की कहानी, जिसे सुनकर शायद आपकी हंसी भी छूट जाए और दिमाग में यह बात भी बैठ जाए कि कभी-कभी छोटी-छोटी शरारतें भी बड़े लोगों को बड़ा सबक सिखा जाती हैं।
कल्पना कीजिए – दक्षिण फ्रांस का एक छोटा सा गांव, जहां के लोग इतने कट्टर और पुराने विचारों वाले हैं कि पंद्रह साल पहले आए किसी परिवार को आज भी ‘बाहरी’ समझते हैं। अब सोचिए, ऐसा माहौल जहाँ हर कोई एक-दूसरे का खून का रिश्तेदार है, और कोई नया चेहरा दिख जाए, तो बस उसे शक की नजरों से देखा जाता है। ऐसे ही एक परिवार के साथ क्या-क्या हुआ, यही है आज की कहानी!
गांव का ‘अपना’ और ‘बाहरी’ – रिश्तों की उलझन
हमारे कहानी के नायक का परिवार, गांव में नया था और गांववालों को यह बात गले नहीं उतर रही थी। कोई खेत बेच दे तो भी बवाल, और वो भी ‘बाहरी’ को बेच दे! गांव वाले तो गुस्से में मोती पीसने लगें, पर अफसोस, मोती खरीदने लायक पैसे नहीं थे। गांव की तंगदिली का आलम ये था कि लोग पुराने जनेऊ को भी बेल्ट बना लेते, लेकिन नया नहीं खरीदते।
इस परिवार को तरह-तरह की परेशानियाँ झेलनी पड़ीं – कभी ताने, कभी स्कूल में बच्चों को धमकाना, कभी प्रशासनिक झंझट। एक बार तो गांव के मुखिया ने ऐसा कमाल किया कि गांव की सड़क सीधी इनके ड्रॉइंग रूम से निकाल दी! लेकिन जैसे ही वकील का जिक्र आया, सारा उत्साह हवा हो गया। कुल मिलाकर, गांववालों और बाहरी परिवार के बीच खटास का माहौल था।
गटर की राजनीति – गांव के मुखिया का असली चेहरा
अब आता है असली मजा। गांव में ‘सिवर’ (सीवेज लाइन) बिछाने की योजना आई, तो सभी खुश थे कि अब ‘गटर’ की गंध से मुक्ति मिलेगी। लेकिन मुखिया साहब, जो खुद को गांव का राजा समझते थे, अपनी जेब बचाने के लिए अपने घर को इस योजना से बाहर कर लिया। नतीजा? उनका घर गंदगी की नदी बन गया, और हर सुबह उनकी ‘अमूल्य’ देन गांव की सड़कों पर बहती रही।
यहाँ तक कि हमारे नायक के पिता हर बार मुखिया के घर के पास से गुजरते हुए कहते, “कोई इस आदमी को सबक क्यों नहीं सिखाता? इसके गटर में झाग भर दो, देखेगा मजा!” बस, यही बात बेटे के दिल में घर कर गई।
बदले की रात – ‘झागदार’ न्याय
जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, बेटे के मन में बदले की आग भी भड़कती रही। 14 साल के होते ही, अपने दोस्त के साथ पास के हार्डवेयर स्टोर से चार डिब्बे ‘एक्सपैंडिंग फोम’ (झागदार सीलेंट) खरीद लाया। अगले ही दिन, दोनों दोस्त चुपचाप गांव पहुंचे और मुखिया के गटर में झाग भर दिया।
सुबह क्या हुआ? मुखिया का टॉयलेट जाम हो गया। बेचारे, गुस्से में बाहर भागे, तो दरवाजे पर खुद के ही पाखाने की फिसलन में फिसल गए! गांव में महीनों तक यही किस्सा चलता रहा – “वो देखो, मुखिया जी फिर से गटर की सफाई कर रहे हैं!”
एक कमेंट में किसी पाठक ने मजाक में लिखा, “अब से आपको ‘नाइट सॉयल’ का खिताब मिलता है!” (जैसे हम हिंदी में कहें – ‘गटर योद्धा’)। खुद लेखक ने भी हँसते हुए कहा, “मैं ये सम्मान विनम्रता से स्वीकार करता हूँ।”
गांव का रिएक्शन – ‘चुपके-चुपके’ बदला और मजेदार चर्चा
जब गांववालों ने ये कारनामा देखा, तो सबके दिल में एक ही सवाल – “किसने किया?” क्योंकि सबकी यही तो ख्वाहिश थी, पर करने की हिम्मत किसी में नहीं थी। खुद लेखक कहता है कि उसके ‘भले बच्चे’ के छवि के कारण कोई उस पर शक ही नहीं करता था। ऊपर से, अगर मुखिया पुलिस के पास भी जाता, तो अपनी ही गैरकानूनी हरकत का पर्दाफाश हो जाता – यानी सांप भी मर जाता और लाठी भी नहीं टूटती।
एक पाठक ने चुटकी ली, “मुखिया जी ने खुद ही अपने लिए गड्ढा खोद लिया!” तो किसी ने लिखा, “आपके पास तो पूरी किताब लिखने लायक किस्से होंगे!”
कई पाठकों ने लेखक से और कहानियाँ सुनाने की गुजारिश की, जैसे हिंदी में कोई कहे – “भैया, ऐसी मजेदार बातें बार-बार सुनने को कहाँ मिलती हैं!”
पेटी रिवेंज की सीख – ‘सांच को आंच नहीं’
हमारे समाज में भी छोटे-छोटे बदले के किस्से खूब चलते हैं – कभी पड़ोसी की भैंस का चारा छुपा देना, तो कभी बिजली के मीटर का खेल। पर असली सीख यही है – अगर कोई अपने अधिकार का गलत इस्तेमाल करता है, तो किसी न किसी दिन उसे उसकी सजा जरूर मिलती है, वो भी ऐसी, कि सारा गांव ताली बजा उठे!
यही वजह है कि ऐसी कहानियाँ पढ़कर हमें मजा भी आता है और थोड़ा सुकून भी मिलता है – “चलो, अन्याय करने वाले को उसकी औकात याद दिलाई गई!”
निष्कर्ष – आपकी भी कोई ‘पेटी रिवेंज’ कहानी?
तो दोस्तों, कैसी लगी आपको यह ‘झागदार’ बदला कहानी? क्या आपके गांव, मोहल्ले या दफ्तर में भी कभी ऐसा कोई किस्सा हुआ है? कमेंट में जरूर बताइए, और अगर आपके पास ऐसी कोई मजेदार घटना है, तो शेयर कीजिए – क्या पता, अगली बार आपकी कहानी पर भी सबकी हंसी छूट जाए!
याद रखिए – कभी-कभी छोटी सी शरारत, बड़ी-बड़ी तकलीफों का हल बन जाती है। और हाँ, ऐसी बदला कहानियाँ किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए नहीं, बस हल्के-फुल्के मनोरंजन के लिए होती हैं।
अब आपकी बारी – क्या आप भी कभी किसी मुखिया टाइप इंसान को ‘सीलेंट’ लगाना चाहेंगे? या पहले से ही लगा चुके हैं? कमेंट बॉक्स आपका इंतजार कर रहा है!
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