जब ग्राहक ने 'सिर्फ वही जवाब दो जो पूछा जाए' कहा, तो कर्मचारी ने भी वही कर दिखाया!
ऑफिस में ईमेल से जुड़ी खुदगर्जी और नियम-कायदे की बहस तो आपने सुनी ही होगी। लेकिन सोचिए, अगर कोई ग्राहक बार-बार शिकायत करे कि "ज्यादा जानकारी मत दो, जितना पूछा है बस उतना ही जवाब दो", तो क्या होगा? आज की कहानी एक ऐसे ही कर्मचारी की है, जिसने ग्राहक की बात को इतना गंभीरता से ले लिया कि पूरा खेल ही बदल गया!
ऑफिस की ईमेल राजनीति: जब ग्राहक ही बना सिरदर्द
हमारे देश में भी ऑफिस में मेल लिखना एक अलग ही कला है। कोई "सुप्रभात" से शुरू करता है, कोई "आदरणीय महोदय" से, तो कोई सीधा मुद्दे पे आता है। लेकिन पश्चिमी देशों में कई बार ग्राहक इतने शुष्क और रूखे होते हैं कि न तो नमस्ते, न धन्यवाद, बस "ट्रक 4810 कहाँ है?" जैसी लाइन फेंक देते हैं।
रेडिट पर u/Ok-Moose1591 नामक कर्मचारी ने बताया कि वह एक लॉजिस्टिक्स कंपनी में काम करते थे। एक बड़ा रिटेल क्लाइंट हमेशा छोटी-छोटी, अधूरी मेल भेजता, और अगर किसी ने थोड़ा सा भी एक्स्ट्रा बताया तो नाराज़ हो जाता।
इतना ही नहीं, मैनजर ने सबको मीटिंग में बुलाकर साफ़ कह दिया, "अबसे जैसे पूछेंगे, वैसा ही जवाब देना है – न कम, न ज़्यादा, न गुड मॉर्निंग, न स्माइली, बस सटीक जवाब!"
जवाब वही, सवाल जितना: ग्राहक ने खुद सीखा सबक
अगले ही दिन वही दुष्ट ग्राहक फिर मेल करता है – "ट्रक 4810 कहाँ है?"
जवाब – "रास्ते में है।"
फिर – "ETA?"
जवाब – "3:42 PM"
"ड्राइवर का नाम?"
बस नाम।
"सही पैलेट्स हैं?"
"हाँ।"
"डॉक 3 या 6?"
"3।"
"रिसीवर को बताया?"
"हाँ।"
ऐसे करते-करते दस मेल हो गए! ग्राहक थक हारकर मैनेजर को CC करके शिकायत कर बैठा, "आपके कर्मचारी तो बिलकुल भी मददगार नहीं हैं! proactive communication कहाँ है?"
मैनेजर ने मुस्कराकर वही जवाब घुमा दिया – "हमने कर्मचारियों को आपके निर्देशानुसार सिर्फ वही जवाब देने को कहा है, जो पूछा जाए।"
कम्युनिटी की चटपटी टिप्पणियाँ: हँसी भी, सीख भी
एक कमेंट में मज़ेदार अंदाज़ में लिखा गया, "वाह! जब कर्मचारी ने ग्राहक की नसीहत पर अमल किया, तो ग्राहक को भी समझ आ गया कि भई, बात घुमा-फिराकर नहीं, सीधे और साफ़ बोलनी चाहिए।"
दूसरे ने कहा, "शायद मैनेजर का असली प्लान ही यही था – ग्राहक को उनकी ही दवा चखाना!"
एक और ने भारतीय अंदाज में लिखा, "ये तो वही बात हो गई – जैसी करनी, वैसी भरनी!"
कुछ ने बताया कि ऑफिस में ऐसे लोग बहुत मिलते हैं, जो हर सवाल के लिए अलग मेल भेजते हैं, जैसे कोई व्हाट्सऐप चैट हो। एक अनुभवी मैनेजर ने साझा किया, "अपने कर्मचारियों को सपोर्ट देना सबसे ज़रूरी है। समस्या का जिम्मा खुद लिया तो टीम का मनोबल भी बढ़ा और ग्राहक भी सुधर गया।"
एक कमेंट में तो ये भी लिखा गया,
"Dock 3 या 6?"
जवाब – "3"
और अगर ग्राहक पूछे, "कौन सा ट्रक?"
जवाब – "4810"
यानि, बात को पूरी तरह सूखा और संक्षिप्त रखना!
भारतीय ऑफिस में क्या सीखें?
हमारे यहाँ भी ज्यादातर मेल में लोग या तो जरूरत से ज्यादा घुमा-फिराकर बोलते हैं, या फिर एकदम रूखे अंदाज में। बहुत बार ऐसा होता है कि एक ही मेल में पाँच सवाल पूछे जाएँ, और जवाब सिर्फ एक का मिले।
कुछ लोग तो मेल को ही चैट समझ बैठते हैं – हर सवाल के लिए नया मेल!
इस कहानी से सीख यही मिलती है कि ईमेल में सवाल भी साफ-साफ, और जवाब भी उतना ही साफ होना चाहिए। न जरूरत से ज्यादा, न कम। और सबसे बड़ी बात – अपने साथियों को सपोर्ट करने वाला मैनेजर मिल जाए, तो समझिए सोने पे सुहागा!
निष्कर्ष: "जैसी करनी, वैसी भरनी" का ऑफिस संस्करण
इस पूरी घटना में सबका फायदा हुआ – ग्राहक ने सीखा कि ठीक से सवाल पूछने में ही भलाई है, कर्मचारी को राहत मिली, और मैनेजर ने टीम का हौसला बढ़ाया।
तो अगली बार जब आप ऑफिस में मेल लिखें, तो सोचिए – क्या आप अपनी बात साफ़ कह रहे हैं? क्या आप सामने वाले का समय बचा रहे हैं?
और हाँ, अगर कोई आपको बार-बार "केवल वही जवाब दो जो पूछा जाए" कहे, तो कभी-कभी उन्हें उनकी ही भाषा में जवाब देना जरूरी हो जाता है!
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? नीचे कमेंट में जरूर बताएं – और अगली बार मेल भेजते वक्त "सुप्रभात" या "सादर" लिखना न भूलें, आखिर भारतीय संस्कार भी ज़रूरी हैं!
मूल रेडिट पोस्ट: You said only reply with exactly what they ask? Got it.