जब ग्राहक ने कॉल ट्री अपडेट को बना दिया अंतहीन झूला: टेक्निकल सपोर्ट की देसी रामकहानी
कंप्यूटर, फोन और सरकारी दफ्तर – भाई साहब, जब ये तीनों एक साथ आ जाएं, तो समझ लीजिए मसाला तैयार है! सरकारी दफ्तरों में टेक्निकल सपोर्ट देने वाले का काम वैसे भी कोई आसान नहीं, लेकिन जब सामने वाला ग्राहक केवल अपनी ही धुन में हो, तब ये काम सीधे-सीधे “कागज़ पर नाव चलाने” जैसा हो जाता है।
आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसमें एक आईटी सपोर्ट कर्मचारी की मेहनत और धैर्य की परीक्षा उस वक्त होती है, जब ग्राहक न सुनना जानता है, न समझना – बस अपनी रट लगाए रहता है। पढ़िए, कैसे एक मामूली-सी कॉल ट्री अपडेट की टिकट ने पूरे दफ्तर को उलझन में डाल दिया।
ग्राहक बोले – सुनो तो सही, मगर अपने मन की!
हमारे नायक (कर्मचारी) का काम था सरकारी दफ्तरों के फोन सिस्टम (Teams फोन, VoIP फोन, हेडसेट वगैरह) को संभालना। आमतौर पर काम सीधा-सादा होता है – किसी का नाम बदलना, किसी की छुट्टी का नंबर हटाना, वगैरह। लेकिन उस दिन एक नया टिकट आया – कॉल ट्री (यानी वो फोन मेन्यू जिसमें “1 दबाएँ, 2 दबाएँ” चलता है) को पूरी तरह बदलना था।
भैया, ये कोई आलू-प्याज की सब्ज़ी नहीं जो झटपट बन जाए! कुछ तो कर्मचारी ने ठीक-ठाक कर दिया, लेकिन तीन हिस्से ऐसे थे जिनका काम उसकी टीम के बस का नहीं था। इसके लिए 'High Point' नाम की दूसरी टीम चाहिए थी, और उन्हें चाहिए थी नई 'मेन मेन्यू रिकॉर्डिंग' – यानी वो आवाज़ जो कॉलर को गाइड करती है।
चिट्ठी पे चिट्ठी, जवाब पे जवाब – ग्राहक की अपनी धुन
अब कर्मचारी ने पूरी विनम्रता से ग्राहक (यहाँ एक महिला कर्मचारी) को समझाया – "मैडम, बाकी हिस्सों का काम High Point करेगी, और उनको आपकी रिकॉर्डिंग चाहिए। आप रिकॉर्डिंग भेज दें, काम आगे बढ़ जाएगा।"
लेकिन यहाँ मामला सरकारी दफ्तर की फाइलों जैसा हो गया – जहाँ फाइल एक टेबल से दूसरी टेबल घूमती रहती है, मगर असली काम अटका रहता है। मैडम ने हर बात को इग्नोर किया, और बार-बार शिकायतें करने लगीं – “अभी तक पूरा क्यों नहीं हुआ?”, “ये सेक्शन वैसे क्यों नहीं दिख रहे?”, “आपने अधूरा क्यों भेजा?” वगैरह।
कर्मचारी ने चार बार तक स्पष्ट किया – "मैडम, जब तक रिकॉर्डिंग नहीं आएगी, आगे बढ़ना नामुमकिन है।" मगर उधर से वही घिसी-पिटी फरियादें आती रहीं।
कम्युनिटी की राय – 'सीधे बात कहो, मैनेजर को घसीटो'
रेडिट कम्युनिटी ने इस मसले पर खूब मसालेदार और काम की राय दी। एक यूज़र ने कहा, "ऐसे में ग्राहक के मैनेजर को मेल पर CC कर दो, ताकि सबको पता चले किस वजह से काम रुका है।" – कुछ वैसा ही जैसे हमारे यहाँ कोई फाइल अटक जाए तो सीधा बड़े साहब को शिकायत भेज दो!
दूसरी सलाह आई – “ईमेल जितना छोटा, उतना असरदार – 'मैडम, आपकी रिकॉर्डिंग आए बिना टिकट आगे नहीं बढ़ेगा।' बाकी सब जानकारी छोड़ दो। ग्राहक को जितनी कम जानकारी दोगे, उतना कम उलझेगा!”
एक यूज़र ने तो मज़ाकिया अंदाज़ में लिखा – “अब तो बस हर बार पूछो – रिकॉर्डिंग भेजी या नहीं? दिख नहीं रही, फिर से भेज दो!” बिलकुल वैसे ही जैसे स्कूल में टीचर होमवर्क पूछती हैं – “कहाँ है होमवर्क? दिखाओ, फेल कर दूंगी!”
एक और बढ़िया सुझाव था – “अगर ग्राहक बार-बार जवाब नहीं दे रही, तो टिकट को 'कस्टमर एक्शन' स्टेटस पर डाल दो, और आराम से बैठ जाओ! जब जवाब आए, तब आगे बढ़ो – वरना आपकी सेहत की फिक्र कौन करेगा?”
सरकारी दफ्तरों की कहानी – 'फाइल घूमे, काम रुके'
इस पूरे किस्से में एक बात साफ झलकती है – हमारे सरकारी दफ्तरों में अकसर काम इसी तरह उलझ जाता है। कोई जरूरी जानकारी देने में देर, ऊपर से बार-बार वही सवाल-जवाब। कर्मचारी बेचारा बार-बार समझाता, मगर सामने वाला अपनी ही रट लगाए रहता है – जैसे रेडियो में एक ही गाना बार-बार बजता रहे!
रेडिट पर एक कमेंट ने दिल छू लिया – “इतनी बार कहने के बाद भी अगर ग्राहक नहीं समझे, तो अब मैनेजर को ही जिम्मा दो। कर्मचारी को भी तो अपनी इज्जत और मानसिक शांति प्यारी है!” सच बात है, सरकारी सिस्टम में यही तो सबसे बड़ा हुनर है – कब, किसे, और कैसे escalate (ऊपर पहुँचाना) करना है!
निष्कर्ष – आपकी टीम, आपकी जिम्मेदारी, मगर धैर्य भी कोई चीज़ है!
कहानी का निचोड़ यही है – चाहे कितना भी प्रोफेशनल या विनम्र बनो, जब तक सामने वाला अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा, काम नहीं होगा। टेक्निकल सपोर्ट का काम जितना तकनीकी है, उतना ही “मानव संसाधन” का भी – यहाँ patience, communication और कभी-कभी ‘सख्ती’ भी जरूरी है।
अब ये कहानी यहीं रुकी है, क्योंकि ग्राहक ने न रिकॉर्डिंग भेजी, न कॉल उठाया। लेकिन उम्मीद है कि एक दिन इस झूले का झूला थमेगा, और कॉल ट्री अपडेट हो ही जाएगा!
अगर आपके साथ भी ऐसा कोई किस्सा हुआ हो – कोई 'बॉस', 'क्लाइंट' या 'ग्राहक' जो सुनता ही न हो, तो कमेंट में जरूर साझा कीजिए। आखिर, “हमारी सरकारी गाड़ी भी धीरे-धीरे चलती है, मगर चलती जरूर है!”
मूल रेडिट पोस्ट: Client refuses to listen and puts ticket in perpetual limbo