जब गुरुजी बोले – 'इससे मुझे कुछ नहीं पता चलता!' और छात्र ने दिया करारा जवाब
क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि आप किसी को अपना पता या जगह समझा रहे हों, और सामने वाला ऐसा मुंह बनाए जैसे आपने कोई पहेली पूछ ली हो? अक्सर गाँव-शहर के मेलों में या रिश्तेदारों की शादी में ऐसा होता है, जब कोई पूछता है – "कहाँ से हो?" और फिर आपकी बात सुनकर कहता है – "अरे, इससे तो कुछ पता ही नहीं चलता!" आज की कहानी कुछ ऐसी ही एक मज़ेदार घटना पर आधारित है, जिसमें एक छात्र ने अपनी चुस्ती-फुर्ती और चुटीले दिमाग़ से सबको चौंका दिया।
पुरस्कार समारोह की रंगीन सुबह
कहानी शुरू होती है एक स्कूल अवॉर्ड सेरेमनी के नाश्ते से। वहां अलग-अलग स्कूलों के छात्र और उनके कोच (यानि शिक्षक) बैठे थे। बातचीत का माहौल बना, और दूसरे स्कूल के गुरुजी ने हमारे नायक से पूछा, "बेटा, तुम लोग कहाँ से आए हो?" जैसे ही छात्र ने जवाब देना शुरू किया, सामने वाले को कुछ खास समझ में नहीं आया। छात्र ने मदद करने की नीयत से कहा, "क्या आपको Auburn University के बारे में पता है? हम उसी के पास वाले शहर से हैं।" इस पर गुरुजी बोले, "इससे मुझे कुछ नहीं पता चलता!"
अब हमारे छात्र महाशय बचपन से ही तेज़-तर्रार, तुनक मिज़ाज और थोड़े शरारती रहे हैं। उन्होंने तुरंत पलटकर उनसे ही पूछ लिया, "अच्छा, आप लोग कहाँ से हैं?" गुरुजी और उनका दल बड़े उत्साह से समझाने लगे – “हमारे शहर के पास एक पहाड़ है, उसके बगल में नदी बहती है, फिर वहीं से हमारा इलाका शुरू होता है…”
'इससे मुझे कुछ नहीं पता चलता' – पलटवार का जादू
एक दोस्त ने बगल में धीरे से फुसफुसाया – "अब आएगा मज़ा!" छात्र ने कुर्सी सीधी की, ज़रा आगे झुके और उसी अंदाज़ में बोले, "इससे मुझे कुछ नहीं पता चलता।" बस फिर क्या था! पूरे टेबल पर हँसी की लहर दौड़ गई और उस गुरूजी का चेहरा टमाटर की तरह लाल हो गया।
यह घटना जितनी सामान्य लगती है, उतनी ही गूढ़ है। गाँव-कस्बों में अक्सर लोग अपनी जगह या पहचान ऐसे समझाते हैं, जैसे सबको अपने इलाके का हर कोना मालूम हो। जैसे – "तुम्हें याद है, जहाँ चाचा का पुराना आम का पेड़ था? उसी के बगल में हमारा घर है!" अब भला, जिसे वह आम का पेड़ या चाचा का घर ही नहीं पता, वह क्या समझे? यही बात Reddit के एक यूज़र ने बड़े मज़ेदार तरीके से कही – “बचपन में रास्ता बताने वाले हमेशा कहते थे – ‘वहां मुड़ना, जहाँ पुरानी दुकान हुआ करती थी!’ अब नई पीढ़ी को कौन बताए कि दुकान कब की बंद हो गई!”
'बात से बात' – कमेंट्स में छुपी और भी हँसी
इस कहानी पर Reddit कम्युनिटी में भी जबर्दस्त मज़ाक और दिलचस्पी देखने को मिली। एक यूज़र ने कहा, “ये तो वही बात हो गई जैसे मेरी एक्स-गर्लफ्रेंड जब कोई फ़िल्म दिखाना चाहती थी, और मैं पूछता – ‘किस विषय पर है?’ तो वह बस कलाकारों के नाम गिनाने लगती!” कई लोगों ने इसी अंदाज़ में अपनी-अपनी कहानियाँ भी शेयर कीं।
एक और कमेंटर ने लिखा, “अब ये ‘इससे मुझे कुछ नहीं पता चलता’ तो हर खराब रास्ता बताने वाले के लिए आदर्श जवाब बन गया है!” सच भी है – कभी-कभी हल्की-फुल्की टक्कर या चुटकी मारना जरूरी हो जाता है, ताकि सामने वाले को अपनी बात का एहसास हो सके। हमारे देश में भी, जब दोस्त या रिश्तेदार रास्ता बताते हुए अजीबो-गरीब संकेत देते हैं – “जहाँ भैंस खड़ी रहती है, उसके पास से दाहिने मुड़ना!” – तो अब आप भी मुस्कुरा कर कह सकते हैं, “इससे मुझे कुछ नहीं पता चलता!”
क्या यह 'पेटी' बदला बुरा है?
कुछ ने सवाल उठाया – क्या इतना छोटा-सा बदला लेना सही है? भई, सोचिए – जब कोई बार-बार आपकी बात अनसुनी करे या आपको छोटा समझे, तो थोड़ा बहुत मज़ाक उड़ाना या चुटकी लेना जायज़ है। हमारे यहाँ तो कहावत है – "लोहा लोहे को काटता है।" इसी तर्ज़ पर छात्र ने अपनी सूझ-बूझ से सही जगह सही तीर चला दिया।
एक अन्य कमेंट में किसी ने लिखा – "कभी-कभी ऐसे जवाब से सामने वाला खुद को आईना देखता है, और शायद अगली बार सोच-समझकर बोले।" आखिर, आपसी बातचीत में हल्की-फुल्की नोकझोंक ही तो रिश्तों की मिठास बढ़ाती है!
निष्कर्ष – अब जब भी कोई उलझा दे, मुस्कुराइए!
तो अगली बार जब कोई रिश्तेदार, दोस्त या ऑफिस का सहकर्मी आपको ऐसे उलझा दे कि “हमारे मोहल्ले के पास जो बड़ा पीपल का पेड़ है, उसके ठीक पीछे…” आप भी बड़े इत्मीनान से कह सकते हैं – “इससे मुझे कुछ नहीं पता चलता!” कभी-कभी ऐसी छोटी-छोटी चुहलें बड़ी बातें सिखा देती हैं – दूसरों को अपनी दुनिया का केंद्र न समझिए, और संवाद को सबके लिए सरल और खुला रखिए।
क्या आपके साथ भी कभी कोई ऐसी घटना हुई है? अपने अनुभव नीचे कमेंट में ज़रूर साझा करें। कौन जाने, आपकी कहानी भी किसी दिन वायरल हो जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: That don't tell me nothing!