जब ‘कैश’ और ‘कार्ड’ एक ही बात हो जाए: होटल रिसेप्शन की मजेदार दास्तां
कभी-कभी लोग ऐसे-ऐसे सवाल कर देते हैं कि आप सोच में पड़ जाते हैं – “अरे भाई, ये किस दुनिया में रहते हैं?” होटल में रिसेप्शन पर बैठना वैसे भी आसान काम नहीं। ऊपर से अगर ग्राहक ही ‘जुगाड़ू’ निकले, तो मज़ा ही कुछ और है। एक बार की बात है, जब एक सज्जन आए और उन्होंने ‘कैश’ और ‘कार्ड’ को ऐसे मिलाकर पेश किया कि खुद बैंकों के बाबू भी चकरा जाएँ!
होटल रिसेप्शन – जहाँ हर दिन नया तमाशा
शाम के आठ बजे थे। एक-एक करके चार–पाँच पार्टियाँ होटल में दाखिल हुईं। हमारे यहाँ तो ये आम बात है, लेकिन उस दिन हर कोई जैसे झल्लाए हुए था – कोई आईडी बिना देना चाहता था, तो कोई पेमेंट के नाम पर जी चुराने लगा। रिसेप्शनिस्ट ने गहरी साँस ली और मुस्कान के साथ पहली पार्टी का स्वागत किया, “नमस्ते, चेक-इन करना है?”
“हाँ।”
“सर, लास्ट नेम क्या है?”
“क्यों पूछ रहे हो?”
मतलब, भाईसाहब! बिना नाम जाने बुकिंग कैसे निकालें? खैर, नाम मिला, तो आईडी और पेमेंट की बारी आई।
‘इंसीडेंटल चार्ज’ – भारतीय ग्राहकों के लिए पहेली
अरे, हमारे यहाँ तो होटल में एडवांस के नाम पर बहस आम है, लेकिन यहाँ तो ग्राहक ने एक नया सवाल फेंक दिया – “ईमेल में तो 400 रुपये बचे हैं, 500 क्यों ले रहे हो?” अब समझाइए कि 100 रुपये ‘इंसीडेंटल’ हैं – यानी अगर कुछ नुकसान नहीं हुआ, तो ये पैसे लौट आएँगे।
इधर दो बार समझाया, उधर ग्राहक फिर वही सवाल दोहराएँ। आखिरकार बोले, “मेरे पास अभी पूरे पैसे नहीं हैं, सुबह दे दूँगा।” तीन कॉल किए, कोई उठा ही नहीं। पीछे लाइन में खड़े लोग बेचैन हो रहे थे – आप सोचिए, जैसे रेलवे स्टेशन पर टिकट काउंटर!
‘कैश’ और ‘कार्ड’ – पश्चिमी होटल बनाम देसी जुगाड़
ग्राहक ने अगला जुगाड़ लगाया – “रूम के पैसे कार्ड से दे दूँ, इंसीडेंटल कैश में।” रिसेप्शनिस्ट ने सिस्टम में बदलाव किए, कैश के लिए सेट किया। लेकिन अगले ही पल, ग्राहक ने कार्ड थमाया – “ये लो, इंसीडेंटल के लिए कार्ड। जल्दी करो, टाइम नहीं है!”
अब रिसेप्शनिस्ट के दिमाग की बत्ती गुल! दरअसल, ग्राहक चाहते थे कि कार्ड से पैसे कट जाएँ, लेकिन रिसेप्शनिस्ट दराज से नकद निकालकर रख लें, ताकि बाद में कैश मिल जाए – जैसे बैंक में 'कैशबैक'! और मज़े की बात – काउंटर से तीन फीट की दूरी पर एटीएम था, फिर भी होटलवाले को ही एटीएम समझ लिया।
यहाँ एक कमेंट करने वाले ने बड़ी दिलचस्प बात लिखी – “भाई, ये तो चाहते हैं कि होटलवाले एटीएम बन जाएँ, कार्ड से पैसे कटाकर कैश दे दें!” एक और ने लिखा, “शायद ग्राहक कार्ड से कटवाकर कैश में डिपॉजिट चाहते थे ताकि चेकआउट पर उन्हें नकद मिल जाए।”
ग्राहक के दिमागी खेल – होटलवाले भी कम नहीं
कुछ लोगों ने तो यहाँ तक कहा कि शायद ग्राहक बाद में क्रेडिट कार्ड कंपनी से 'चार्जबैक' क्लेम करना चाहते होंगे – यानी होटल ने पैसे तो काट लिए, लेकिन वापस नहीं किए! ऐसे में डबल फायदा उठाने की चालाकी। हमारे यहाँ भी कई बार ग्राहक बचे हुए पैसे के लिए बहस करते हैं, लेकिन ये तरीका तो नया था।
ऑरिजिनल पोस्ट करने वाले ने भी कहा, “मैं खुद भी कन्फ्यूज़ था, लगता है उन्हें सिर्फ कैश में पैसे चाहिए थे – और खुद के पास थे नहीं, तो मुझसे जुगाड़ करवाना चाह रहे थे।”
होटल मैनेजमेंट – कभी-कभी नियम तोड़ना ज़रूरी!
एक अन्य कमेंट में किसी ने लिखा, “ऐसे लोगों को चेक-इन ही न करने दो!” लेकिन रिसेप्शनिस्ट ने समझदारी दिखाई – “हमारे यहाँ पहले रात की पेमेंट पहले ही हो जाती है, बाक़ी सुबह ले सकते हैं। अगर सुबह तक पेमेंट नहीं हुई, तो चेकआउट ही नहीं मिलेगा।”
कई लोगों ने सुझाव दिया कि होटल में कैश स्वीकार ही मत करो, वरना ये झंझट चलता रहेगा। वहीं, कुछ पुराने होटल कर्मचारियों ने सलाह दी – नियम तोड़ना नहीं चाहिए, वरना ऐसे ग्राहक आदत बना लेते हैं। लेकिन रिसेप्शनिस्ट का जवाब शानदार था – “ग्राहक के हिसाब से थोड़ा लचीलापन ज़रूरी है। नियम तोड़े नहीं, बस समझदारी से काम लिया।”
निष्कर्ष – होटल की डेस्क, ग्राहक की जुगाड़, और हमारी हँसी
जैसे हर भारतीय शादी में बाराती कुछ नया कर दिखाते हैं, वैसे ही होटल के रिसेप्शन पर भी रोज़ कुछ नया सुनने-देखने को मिल जाता है। कभी-कभी ‘कैश’ और ‘कार्ड’ एक हो जाते हैं, कभी ग्राहक खुद ही एटीएम बन जाते हैं! होटलवाले जितने भी नियम बना लें, देसी जुगाड़ू ग्राहक अपना रास्ता निकाल ही लेते हैं। पर अंत में, ग्राहक खुश, रिसेप्शनिस्ट खुश – और पढ़ने वाले हम सब भी मुस्कुराते हुए!
अगर आपके साथ भी ऐसे किस्से हुए हैं – होटल में या कहीं और, तो कमेंट में ज़रूर बताइएगा। कौन जाने, अगली कहानी आपकी हो!
मूल रेडिट पोस्ट: Apparently, 'Cash' and 'Card' are Interchangeable