जब कॉलेज की टीचर ने किया नाटक, छात्रों ने समझदारी से दिखाया दांव

कॉलेज के एक छात्र का कार्टून 3D चित्र, जो दोस्तों की मदद कर रहा है अचानक मिले होमवर्क के लिए।
इस जीवंत कार्टून-3D दृश्य में, एक दृढ़ कॉलेज का छात्र अपने सहपाठियों को शिक्षक द्वारा सौंपे गए अप्रत्याशित होमवर्क को हल करने के लिए एकजुट करता है, जो अंतिम क्षणों की चुनौतियों का सामना करते हुए टीमवर्क और दृढ़ता को दर्शाता है।

क्या आपने कभी किसी ऐसे अध्यापक का सामना किया है, जो खुद पढ़ाने में जीरो हो लेकिन छात्रों पर फालतू का रौब झाड़े? अमेरिका के एक छोटे से तकनीकी कॉलेज की ये सच्ची कहानी है, जिसमें एक अजीबोगरीब टीचर की हरकतों ने पूरे क्लास को सिर पकड़ने पर मजबूर कर दिया। पर कहते हैं न, “जहाँ चाह वहाँ राह” – छात्रों ने भी अपनी सूझबूझ से ऐसा पलटवार किया कि टीचर की सारी चालें धरी की धरी रह गईं।

कहानी शुरू होती है एक ऐसे छात्र से, जो स्वास्थ्य कारणों से पढ़ाई अधूरी छोड़कर सालों बाद कॉलेज लौटा। वैसे तो उसने ज्यादातर विषयों की परीक्षा देकर छूट हासिल कर ली थी, लेकिन एक ‘एडवांस्ड कीबोर्डिंग’ क्लास से पीछा नहीं छूटा। मजे की बात ये कि उस क्लास की टीचर खुद टाइपिंग की माहिर नहीं थी, ऊपर से उनके ईमेल में इतनी गलतियाँ होती थीं कि पढ़ने वाला सोच में पड़ जाए! ऑनलाइन क्लास होनी थी, लेकिन मैडम को डिजिटल सिस्टम चलाना ही नहीं आता था, इसलिए सबको कॉलेज आना पड़ता था।

अब सिलेबस में दिए गए असाइनमेंट्स के अलावा, टीचर ने “प्रैक्टिस वर्क” भी दे डाला – जिसमें बस टाइपिंग करनी थी और कंप्यूटर खुद जाँचता था। असाइनमेंट्स तो हमारे नायक ने समय रहते पूरे कर दिए, पर उसका छोटा भाई इस प्रैक्टिस वर्क को फालतू मानता था, इसलिए उसने टाइपिंग में ‘बॉब सागेट तुम्हारी धुनाई कर देगा’ जैसे मज़ाकिया वाक्य लिख डाले! दोनों को लगा, ये काम कोई देखेगा नहीं।

लेकिन जैसे ही सेमेस्टर खत्म होने को आया, टीचर को अचानक प्रैक्टिस वर्क देखने का शौक चढ़ा। उन्होंने गुस्से में एक खराब स्पेलिंग वाला ईमेल भेजा ― “जो भी बच्चों ने बकवास टाइप किया है, अब ये सब ग्रेडेड होगा, दो दिन में प्रिंटआउट लाओ वरना फेल कर दूंगी!” अब हालत ये कि जिनका काम पूरा था, वो भी सर पकड़े बैठे थे – इतने कम वक्त में कॉलेज जाकर, लाइन लगाकर, प्रिंटर से प्रिंट निकालना, ऊपर से हर दो मिनट में पेपर खत्म!

एक कमेंट में एक अमेरिकी पाठक ने कहा, “यहाँ तो सिलेबस ही कॉन्ट्रैक्ट होता है, अगर टीचर अपनी मनमानी करें तो छात्र शिकायत करके फैसला अपने हक में करवा सकते हैं।” हमारे नायक ने भी जवाब दिया, “काश हमें ये पता होता! हमारा कॉलेज तो खुद सर्कस था – असली तामाशा!”

अब असली ट्विस्ट आया – छोटे भाई ने देखा कि कॉलेज के कंप्यूटर में किसी के भी असाइनमेंट फोल्डर बिना पासवर्ड के खुले हुए हैं! मतलब, कोई भी किसी का काम देख सकता है, कॉपी कर सकता है, एडिट कर सकता है। नायक ने तो बस इतना दिखाया कि सिस्टम कितना लापरवाह है, लेकिन छोटा भाई तो चालाक निकला – उसने अपने भाई के पूरे प्रैक्टिस वर्क को कॉपी करके खुद के फोल्डर में डाल दिया, और फिर बाकी जिन छात्रों का काम अधूरा था, उनके फोल्डर में भी वही पेस्ट कर दिया!

अब बाकी छात्र जो घबराए हुए थे, छोटे भाई ने उन्हें कहा, “बस जाओ, अपने असाइनमेंट्स खोलकर प्रिंट मार दो।” सबको यकीन नहीं हुआ, लेकिन जब देखा कि काम पूरा है, सबने बिना सवाल किए प्रिंटआउट निकाल लिए।

अगले दिन क्लास में माहौल देखिए – टीचर का तो पारा सातवें आसमान पर, “ये कैसे हुआ कि जो बच्चे पूरे सेमेस्टर सोए रहे, अचानक सबका काम तैयार! ये सब क्या माजरा है?” पर टीचर तो बस कागज़ देखना चाहती थी, असल में पढ़ना नहीं था। पूरे कॉलेज में स्याही और कागज की बर्बादी हो गई, लेकिन छात्रों ने भी दिखा दिया कि जब नाइंसाफी हो रही हो, तो चुप रहना जरूरी नहीं।

इस किस्से पर कमेंट करने वालों ने भी खूब मजे लिए। एक प्रोफेसर ने लिखा, “सिलेबस के बाहर कोई भी ग्रेडेड असाइनमेंट देना नियम के खिलाफ है, आप सभी मिलकर शिकायत करते तो टीचर की नौकरी खतरे में पड़ सकती थी।” किसी और ने अपने स्कूल के दिनों का किस्सा सुनाया, “हमारी भी एक टीचर थी जो खुद क्लास में नहीं आती थी, किताबें छुपा देती थी, और नाम-लेने वाले को नियुक्त कर देती थी – साल भर कुछ नहीं सीखा।”

कुछ लोगों ने कॉलेज की लापरवाही पर तंज कसा – “अमेरिका के कॉलेजों में ग्रेडिंग कैसी चलती है, ये तो भगवान ही जाने! हमारे यहाँ तो हर परीक्षा में एक बाहरी परीक्षक होता है।” एक पाठक ने लुइसियाना के कच्चे रास्तों पर चुटकी ली – “यहाँ की सड़कों में इतने गड्ढे हैं कि बिना बोर्ड के ही पता चल जाता है, राज्य बदल गया!”

कहानी से ये भी पता चलता है कि ग्रुप पनिशमेंट (सामूहिक दंड) छात्रों को कितना परेशान कर सकता है। भारत में भी अक्सर स्कूल-कॉलेजों में किसी एक की गलती पर पूरी क्लास को सजा दे दी जाती है – और ऐसे में छात्र कभी-कभी चुपचाप नहीं बैठते, बल्कि जुगाड़ भिड़ा लेते हैं!

इस किस्से में छात्रों ने टीचर की अनुचित मांग का जवाब चालाकी से दिया। खुद भी काम बचाया, और दूसरों की भी मदद की। बेशक, ये तरीका नियमों के हिसाब से सही नहीं था, लेकिन जब सिस्टम ही फेल हो, तो ‘जुगाड़’ ही काम आता है – आखिर “पढ़ाई का बोझ हो या टीचर का तानाशाही रवैया, भारतीय छात्र भी ऐसे हालात में अपनी अक्ल खूब चलाते हैं!”

तो अगली बार जब कोई टीचर या बॉस आपको बिना वजह परेशान करे, सोचिए – आप भी ऐसा कोई जुगाड़ तो नहीं भिड़ा सकते? लेकिन हाँ, ज़रूरी है कि हम सिस्टम को भी सुधारने की कोशिश करें, और जहाँ हक मिले, वहाँ आवाज़ उठाएं। आखिर, “जहाँ अन्याय हो, वहाँ चुप्पी भी गुनाह है!”

आपका क्या अनुभव रहा है किसी ऐसे टीचर या बॉस के साथ? क्या आपने कभी ऐसा जुगाड़ लगाया है? कमेंट में जरूर बताइए – शायद आपकी कहानी भी किसी के चेहरे पर मुस्कान ले आए!


मूल रेडिट पोस्ट: College teacher gave surprise extra work last minute but I helped to thwart her