जब ‘कियोस्क’ ने ग्राहक सेवा को बना दिया गड़बड़झाला: एक मज़ेदार दुकान की कहानी
सोचिए, आप एक बड़े डिपार्टमेंटल स्टोर में गए हैं—हर तरफ चहल-पहल, बच्चों की शरारतें, बुज़ुर्गों की थकी-सी चाल और हर कोई किसी न किसी चीज़ की तलाश में। ऐसे माहौल में अगर आपको अचानक सामान ढूंढने के लिए इंसान की बजाय एक मशीन यानी ‘कियोस्क’ के पास भेज दिया जाए, तो कैसा लगेगा? हाँ भई, यही हुआ एक अमेरिकी स्टोर में, और इसकी कहानी इतनी मज़ेदार है कि सुनकर आप भी मुस्कुरा उठेंगे!
असल में, वहां के बड़े अफसरों ने नया फर्मान जारी किया—"ग्राहकों को सामान तक ले जाकर मत दिखाओ, बस उन्हें कियोस्क की तरफ भेज दो।" मतलब, अब ग्राहक सेवा डेस्क पर बैठा कर्मचारी आपको मुस्कुराकर बताएगा, "आपको पिक्चर हुक्स चाहिए? वो तो कियोस्क बताएगा!" और अगर कोई बुज़ुर्ग दादी पूछें, "बेटा, वॉशरूम किधर है?" तो जवाब मिलेगा, "कियोस्क पर जाइए, वहीं देख लीजिए।"
शुरुआत में सबको लगा, इससे काम आसान हो जाएगा। लेकिन असलियत कुछ और निकली। अब सोचिए, हमारे देश में भी अगर राशन की दुकान पर दुकानदार बोले, "भाई साहब, दाल कहाँ है? उधर कोने में मशीन लगी है, उसी से पूछ लो," तो क्या होगा? वही हुआ इस स्टोर में। कुछ ही घंटों में कियोस्क के पास एक भीड़ लग गई—कोई स्क्रीन को घूर रहा, कोई समझ नहीं पा रहा कि टच कहां करें, और बच्चे स्क्रीन पर गेम खेलने की कोशिश कर रहे हैं।
इतना ही नहीं, असली मज़ा तब आया जब कियोस्क के सामने दो लाइनें बन गईं—एक लाइन मशीन के लिए, दूसरी लाइन असली काम के लिए! और बेचारा कर्मचारी, जो नियम का पक्का था, बस शांति से अपनी जगह बैठा रहा। ग्राहक भी सोचने लगे, "ये कर्मचारी तो जैसे ताने मार रहा है!" मगर भाई ने तो ‘ऊपर’ वालों के आदेश का पालन किया था।
एक ग्राहक तो इतना नाराज़ हो गया कि सीधा मैनेजर को बुला लिया। और मैनेजर को खुद दस मिनट लग गए एक सामान तक पहुंचाने में। अब बताइए, मशीनें इंसानों की जगह ले सकती हैं क्या?
इस घटना पर रेडिट कम्युनिटी में भी खूब चर्चा हुई। एक ने तो चुटकी ली, "अरे, दुकानें तो चाहती हैं आप घूमते-फिरते सामान खरीदें, कियोस्क दे दिया तो खुद ही उलझ जाओ!" वहीं एक और ने याद दिलाया, "हमारे यहाँ तो कम से कम कर्मचारी पूछने पर सामान दिखा ही देते हैं, ये तो अजीब ही सिस्टम हो गया।" एक मज़ेदार टिप्पणी थी—"अगर वॉशरूम पूछने पर भी मशीन के पास भेजोगे, तो समझो आफत आ जाएगी!"
कुछ लोगों ने ये भी कहा कि बड़ी दुकानों में वैसे भी इतनी भीड़ होती है, ऊपर से मशीनों का झंझट, तो ग्राहक तो भाग ही जाएंगे। किसी ने कहा, "हम तो ऐसी दुकान छोड़ दूसरी जगह चले जाते!" सोचिए, हमारे यहाँ भी अगर सब्ज़ीवाले ने मशीन लगा दी तो क्या हाल होगा—"भैया, टमाटर कहाँ हैं?"—"मशीन से पूछ लो, भाभीजी!"
इसी बहस के बीच एक कमेंट ने दिल जीत लिया, "कभी-कभी नियमों से ज़्यादा इंसानियत ज़रूरी है।" सही बात है! आखिरकार स्टोर मैनेजर को भी समझ आ ही गया—सोमवार आते-आते नियम बदल गए, अब आदेश था, "कियोस्क का इस्तेमाल करो, लेकिन इंसान बने रहो!"
इस पूरी कहानी में एक सीख छुपी है—तकनीक अच्छी है, मगर इंसानी समझदारी, अपनापन और मदद का कोई विकल्प नहीं। चाहे स्टोर छोटा हो या बड़ा, ग्राहक को वही दुकान प्यारी लगती है जहाँ उसे अपनापन मिले, न कि मशीनों के पीछे छुपा हुआ ठंडापन।
तो अगली बार जब आप किसी दुकान जाएं और दुकानदार मुस्कुरा कर खुद आपको सामान तक ले जाए, तो उसकी तारीफ ज़रूर करिएगा। और हाँ, अगर कोई नई तकनीक दिखे तो उससे डरिए मत, लेकिन उम्मीद रखिए कि इंसानियत हमेशा सिस्टम से बड़ी ही रहेगी।
आपका क्या अनुभव रहा है—क्या कभी किसी मशीन या नियम ने आपको परेशान किया है? अपनी कहानी नीचे कमेंट में जरूर साझा कीजिए, क्योंकि असली मज़ा तो सबकी सुनने में ही है!
मूल रेडिट पोस्ट: 'You have to use the kiosk for that'