जब काम का असली हीरो बोला – 'ना मुझे कॉल करो, ना मैं तुम्हें कॉल करूंगा!
ऑफिस की दुनिया भी किसी चाय-समोसे की टपरी से कम नहीं। यहाँ भी हर किसी का अपना जुगाड़ है, कोई काम निकलवाने का उस्ताद, तो कोई पीछे से अपना नाम चमकाने में माहिर। लेकिन जब असली मेहनती बंदे को तवज्जो न मिले, तब क्या होता है? आज की कहानी कुछ ऐसी ही है – जहां एक एक्सपर्ट कर्मचारी ने "मालिशियस कंप्लायंस" का ऐसा जवाब दिया कि पूरे ऑफिस का सिस्टम हिल गया!
कहानी की शुरुआत – 'कुछ काम मेरे बिना नहीं होते'
मान लीजिए आपकी टीम में एक ऐसा शख्स है, जो सबसे मुश्किल और जरूरी काम जानता है। बाकी लोग रोज़मर्रा की चीज़ें निपटा लेते हैं, लेकिन जब फंस जाते हैं, तो दौड़े-दौड़े उसी एक्सपर्ट के पास आते हैं। यहां भी यही हुआ – ऑफिस के 90% काम तो बाकी लोग निपटा रहे थे, लेकिन जो असली बड़ा झमेला आता, वो हमारे नायक के पास ही आता था।
अब दिक्कत यह थी कि जब भी कोई फंसता, तो तुरंत कॉल कर देता – "भैया, जरा देख लो!" और जब काम हो जाता, तो क्रेडिट वही ले जाता। असली मेहनत करने वाला बस देखता रह जाता। ऑफिस में 'ऑन-कॉल' का सिस्टम था – यानी जिसकी ड्यूटी, उसी को श्रेय। तो बाकी लोग अपनी शिफ्ट बचाने के लिए एक्सपर्ट को बैकडोर से बुलाते, और ऊपर से वाहवाही खुद ले जाते!
जब पानी सिर से ऊपर गया – 'अब मैं भी देखता हूँ'
कई बार ऐसा हुआ, पर एक दिन हमारे नायक ने सोचा – "अब बस! ना मुझे कॉल करो, ना मैं तुम्हें कॉल करूंगा।" उन्होंने अपना फोन बंद कर दिया और ऑफिस सिस्टम में स्टेटस डाल दिया – 'आउट ऑफ एरिया'। बाकी लोग सोच रहे थे, "चलो, जैसे-तैसे निपटा लेंगे।" लेकिन असलियत में बिना एक्सपर्ट के, सारा सिस्टम हिल गया।
हफ्ते के आखिर में एक बड़ा प्रॉब्लम आ गया, और कोई भी ठीक से संभाल नहीं पाया। हर कोई बारी-बारी से जिम्मेदारी टालता रहा। जब सोमवार की सुबह हमारे नायक ऑफिस लौटे और फोन चालू किया, तो ऑफिस में जैसे बाढ़ आ गई हो – हर कोई घबराया हुआ, "भैया, जल्दी आओ, सब गड़बड़ है!" नायक मौके पर पहुँचे, घंटों की मेहनत के बाद आखिर समस्या सुलझा दी – और इस बार क्रेडिट भी सही जगह पहुँचा।
'थैंक यू' की अहमियत – सिर्फ दो शब्द, लेकिन असर गहरा
यह कहानी पढ़कर एक कमेंट याद आ गया – "हमेशा उन्हें धन्यवाद देना चाहिए जो आपकी मदद करते हैं, वरना अगली बार वे मदद नहीं करेंगे।" सच बात है! हमारे समाज में भी यही चलन है – किसी ने छोटी-सी भी मदद की, तो 'शुक्रिया' कहने में कंजूसी क्यों?
एक और पाठक ने अपना अनुभव साझा किया: "मैंने भी एक वॉलंटियर संस्था में सालों तक काम किया। शुरू में सब तारीफ करते थे, इवेंट भी होते थे। फिर जब नए लोग आए, सिर्फ हुक्म चलाने लगे – और धीरे-धीरे सारे वॉलंटियर भाग गए।"
बात सीधी है – 'शुक्रिया' कहने में खर्चा क्या है? जब श्रेय सही जगह जाता है, तो टीम और मज़बूत होती है। लेकिन जब हर कोई बस नाम चमकाने में लगा रहे, तो फिर वही होता है जो इस कहानी में हुआ।
ऑफिस की राजनीति – शराब, छुट्टी और अपनी कीमत जानना
किसी ने मज़ाक में लिखा – "जब ऑफिस वाले बार-बार कॉल करने लगे, तो मैंने कह दिया – मैं तो अभी शराब पी रहा हूँ, ऑफिस की पॉलिसी के खिलाफ है, अब नहीं आ सकता!" कितनी बार हमारे देश में भी लोग 'बीमार हूँ', 'गाँव गया हूँ', 'नेटवर्क नहीं था' – ऐसे बहाने बनाते हैं, क्योंकि बिना मेहनत का श्रेय और बिना धन्यवाद के काम किसे अच्छा लगता है?
एक और कमेंट ने बड़ी बात कही – "अगर आपको पैसे नहीं मिल रहे, तो ऑफिस के बाहर क्या कर रहे हो, वो आपकी मर्जी!" यानी जब तक आपकी कदर नहीं है, तब तक खुद की कीमत पहचानिए।
आखिर में – असली टीम वही, जहां हर किसी की इज्ज़त हो
कहानी का अंत बड़ा फिल्मी है – कुछ साल बाद, जो लोग बस नाम चमकाने में लगे थे, वो सब निकाले गए। बाकी बचे लोग, जो सच में काम जानते थे, वही टीम का असली आधार बने। फिर नायक ने खुद सबको ट्रेनिंग दी, और अब कोई भी दिक्कत आए, टीम मिलकर निपटा लेती है – किसी को सपोर्ट के लिए बाहर कॉल ही नहीं करना पड़ता।
आपके ऑफिस में भी ऐसी राजनीति चलती है?
तो दोस्तों, क्या आपके ऑफिस या टीम में भी ऐसा ही कुछ चलता है? क्या कभी आपको लगा कि आपकी मेहनत का सही श्रेय नहीं मिला? या कभी किसी ने आपका 'शुक्रिया' तक नहीं कहा? नीचे कमेंट में अपना अनुभव जरूर साझा करें – हो सकता है, आपकी कहानी भी किसी को नया नजरिया दे दे!
चलते-चलते, याद रखिए – 'शुक्रिया' और 'सही श्रेय' दो ऐसी चीजें हैं, जो टीम को परिवार बना सकती हैं। और अगर कोई बार-बार आपको हल्के में ले, तो कभी-कभी 'ना मुझे कॉल करो, ना मैं तुम्हें कॉल करूंगा' वाला फार्मूला अपनाना भी जरूरी है!
आपकी क्या राय है – जवाब जरूर दीजिए!
मूल रेडिट पोस्ट: Don't Call Me & I Won't Call You.