जब कैफ़े मैनेजर की ‘राजसी फरमान’ से मची अफरा-तफरी: एक हाई स्कूल नौकरी की कहानी
कॉफ़ी की खुशबू, किताबों की दुनिया और काम का मज़ा — सोचिए, किसी किताबों की दुकान के कैफ़े में काम करना कितना आनंददायक होगा! लेकिन जब बॉस ही बादशाह बनने लगे, तो सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है। आज हम आपको सुनाते हैं एक ऐसे कर्मचारी की कहानी, जिसने अपने नए मैनेजर के सख्त आदेशों का पालन तो किया, लेकिन ऐसे अंदाज़ में कि मैनेजर खुद अपने ही फैसले पर पछता गया।
जब पुराने मैनेजर की विदाई ने बदली पूरी हवा
कहानी शुरू होती है अमेरिका के एक बड़े मॉल में स्थित किताबों की दुकान और उसके अंदर बने कैफ़े से। हमारे नायक को वहाँ हाई स्कूल के दिनों में नौकरी मिली थी। पहले मैनेजर बड़ी ही मिलनसार और अपने कर्मचारियों का ध्यान रखने वाली थीं — जो भारतीय कार्यस्थलों में अक्सर ‘माँ जैसी सुपरवाइज़र’ कहलाती हैं। वो हर किसी की टाइमिंग का ध्यान रखतीं, खुद भी हाथ बँटातीं और टीम को परिवार की तरह ट्रीट करतीं।
फिर एक दिन उन्होंने स्थानांतरण ले लिया और अपनी जगह ‘शॉन’ नाम के एक कर्मचारी को मैनेजर बना दिया। सुनने में आया कि शॉन की स्टाइल बिलकुल बॉलीवुड फिल्मों के किसी ‘टी.वी. शो वाले खड़ूस बॉस’ जैसी थी — तुनकमिज़ाज, नखरेबाज और हर जगह अपनी ही चलाने वाला। टीम के लोग उनसे दूरी बनाए रखते, क्योंकि शॉन हर छोटी-बड़ी बात पर ऑफिस में ‘राजा बाबू’ की तरह हुकुम चलाते थे।
जब मैनेजर ने सुन ली ‘किचन की बातें’
एक दिन शॉन ने हमारे नायक और एक अन्य कर्मचारी को यह कहते सुन लिया कि पहले वाली मैनेजर के समय काम का माहौल ज्यादा अच्छा था, टीमवर्क था, अब तो बस ‘हुकुम’ चलते हैं। बस, यही बात शॉन के दिल को लग गई। भारत में कहते हैं — "बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा", यहाँ भी शॉन को मौका मिल गया अपनी ताकत दिखाने का।
शनिवार के दिन, जब दुकान में सबसे ज्यादा भीड़ होती है, शॉन ने नायक को बुलाया और हुक्म सुनाया — “आज तुम काउंटर के पीछे नहीं जा सकते, न कॉफ़ी बनाओगे, न आइस स्कूप करोगे, सिर्फ सफाई, ट्रैश निकालना और किताबें जमाना। काउंटर की तरफ देखना भी मत!” अब सोचिए, जैसे किसी होटल में शेफ को कह दिया जाए, ‘आज तुम सिर्फ बर्तन माँजोगे’, तो क्या हाल होगा?
शनिवार का महाभारत: भीड़, गुस्सा और ‘मालिशियस कम्प्लायंस’
सुबह 9 बजे हल्की लाइन लगी। 11 बजे तक तो हाल बेहाल — लंबी कतार, चिड़चिड़ाए ग्राहक, और बाकी कर्मचारी पसीने-पसीने। ग्राहक जब पूछते, “भैया, आप काउंटर पर मदद क्यों नहीं कर रहे?” तो हमारे नायक मासूमियत से जवाब देते, “माफ कीजिए, आज मेरे मैनेजर ने मना किया है, मैं ड्रिंक्स नहीं बना सकता।”
यहाँ एक कमेंट करने वाले (u/Relatents) ने मज़ाकिया अंदाज़ में लिखा — "अगर भारत में ऐसा होता, तो ग्राहक तुरंत पूछते, ‘बेटा, तुम्हारा मैनेजर कौन है? उसका नंबर दो, हम उसे समझाते हैं!’" सच में, कई ग्राहकों ने नाराज़गी जताई, कुछ तो बिना ऑर्डर किए वापस चले गए। टिप्स भी कम मिले, और शॉन पूरे दिन ऑफिस में छुपा रहा।
इस दौरान नायक अपने काम में मस्त, गुनगुनाते हुए सफाई करते रहे — जैसे हिंदी फिल्मों में हीरो ग़म छुपाकर मुस्कुराता है। हर बार कोई ग्राहक लाइन छोड़कर जाता, तो मन-ही-मन छोटी सी जीत महसूस होती।
कम्युनिटी की चटपटी प्रतिक्रियाएँ: ‘आखिर हुआ क्या?’
रेडिट पर इस कहानी ने खूब धमाल मचाया। कई पाठकों ने पूछा, “शॉन का क्या हुआ? क्या उसकी पदावनति हुई?” (u/SnooCauliflowers9874) एक और ने लिखा, “अगर मैं ग्राहक होता, तो शॉन का नंबर लेकर शिकायत ज़रूर करता!” (u/Relatents)
किसी ने यह भी कहा कि ऐसी कहानियाँ भारत के ‘कहानी घर’ जैसे शो में आतीं, तो शॉन को जरूर ‘सबक सिखाया’ जाता। किसी का कहना था — "यह कहानी तो हमारे यहाँ के ‘तले हुए पकौड़े’ जैसी है, ऊपर से कुरकुरी, अंदर से नरम!"
कुछ पाठकों ने यह भी गौर किया कि शॉन की ऐसी मनमानी न भारत में ज्यादा दिन चलती, न पश्चिम में — क्योंकि ग्राहक और कर्मचारी दोनों मिलकर बॉस को आईना दिखा ही देते हैं।
सबक: जब बॉस ही ‘बॉसगिरी’ दिखाए, तो ‘स्मार्ट काम’ ही असली हथियार
इस पूरी घटना से यही सीख मिलती है कि ऑफिस की राजनीति हर जगह एक जैसी होती है — चाहे भारत हो या अमेरिका। जब कोई मैनेजर अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल करता है, तो कर्मचारी भी ‘मालिशियस कम्प्लायंस’ (यानि आदेशों का ऐसा पालन कि बॉस की ही नींद हराम हो जाए) का सहारा ले लेते हैं।
हमारे यहाँ भी कई बार लोग बॉस के अजीब आदेशों को सीधे मुँह ‘जी सर’ कहकर मान लेते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर ऐसी चाल चलते हैं कि आखिरकार बॉस को अपनी गलती समझ में आ ही जाती है। यह कहानी भी उसी का मज़ेदार उदाहरण है।
तो अगली बार जब आपके ऑफिस में कोई शॉन जैसा बॉस दिखे, तो मुस्कुरा कर अपना काम कीजिए — क्या पता, आपकी चुपचाप चालाकी कब रंग ले आए!
निष्कर्ष: आपके साथ भी हुआ है ऐसा?
आपकी ऑफिस लाइफ में भी कभी ऐसा ‘बॉसगिरी’ वाला अनुभव हुआ है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए! और अगर कहानी पसंद आई हो, तो अपने दोस्तों को भी शेयर करें — क्या पता, उनके ऑफिस में भी कोई शॉन बैठा हो!
मूल रेडिट पोस्ट: Just remembered a story from my high school job