जब कंपनी ने AI के भरोसे काम किया, और प्रोग्रामर ने दिया मज़ेदार जवाब
भाई साहब, आजकल की कंपनियों को AI का ऐसा भूत सवार हुआ है कि पूछिए मत! हर मीटिंग में, हर ईमेल में – बस AI, AI, AI! लगता है जैसे अगले साल से चायवाला भी बोल देगा, “चाय में शक्कर डलवानी है या AI से पूछ लूं?”
अब ज़रा सोचिए, एक प्रोग्रामर के लिए रोज़मर्रा की जिंदगी का क्या हाल होगा, जब उसकी कंपनी ये फरमान जारी कर दे कि “Google मत खोलो, सब AI से पूछो! इससे काम तेज़ होगा!”
AI का भूत – कंपनी की नई पूजा
भारतीय दफ्तरों में आपने अक्सर देखा होगा – “नई टेक्नॉलॉजी आई है? जल्दी से सबको ट्रेनिंग दो, पुराने तरीके भूल जाओ!” ठीक वैसे ही, इस कहानी में भी कंपनी ने “AI First” का नारा लगा दिया। प्रोजेक्ट्स की बोली इतनी कम लगाई कि मानो AI से पैसा छापने का सपना हो।
कंपनी की सोच थी – AI से इतना काम हो जाएगा कि कर्मचारियों का मेहनताना बच जाएगा, और मुनाफ़ा भी बढ़ेगा।
प्रोग्रामर बेचारा सोचता था, “ठीक है भई, जो कहोगे कर लूंगा। लेकिन प्रोग्रामिंग में सबसे ज्यादा वक्त तो गूगल पर रिसर्च करने में जाता है, टाइपिंग में नहीं।”
अब कंपनी ने आदेश किया – “Google मत खोलो, AI को ही सब कुछ पूछो। AI तुम्हारे सारे ओपन टैब्स, कोड फाइल्स सब पढ़ेगा, ताकि तुम्हारे सवाल का सही जवाब दे सके।”
AI की माया: 6 मिनट की प्रतीक्षा, वो भी गलत जवाब के लिए!
अब असली खेल शुरू हुआ। प्रोग्रामर ने जैसे ही AI टूल में सवाल पूछना शुरू किया, जवाब आने में 6 मिनट लगने लगे।
क्यों?
क्योंकि उसके एक टैब में 82 MB की एक भारी-भरकम कोड फाइल खुली थी – जिसमें पूरी डेटाबेस बनाने की सारी जानकारी थी।
हर बार AI उस पूरी फाइल को Microsoft के सर्वर पर भेजता, फिर वहीं से जवाब तैयार होता।
अब सोचिए – एक सेकंड में Google से गलती वाला जवाब मिल जाता, लेकिन AI से 6 मिनट लगकर भी गलत जवाब ही मिलता!
यह देख प्रोग्रामर की हंसी छूट गई – “कंपनी तो समझ रही थी AI से काम तेज़ होगा, लेकिन असलियत में तो मैं AI से ‘engagement’ बढ़ा रहा हूं।”
ऑफिस की हकीकत: मीटिंग, इंतजार और Reddit
हमारे यहाँ भी दफ्तरों में अक्सर यही होता है – काम कम, इंतजार ज्यादा।
प्रोग्रामर ने लिखा – “घबराइए मत, मेरा प्रोजेक्ट लेट नहीं होगा क्योंकि असली देरी तो ग्राहक के निर्णय लेने में है। मैं तो अब भी दिन का बड़ा हिस्सा किताबें पढ़ने और Reddit पर टाइमपास में बिता रहा हूं।”
एक कमेंट में किसी ने लिखा – “असल जिंदगी में तो प्रोग्रामर का काम है इंतजार करना – कभी क्लाइंट के जवाब का, कभी QA टीम के उठने का।”
एक और मज़ेदार कमेंट था – “AI से तो मेरे ‘sed -i’ कमांड में ज्यादा काम हो जाता है!”
AI और सुरक्षा: NDA की धज्जियाँ?
अब ज़रा सुरक्षा की बात करें।
एक और पाठक ने बड़ा दिलचस्प सवाल उठाया – “कंपनी के लैपटॉप पर USB भी नहीं लगाने देते, NDA साइन करवाते हैं, लेकिन वही कोड AI के सर्वर पर भेजना कोई दिक्कत नहीं!”
दूसरे ने कहा – “अरे साहब, Adobe भी अब डॉक्युमेंट्स को AI से पढ़वाकर उनका सारांश बता देता है, चाहे वो गोपनीय ही क्यों न हों!”
हमारे यहाँ भी अक्सर देखा है – दफ्तर में डाटा की सुरक्षा के लिए बड़े-बड़े नियम, लेकिन जब नई तकनीक आती है तो सब नियम भूल जाते हैं।
AI का भविष्य: सपने और सच्चाई
AI के बारे में एक पाठक ने लिखा – “AI शानदार चीज़ है, लेकिन तभी तक जब तक आप उसे सही टूल की तरह इस्तेमाल करें। दिक्कत ये है कि कंपनियाँ उसे हर समस्या का हल मान बैठी हैं।”
OP खुद कहते हैं – “तकनीक में भी समस्या है, ये जितना खर्च करवा रही है, उतना फायदा नहीं दे रही। असली मुनाफा तो बस NVidia जैसी कंपनियों को हो रहा है।”
किसी ने तो यहाँ तक कह दिया – “AI के चक्कर में जो नुकसान होगा, वो डॉट-कॉम बबल से भी बड़ा होगा!”
निष्कर्ष: तकनीक अच्छी है, लेकिन अक्ल भी जरूरी है!
भाइयों-बहनों, कहानी का सार यही है –
तकनीक कितनी भी नई क्यों न हो, सोच-समझकर अपनाइए।
हर समस्या का हल AI नहीं है, और हर नया टूल जादू की छड़ी नहीं।
जैसे दादी कहती थीं – “अति हर चीज़ की बुरी है बेटा!”
आखिर में, प्रोग्रामर की चालाकी ये थी कि उसने कंपनी के आदेशों का पालन करते हुए भी अपनी मस्ती और आरामदायक कामकाजी जीवन जारी रखा – और AI के नाम पर कंपनी के पैसे भी खूब खर्च करवा डाले!
तो अगली बार जब आपके दफ्तर में “AI First” की हवा चले, तो ज़रा ठहरिए, सोचिए – और फिर ठहाके लगाइए!
आपका क्या अनुभव रहा है AI या नई तकनीक के साथ? नीचे कमेंट में जरूर बताइए, और अगर ये कहानी पसंद आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर कीजिए!
मूल रेडिट पोस्ट: It’ll be faster if you don’t use a search engine.