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जब कंपनी ने खर्चों का हिसाब-किताब मांगा, कर्मचारियों ने भी दे दिया हिसाब-पत्ता!

ऑफिस में खर्चों के बिल जमा करने का झंझट किसे अच्छा लगता है? ऊपर से जब कंपनी अचानक कह दे कि "अब हर खर्च का एक-एक आइटम बताओ, वो भी बिल के साथ", तो फिर तो मानो कर्मचारियों की परीक्षा ही शुरू हो गई! ऐसी ही एक कहानी Reddit पर वायरल हो गई, जिसमें एक मैनेजर और उसकी टीम ने कंपनी के खर्चों के नए नियमों को इतने मज़ेदार ढंग से अपनाया कि पढ़कर आप भी कहेंगे – वाह, क्या चालाकी है!

खर्चों का पुराना ज़माना – सब कुछ आसान, सब खुश

पहले ऑफिस में काम आसान था। खाने-पीने का खर्च एक तय राशि (per-diem) के हिसाब से मिल जाता था। कोई रसीद लाओ या लंबा-चौड़ा हिसाब दो, इसकी ज़रूरत ही नहीं थी। सोचिए, जैसे भारत में सरकारी यात्रा भत्ता मिल जाता है – जितना तय है, उतना मिल गया, चाहे आपने कम खर्च किया हो या ज़्यादा, जो बचा वो आपकी जेब में! न कोई सिरदर्द, न हिसाब-किताब का चक्कर।

कर्मचारियों को भी ज़्यादा छोटे-मोटे खर्चों के लिए बिल जमा करने का झंझट नहीं था। कहावत है ना – "जितनी चादर हो, उतने पैर पसारो", पर यहाँ तो चादर लंबी थी, पैर छोटे ही रखो तो फायदा ही फायदा!

कंपनी का नया फरमान – अब एक-एक पैसे का हिसाब दो!

जैसे-जैसे कंपनी बड़ी हुई, वैसे-वैसे उनके नियम भी कड़े होते गए। एक दिन HR से "खुशखबरी" आई – अब से Expensify ऐप पर हर खर्च की आइटम-वाइज रसीद लगाओ, चाहे ₹10 की पानी की बोतल हो या बस का टिकट!

हमारे देश में भी कई बार ऑफिस वाले ऐसे नियम ला देते हैं कि कर्मचारियों को लगता है – "भैया, ये तो हद हो गई!" अब सोचिए, अगर दिल्ली-लखनऊ ट्रेन के सफर में हर समोसे, चाय और ऑटो के बिल कटवाने पड़ें, तो सफर कम और हिसाब ज़्यादा लगेगा। यही हाल उस ऑफिस का हुआ।

एक Reddit यूज़र, जो खुद मैनेजर हैं, बताते हैं – पहले रिपोर्ट बनाना 10 मिनट का काम था, अब 2-3 घंटे लग जाते हैं। और टीम में एक नया बंदा तो इसमें उस्ताद निकला! उसने हर खर्च का डॉलर से कनाडियन डॉलर में सही गणना की, जहाँ Expensify की ऑटो-कन्वर्शन से उसे 10-20 पैसे कम मिलते थे, वहाँ उसने अलग से लाइन आइटम डालकर वो भी क्लेम कर लिया। मैनेजर को अपनी टीम पर गर्व हो गया – "अरे, यही तो असली नीति है – नियम का पालन भी और बॉस को जवाब भी!"

Reddit कम्युनिटी का ठहाकेदार जवाब – "अब देखो असली खर्चे कैसे दिखते हैं!"

इस पोस्ट पर Reddit के लोगों ने भी जमकर मज़ेदार कमेंट्स किए। एक कमेंट में न्यूयॉर्क के एक कर्मचारी ने बताया, उसने 25 सेंट (यानी ₹20 से भी कम) का पार्किंग टिकट क्लेम किया और CFO ने उसे बुला लिया – इसलिए नहीं कि उसने क्लेम किया, बल्कि ये जानने के लिए कि न्यूयॉर्क में इतनी सस्ती पार्किंग कहाँ मिल गई!

एक और यूज़र ने तो इसे 'Expenseception' कह दिया – मतलब खर्च के लिए खर्च, रिपोर्ट के लिए रिपोर्ट! जैसे हमारे यहाँ दफ्तर में फाइलों का चक्कर – "एक फाइल दूसरे कमरे में, फिर तीसरे में, और आखिर में वापस पहले!"

कुछ लोगों ने तो सलाह दी – "जितना टाइम खर्चों की रिपोर्टिंग में जा रहा है, उसका भी बिल कंपनी को भेजो!" एक यूज़र ने लिखा, "हर मिनट का हिसाब टाइमशीट में डालो, ताकि बॉस को समझ आए कि नियम लागू करने का असली खर्च क्या है।" ये बात भारत के सरकारी दफ्तरों में भी खूब लागू होती है – जहाँ कभी-कभी कागज़ी कार्रवाई में असली काम से ज़्यादा वक्त लग जाता है।

पाबंदी का जवाब – नियम से ही दिया गया

इस पूरे मामले में असली मज़ा तो तब आया जब कर्मचारियों ने कंपनी के ही बनाए नियमों का इतना बारीकी से पालन किया कि मैनेजमेंट भी हैरान रह गया। पानी की बोतल, बस टिकट, ब्रेड का टुकड़ा – हर चीज़ के लिए अलग-अलग रसीद लगाई गई। एक कमेंट में तो किसी ने कहा, "अब HR वाले उस 17 सेंट (₹10) के खर्च का स्टडी केस बनाएँगे!"

ऐसी ही एक घटना किसी ने शेयर की – एक कंपनी में खर्चों की जाँच के लिए अलग से कर्मचारी रख लिया, उसकी सैलरी ₹50 लाख सालाना! बाद में सबने मिलकर सुझाव दिया, "भैया, इस खर्चे को ही बचा लो, पुराना सिस्टम ही बढ़िया है!"

भारत में भी कई बार ऑफिस वाले छोटे-छोटे खर्चों पर इतना ध्यान रखते हैं कि असली काम पीछे छूट जाता है। जैसे – किसी ने ट्रेनिंग के लिए टैक्सी का खर्च क्लेम किया, मैनेजर ने मोल-भाव किया – "क्यों लिया टैक्सी?" जवाब मिला, "अगर टैक्सी न लेते तो रात में तीस किलोमीटर दूर जाना पड़ता!" फिर मैनेजर भी चुप हो गया।

निष्कर्ष – खर्चों का खेल, नियम की चाल, कर्मचारियों का जुगाड़!

आखिर में यही कहना है – कभी-कभी कंपनी के कड़े नियमों का जवाब भी उतनी ही चालाकी से देना पड़ता है। जैसा कि हमारे यहाँ कहा जाता है – "जैसे को तैसा!" Reddit की इस कहानी ने दिखा दिया कि अगर मैनेजमेंट पाई-पाई का हिसाब माँगे, तो कर्मचारी भी चाय के प्याले और समोसे की रसीद लेकर पहुँच सकते हैं।

तो अगली बार जब आपके ऑफिस में कोई नया खर्चा-नीति लागू हो, तो सोचिए – क्या आप भी इसी तरह नियम से खेल सकते हैं? क्या आपने भी कभी कोई ऐसा अनुभव किया है जहाँ नियमों का पालन करते-करते मैनेजमेंट को ही मात दे दी हो? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए, और अगर आपको ये कहानी पसंद आई हो तो दोस्तों के साथ शेयर कीजिए – आखिर, "खर्चों का खेल, सबका मेल!"


मूल रेडिट पोस्ट: You must now itemize every expense from your travel