जब केन ने आईटी सपोर्ट को सिखाने की कोशिश की ‘प्रक्रिया का पाठ’ – और खुद फंस गया!
हमारे देश में अक्सर कहते हैं – “जो नियम न माने, उसका नुकसान उसी को होता है!” कुछ ऐसे ही नजारे आईटी कंपनियों में भी देखने को मिलते हैं। आज मैं आपको एक ऐसी घटना सुनाने जा रहा हूँ, जहां एक यूज़र अपनी जिद के कारण खुद ही मुसीबत में फँस गया। आईटी सर्विसडेस्क की ये कहानी उतनी ही मज़ेदार है, जितनी अपने मोहल्ले के पानवाले की ‘नो क्रेडिट’ वाली तख्ती!
किस्सा केन और आईटी सपोर्ट का: जब नियमों से ज़्यादा Ego बड़ा हो गया
ये बात उन दिनों की है जब मैं एक बड़ी आईटी सर्विसडेस्क कंपनी में काम करता था। वहाँ पर हमारी जिम्मेदारी थी – वॉइस इनबाउंड कॉल्स का जवाब देना और यूज़र्स की तकनीकी समस्याओं को हल करना। एक दिन कंपनी के एप्लिकेशन सपोर्ट टीम से नया निर्देश आया: “अगर abc.com साइट में कोई भी समस्या हो, तो यूज़र को खुद ही सेल्फ-सर्विस टिकट बनानी होगी। इस दौरान सभी टिकट्स हाई प्रायोरिटी मानी जाएँगी, क्योंकि साइट में पहले से समस्या चल रही है।”
अब आप भारत के किसी भी आईटी ऑफिस में चले जाइए, ज़्यादातर लोग प्रक्रिया (प्रोसेस) से परेशान रहते हैं। लेकिन केन नाम का ये यूज़र तो हद ही पार कर गया! जब उसने कॉल किया और उसकी दिक्कत abc.com साइट से जुड़ी थी, तो मैंने उसे नई प्रक्रिया के बारे में बताया – “सर, आपको खुद सेल्फ-सर्विस टिकट बनानी होगी।”
पर केन का जवाब सुनकर तो मैं चौंक ही गया – “मैं नहीं बनाऊँगा। मुझे कोई और तरीका बताओ।” न उसका अकाउंट लॉक था, न नेटवर्क में दिक्कत, बस साहब को खुद से कुछ करना पसंद नहीं था! वो बार-बार बोलता रहा – “स्काइप पर चैट करो, या ईमेल भेजो, या स्क्रीनशॉट तुम्हें भेज दूँ, तुम मेरी टिकट खुद बनाओ।”
मैंने बार-बार समझाया – “सर, अगर हम आपकी टिकट खुद से बनाएँगे, तो वह रिजेक्ट कर दी जाएगी। नियम यही है कि यूज़र खुद टिकट बनाये।” लेकिन केन अपनी ही धुन में – “तुम मेरी मदद नहीं कर रहे, मैं तुम्हारे सुपरवाइज़र से बात करना चाहता हूँ। ये सब तुम्हारे खिलाफ जाएगा!”
‘कर्मा’ का आईटी वर्ज़न: जब ज़िद का बूमरैंग वापस आया
अब ऑफिस में जब कोई यूज़र ऐसे तगड़े तेवर दिखाए, तो गुस्सा आना लाज़मी है। मैं भी थोड़ा तेज़ बोलने लगा था। सौभाग्य से उस दिन ऑफिस में ही था (कोविड से पहले की बात है), तो मेरा मैनेजर (SDM) मेरी आवाज़ सुनकर आ गया – “क्या बात है, इतनी तेज़ आवाज़ क्यों?”
मैंने पूरी बात समझाई, तो उसने मेरी टीम लीडर को बुलाया, टिकट नंबर माँगा और कहा – “केन के मैनेजर को उसकी हरकतों के बारे में मेल करो।” अब आगे केन पर क्या बीती, ये तो नहीं पता, पर इतना ज़रूर है – ऑफिस में सबने चैन की साँस ली!
यहाँ मुझे एक Reddit कमेंट की याद आई, जिसमें एक सज्जन ने लिखा – “लगता है केन कंपनी से डिस-कनेक्ट हो गया!” (इसे पढ़कर दफ्तर में सब हँसी रोक नहीं पाएंगे, है ना?) एक और यूज़र ने कहा, “ऐसे लोग समझते हैं कि ऊपर पहुँचकर काम जल्दी हो जाएगा, लेकिन असलियत में उल्टा ही होता है।”
टेक्नोलॉजी में ‘जुगाड़’ नहीं चलता – प्रक्रिया का सम्मान ज़रूरी है
भारतीय दफ्तरों में ‘जुगाड़’ का बड़ा क्रेज़ है। बहुत से लोग सोचते हैं – “भैया, काम कोई भी कर दे, बस जल्दी हो जाए!” इसी सोच के कारण कई बार नियम टूटते हैं, और दिक्कतें बढ़ जाती हैं। एक Reddit यूज़र ने तो बड़ा बढ़िया उदाहरण दिया – “अगर टिकट खुद से नहीं बनाओगे, तो सिस्टम में मामला फँस सकता है। टिकट एक हफ्ते तक लटकती रही, फिर डिलीट हो गई। जब यूज़र ने खुद प्रक्रिया फॉलो की, तो 24 घंटे में काम हो गया!”
यानी, आईटी में भी वही पुरानी कहावत लागू होती है – “नियम तोड़ोगे, तो खुद ही फँसोगे!” और यही बात केन पर भी फिट बैठती है।
आईटी सपोर्ट की लाइफ: ‘साहब, कंप्यूटर रीस्टार्ट कर लो’ – ‘नहीं, मैं बटन नहीं दबाऊँगा!’
ऐसी घटनाएँ सिर्फ केन तक सीमित नहीं हैं। एक और कमेंट में एक साहब ने लिखा – “एक महिला ने कंप्यूटर ब्लू स्क्रीन पर कॉल किया। मैंने बोला – कंप्यूटर रीस्टार्ट कर लीजिए। उसने साफ इंकार कर दिया – ‘मैं टेक्निकल नहीं हूँ, मैं बटन नहीं दबाती।’ आखिरकार, उसका सुपरवाइज़र बीच में आया और मामला सुलटा।”
ये चीज़ें हमारे यहाँ भी खूब होती हैं – जैसे कोई कह दे, “भैया, मेरे मोबाइल में नेट नहीं चल रहा, तुम खुद ठीक कर दो, मैं कुछ नहीं करूँगा!” अब बताइए, ऐसी जिद्दी सोच का इलाज किस हकीम के पास है?
निष्कर्ष: जब नियमों की कद्र, तो काम में है असर!
दोस्तों, ऑफिस की दुनिया में सभी को शॉर्टकट पसंद हैं, पर आईटी सपोर्ट जैसी जगहों पर नियमों की अहमियत सबसे ज़्यादा है। अगर हर कोई मनमानी करने लगे, तो सिस्टम ही ठप हो जाएगा। इस कहानी से यही सीख मिलती है – चाहे समस्या कितनी भी बड़ी हो, अगर प्रक्रिया सही से फॉलो करेंगे तो समाधान जल्दी मिलेगा।
तो अगली बार जब भी आपके आईटी ऑफिस में कोई ‘केन’ टाइप यूज़र आए, तो उसे प्यार से समझाइए – “भाईसाहब, प्रक्रिया ही समाधान है!” वैसे, आपके ऑफिस में भी कभी कोई ऐसा किस्सा हुआ है? नीचे कमेंट में जरूर बताइए। और हाँ, अगर कहानी पसंद आई हो, तो शेयर करना मत भूलिए – क्योंकि हँसी और सीख दोनों मिलें, तो ऑफिस लाइफ और भी मज़ेदार हो जाती है!
मूल रेडिट पोस्ट: Don't care and won't follow the current process.