जब कंडक्टर ने 5 पैसे के लिए अपमान किया, फिर खुद फँस गया उसी जाल में!
कहते हैं न, "जैसी करनी वैसी भरनी" – ज़िन्दगी कभी-कभी ऐसे मौके देती है जहाँ दूसरों के साथ किया व्यवहार हमारे सामने आईना बनकर खड़ा हो जाता है। आज की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसमें एक मामूली-सी बस यात्रा ने न केवल इंसानियत की अहमियत सिखाई, बल्कि ये भी दिखाया कि छोटा-सा बदला कितना बड़ा असर छोड़ सकता है।
5 पैसे की कमी और कंडक्टर का 'ईमानदार' रवैया
ये किस्सा एक आम कामकाजी शख्स, यानी हमारे कहानी के हीरो (पिता जी) के साथ हुआ। अब भारतीय बसों में अक्सर आपने देखा होगा – ड्राइवर का ध्यान सड़क पर और कंडक्टर साहब सबकी टिकट/चढ़ावा का हिसाब-किताब रखते हैं। वैसे ही, पश्चिमी देशों में भी कई शहरों में बस के बीच में एक आदमी बैठा होता है, जो केवल पैसे लेता है – न मशीन, न ऑटोमेटिक गेट… सब कुछ इंसान के भरोसे।
अब पिता जी देर रात काम से लौट रहे थे। जेब टटोलकर पूरा किराया गिन लिया – $1.25 (यानी लगभग 100 रुपये)। लेकिन बस में चढ़े तो पता चला, पाँच सेंट (5 पैसे, मतलब आधा रुपया भी नहीं!) कम रह गया। वे सोच रहे थे, चलो कंडक्टर समझ जाएगा – आखिर इंसान ही तो है। लेकिन साहब, कंडक्टर ने तो जैसे ईमानदारी का झंडा उठाया हुआ था! पाँच पैसे की कमी पर इतना शोर मचाया, सबके सामने डाँट-डपट कर दी – "अगर पूरे पैसे नहीं हैं तो बस में क्यों चढ़े?" पिता जी बुरी तरह शर्मिंदा हो गए।
इंसानियत दिखाने वाले मुसाफिर और कर्मा का चक्कर
लेकिन जैसे हर कहानी में कोई देवदूत आता है, यहाँ भी एक सज्जन मुसाफिर थे जिन्होंने अपना ट्रांजिट पास देकर पिता जी को मदद की। सोचिए, जब कोई परेशानी में हो, तो एक छोटी-सी मदद भी कितनी बड़ी राहत बन जाती है! यही वो इंसानियत थी, जो उस कंडक्टर में नहीं दिखी।
अब Reddit पर एक कमेंट पढ़ने लायक था – "कंडक्टर को क्या लगा, पाँच पैसे उसकी जेब से जा रहे हैं?" हमारे यहाँ भी ऐसे 'ईमानदार' लोग मिल जाते हैं, जो दूसरों को नीचा दिखाने में ही अपनी बहादुरी समझते हैं। एक और पाठक ने लिखा, "बस में वो माहौल ऐसा था जैसे कोई लाइव डेली सोप चल रहा हो – पहले अपमान, फिर दो हफ्ते बाद 'रिटर्न गिफ्ट'!"
जब कर्मा ने किया पलटवार: 25 पैसे की कमी और वही कंडक्टर
अब असली ट्विस्ट आया। दो हफ्ते बाद, वही बस, वही कंडक्टर और हमारे पिता जी फिर से उसी रूट पर। इस बार पिता जी ने बड़ा नोट निकाला (जैसे भारत में 500 का नोट देकर 10 रुपये की टिकट माँगना!)। कंडक्टर के पास छुट्टे नहीं थे – 25 सेंट कम पड़ गए। अब कंडक्टर बोला, "भैया, क्या आप 25 सेंट बाद में दे सकते हैं?"
यहाँ पिता जी ने वही दवा उसे पिलाई: "अरे, आपको लगता है मैं 25 सेंट छोड़ दूँ? दो हफ्ते पहले आपने क्या किया था, याद है? कोई बात नहीं, मैं तो बस में बैठा रहूँगा, जब उतरना हो तो ड्राइवर से कह दीजिएगा दरवाज़ा खोल दे।"
बस में सभी मुसाफिर अंदर-अंदर तालियाँ बजा रहे होंगे – जैसे हिंदी फिल्मों में विलेन को हीरो के डायलॉग से मुँह की खानी पड़े!
पाठकों की राय: छोटी सी बदला, बड़ी संतुष्टि
Reddit पर इस किस्से को पढ़कर लोगों की प्रतिक्रियाएँ भी गज़ब थीं। एक ने लिखा – "ये बदला छोटा जरूर है, लेकिन स्वाद में जबरदस्त है।" दूसरा बोला, "कर्मा ने तुरंत हिसाब चुकता कर दिया।" किसी ने तो यहाँ तक कहा, "अगर कंडक्टर पहली बार इंसानियत दिखा देता, तो ये सब होता ही नहीं।"
किसी और ने बहुत सही लिखा – "जो लोग बस का किराया पूरा नहीं दे सकते, उन्हें बस की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, ये कोई टैक्सी थोड़ी है!" सोचिए, हमारे यहाँ भी गाँव-शहर में ऐसे कितने लोग हैं, जिनके पास रोज़-रोज़ छुट्टा नहीं होता, लेकिन सफर करना मजबूरी है। ऐसे में कंडक्टर अगर थोड़ी दया, थोड़ी समझदारी दिखा दे, तो वो इंसान हमेशा याद रखता है।
कहानी से क्या सीखें: इंसानियत सबसे ऊपर
इस किस्से से दो बातें निकलती हैं – एक, दूसरों के साथ इंसानियत से पेश आएँ, कल वही आपके साथ हो सकता है। और दूसरी, छोटा-सा बदला भी कभी-कभी दिल को तसल्ली दे सकता है, लेकिन सबसे अच्छा तो यही है कि हम सब एक-दूसरे के लिए थोड़ा दयालु बनें।
कहानी मज़ेदार थी, लेकिन सोचने वाली भी। अगले बार जब बस में कोई छुट्टा माँगे या किसी की मदद हो सके, तो ज़रूर करें – शायद आपकी छोटी-सी मदद किसी की रात आसान कर दे।
आपका क्या ख्याल है? क्या आपके साथ भी कभी ऐसा कुछ हुआ है? कमेंट में जरूर बताइए – और अगर कहानी पसंद आई हो, तो दोस्तों के साथ शेयर करना मत भूलिए!
मूल रेडिट पोस्ट: Couldn’t Let Five Cents Slide, So I Guess I Can’t Pay Either