जब ऑफिस की राजनीति में बड़े शब्द बन गए छोटे-मोटे बदले का हथियार
कहते हैं, "जब तीर-तलवार न चले तो शब्द का वार सबसे गहरा होता है।" दफ्तर की राजनीति में जब सामने वाला चालाक और अड़ियल हो, तो सीधा-सादा तरीका अक्सर बेअसर हो जाता है। ऐसे में कभी-कभी ज़ुबान का ताना सबसे असरदार हथियार बन जाता है। आज की कहानी एक ऐसे ऑफिस की है, जहाँ एक सुपरवाइज़र ने अपने "मुसीबत कर्मचारी" को शब्दों के जाल में उलझा कर ऐसा सबक सिखाया कि बाकी लोग भी मुस्कुरा उठे।
शब्दों से खेल—साधारण से असाधारण की ओर
अब मान लीजिए, आप किसी सरकारी दफ्तर या बड़ी कंपनी में सुपरवाइज़र हैं। आपकी टीम में एक ऐसी कर्मचारी है, जो हर बात में टांग अड़ाती है, दूसरों से उलझती रहती है, और उसके चलते अच्छे-अच्छे कर्मचारी नौकरी छोड़ जाते हैं। ऐसा लगता हो जैसे ये कोई टीवी का सास-बहू सीरियल चल रहा हो, जिसमें एक "विलेन" का होना जरूरी है।
ऐसे ही एक दिन, जब उस कर्मचारी को लगा कि उसके साथ अन्याय हुआ है, उसने अपनी ड्यूटी बदलने से मना कर दिया। दिक्कत इतनी बढ़ गई कि डायरेक्टर तक को बीच में आना पड़ा। बातचीत के दौरान डायरेक्टर ने कहा, "मुझे पता है आपको slighted महसूस हुआ..." बस, वो कर्मचारी वहीं रुक गई—"स्लाइटेड? ये क्या होता है?" डायरेक्टर ने बड़े धैर्य से समझाया, लेकिन सुपरवाइज़र के दिमाग में घंटी बज गई—"अगर ये इतने आम शब्द नहीं जानती, तो थोड़ा और 'ऊँचा' शब्द इस्तेमाल करें तो?"
अब शुरू हुआ असली खेल! ईमेल में ऐसे-ऐसे शब्द घुसेड़े जाने लगे, जिनका मतलब समझने के लिए या तो डिक्शनरी चाहिए या फिर Google बाबा। हाई स्कूल के स्तर के शब्द, लेकिन मुसीबत कर्मचारी के लिए जैसे पहेली बन गए।
ईमेल की भाषा और 'भावना का अपमान'
एक दिन उस कर्मचारी ने विभाग को एक सुरक्षा नोट भेजा—लेकिन उसमें हिंदी में कहें तो "अपशब्द" का इस्तेमाल कर डाला। सोचिए, ऑफिस के ऑफिशियल ईमेल में "शाबाश, बकवास काम खत्म किया" जैसा कुछ लिख दे! सुपरवाइज़र ने तुरंत कड़ा लेकिन सभ्य जवाब भेजा—"कृपया ऐसी भाषा का इस्तेमाल न करें, इससे ऑफिस का माहौल हल्का-फुल्का या गैर-पेशेवर दिख सकता है।"
यहाँ भी सुपरवाइज़र ने 'misconstrued' जैसे शब्द जोड़ दिए। अब तो मुसीबत कर्मचारी और बौखला गई—"ये शब्द कौन इस्तेमाल करता है? मुझे तो समझ ही नहीं आया!" इस पर सुपरवाइज़र की मन ही मन बंसी बज उठी—"यही तो मकसद था!"
जनता का मज़ा—रेडिट कम्युनिटी की प्रतिक्रियाएँ
इस कहानी पर Reddit की जनता ने खूब मज़ाक उड़ाया। एक यूज़र ने पूछा—"इतनी दिक्कत है तो कर्मचारी को निकाल क्यों नहीं देते?" उसपर दूसरा बोला—"शायद अधिकारी खुद अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं, या फिर नियमों के चक्कर में फँसे हैं।" कुछ ने हमारी सरकारी दफ्तरों की तरह मजाक में कहा—"कभी-कभी बॉस खुद भी कमजोर होते हैं, इसलिए खराब कर्मचारी सालों टिक जाते हैं।" एक ने तो यहाँ तक कह दिया—"इंसान जब सीखने के बजाय शिकायत करता है, तो असली मूर्ख वही है।"
एक और कमेंट बड़ा दिलचस्प था—"भाषा जितनी गहरी, उतनी तीखी चोट!" यानी, कभी-कभी संस्कृतनिष्ठ या क्लिष्ट शब्दों से insult भी बड़ी शालीनता से की जा सकती है, जैसे हमारे देश में कोई बड़ी-बड़ी उपाधियाँ देकर किसी को 'आलसी' कह दे!
हिंदी में बड़ा शब्द, बड़ा असर
भारतीय दफ्तरों में भी ये समस्या आम है। कभी-कभी वरिष्ठ कर्मचारी जानबूझकर कठिन शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे सामने वाला खुद को छोटा महसूस करे। जैसे कोई कह दे—"आपका व्यवहार अत्यंत अनुशासनहीन एवं असंयमित है," तो सुनने वाला परेशान हो जाए कि आखिर insult हुआ है या तारीफ!
कई बार तो लोग बोलते हैं—"भाई, सीधी बात बोलो, ये डिक्शनरी वाली भाषा क्यों?" लेकिन यही ताना-व्यंग्य ऑफिस की राजनीति में मासूम सा बदला भी बन जाता है। Reddit के एक और यूज़र ने मजेदार सलाह दी—"जितना हो सके 'बड़े' शब्दों का इस्तेमाल करो, लेकिन कभी-कभी thesaurus (पर्यायवाची शब्दकोश) भी धोखा दे सकता है!"
निष्कर्ष—शब्दों की जंग, समझदारी से लड़ो
आखिर में, कहानी का सार यही है—जब सामने वाला तर्क या विनम्रता से न माने, तो 'शब्दों का जाल' बिछाना भी एक कला है। पर याद रखिए, ज्ञान बांटने से बढ़ता है, और जो नया शब्द सीखने की बजाय शिकायत करे, असली परेशानी वहीं है।
तो अगली बार जब कोई ऑफिस में आपको "पारिभाषिक" या "संदर्भ" शब्दों से घेर ले, तो घबराइए नहीं—Google कर लीजिए, या फिर मुस्कुरा कर कह दीजिए, "भाई, बात सीधी कहो!" आखिरकार, "शब्दों का ताना-बाना ही असली राजनीति है।"
क्या आपके ऑफिस में भी ऐसे 'मुसीबत कर्मचारी' या 'शब्दों के जादूगर' हैं? नीचे कमेंट में अपना अनुभव जरूर बताइए!
मूल रेडिट पोस्ट: A problem employee didn't know the word 'slighted?' I made sure my emails used wording they might not know ...