जब ऑफिस की पॉलिसी ने बनाया मेहनती कर्मचारी को 'धीमा घोड़ा
अगर आप कभी सरकारी या प्राइवेट दफ्तर में काम कर चुके हैं, तो आपको 'पॉलिसी' शब्द सुनते ही शायद हल्की सी मुस्कान आ जाती होगी। हर ऑफिस में कोई न कोई अजीब-ओ-गरीब नियम जरूर होता है, जो बड़े ही गंभीरता से लागू किया जाता है – चाहे उससे काम सुधरे या बिगड़े। आज की कहानी भी एक ऐसे ही ऑफिस की है, जहां नियमों की सख्ती ने एक बेहतरीन कर्मचारी की रफ्तार को ब्रेक लगा दिया, और सबक भी सीखा दिया!
ऑफिस का नया नियम: घर से लाया सामान बैन!
कहानी के हीरो हैं Reddit यूज़र 'Ancient_Chocolate809', जो पिछले आठ सालों से एक एजेंसी में काम कर रहे हैं। हमारे देश में भी, जैसे लोग अपना टिफ़िन, पानी की बोतल या आरामदायक कुर्सी लेकर आते हैं, वैसे ही ये महाशय अपने कीबोर्ड, माउस, हेडफ़ोन और यहां तक कि एक्स्ट्रा मॉनिटर भी घर से लाते थे। इससे उनका काम भी तेज़ चलता था और ऑफिस का माहौल भी बढ़िया रहता था।
लेकिन हुआ यूं कि एक दिन उन्हें नए, छोटे और साझा ऑफिस में ट्रांसफर कर दिया गया। जैसे ही बॉसों की नज़र पड़ी कि भाई साहब ने तीन-तीन मॉनिटर लगा रखे हैं, तुरंत 'जांच-पड़ताल' शुरू हो गई। पता चला कि पॉलिसी के मुताबिक, घर का कोई भी इलेक्ट्रॉनिक सामान ऑफिस में इस्तेमाल नहीं कर सकते। अब तक किसी ने टोका नहीं था, लेकिन इस बार शायद किसी कलीग की 'ईर्ष्या' ने आग में घी डाल दिया।
नियम पालन का अनोखा अंदाज: जुगाड़ से जंग!
जैसे ही Ancient_Chocolate809 को आदेश मिला, उन्होंने तुरंत घर से लाए सारे सामान की लिस्ट बना डाली – हेडफ़ोन, डॉकिंग स्टेशन, मॉनिटर, RGB माउसपैड (जो वायरलेस चार्जर भी है!)। फिर कंपनी से मांग कर डाला कि अब ये सब ऑफिस ही मुहैया कराए।
अब ज़रा सोचिए, ऑफिस का सामान उतना दमदार नहीं था, ना ही मॉनिटर उतने क्लियर थे। तो जनाब ने घर का सामान हटाकर कंपनी का 'सरकारी' माल लगा दिया और काम की रफ्तार में ब्रेक लगा दी। जो पहले कुछ घंटों में निपटा देते थे, अब दो-दो दिन तक खींच दिया। जब मैनेजमेंट देखने आई कि नियम का पालन हो रहा है या नहीं, तो इन्होंने बड़ी ही मुस्कान के साथ उनका स्वागत किया – मतलब, 'मांगो तो मिलेगा, लेकिन रफ्तार भी उसी हिसाब से मिलेगी!'
ऑफिस की राजनीति: ईर्ष्या, पावर शो और जमीनी हकीकत
किसी ने कमेंट में लिखा – "लगता है कोई नया बॉस आया है, जिसे अपनी हुकूमत दिखानी थी।" हमारे यहां भी अक्सर नया मैनेजर आते ही पुराने सिस्टम में उथल-पुथल मचाता है, ताकि सबको पता चले कि अब वही मालिक हैं। एक और यूज़र ने तो यहां तक अंदाज़ा लगाया कि शायद कोई 'ईर्ष्यालु सहकर्मी' था, जिसने शिकायत की – "इनका मॉनिटर इतना अच्छा कैसे? मुझे भी चाहिए!"
कई कमेंट्स में लोगों ने एक और दिलचस्प बात कही – जितने ज्यादा मॉनिटर, उतनी ज्यादा प्रोडक्टिविटी! जैसे हमारे यहां लोग कहते हैं, "अच्छा औजार किसान की जान!" वैसे ही, एक यूज़र ने बताया कि दो मॉनिटर से उनकी प्रोडक्टिविटी 40% बढ़ गई थी। सोचिए, अगर ऑफिस हर किसी को बेहतर सामान दे, तो काम कितनी तेजी से हो सकता है।
पॉलिसी बनाम जमीनी हकीकत: क्या सच में ज़रूरी हैं ऐसे नियम?
कुछ कमेंट्स में सुरक्षा और डेटा प्रोटेक्शन की बात भी आई – कि ऑफिस में घर का सामान लाने से सिक्योरिटी जोखिम बढ़ सकता है। ठीक वैसे ही जैसे सरकारी दफ्तरों में अपने फोन या पेन ड्राइव इस्तेमाल करने की मनाही होती है। लेकिन कई लोगों ने ये भी कहा कि पॉलिसी का पालन करते-करते ज़िंदगी मुश्किल हो जाती है, और कई बार काम की रफ्तार ठप हो जाती है।
हमारे हीरो ने भी साफ कहा – "अगर कंपनी चाहती है कि मैं सिर्फ उनके दिए सामान पर काम करूं, तो फिर काम की रफ्तार भी उसी हिसाब से होगी।" और मज़े की बात ये कि वो यूनियन के सदस्य थे, यानी नौकरी इतनी आसानी से जा नहीं सकती थी। अब ऑफिस को मजबूरी में बाकी टीम का काम भी बांटना पड़ा।
निष्कर्ष: ऑफिस की राजनीति में जुगाड़ ही असली हथियार!
हमारे देश में भी ऐसे किस्से आम हैं – कभी नया बॉस, कभी ईर्ष्यालु कलीग, तो कभी बेवजह की पॉलिसी। लेकिन सबसे मज़ेदार बात ये है कि जब कर्मचारी 'मालिशियस कंप्लायंस' यानी नियमों का पालन कुछ इस अंदाज में करते हैं कि बॉस भी सिर पकड़ ले, तो असली मज़ा वहीं आता है।
तो अगली बार ऑफिस में कोई अजीब नियम लागू हो, तो घबराइए मत – थोड़ा जुगाड़ लगाइए, मुस्कुराइए और देखिए कैसे बॉस खुद सोच में पड़ जाते हैं! क्या आपके ऑफिस में भी कभी ऐसा किस्सा हुआ है? कमेंट में जरूर बताइए, और दिल खोलकर अपने अनुभव शेयर कीजिए।
काम का बोझ कम हो या ज्यादा, जुगाड़ की ताकत हमेशा भारी पड़ती है – आखिर हम हैं ही 'जुगाड़ू' देश के वासी!
मूल रेडिट पोस्ट: No home equipment? No problem!