जब ऑफिस की छुट्टियों का पेड़ बना “त्योहारों का शिकार”: एक दिलचस्प कहानी
क्या आपने कभी किसी ऑफिस या होटल में त्योहारों की सजावट की जिम्मेदारी संभाली है? अगर हां, तो आप जानते होंगे कि ये काम बाहर से जितना रंगीन और मजेदार दिखता है, अंदर से उतना ही चैलेंजिंग और कभी-कभी दिल तोड़ने वाला हो सकता है। आज मैं आपको एक ऐसे ही होटल कर्मचारी की कहानी सुनाने जा रहा हूँ, जिसने पूरे दिल से क्रिसमस ट्री सजाया—लेकिन उसकी मेहनत का जो हाल हुआ, वो सुनकर आप भी कहेंगे, “इंसान… क्या कमाल के जीव हैं!”
“त्योहारों की रौनक”—कैफीन, मुस्कान और थोड़ी-सी कुंठा के सहारे
हमारे नायक की कहानी एक आम होटल की तरह शुरू होती है—जहाँ काम के घंटे कम होते जा रहे हैं, और उत्साह का स्तर भी। लेकिन फिर भी, जब काम पे आता है, तो पूरी ईमानदारी से करता है। होटल मैनेजमेंट ने उसे लॉबी की सजावट की जिम्मेदारी ऐसे ही दे दी, जैसे हमारे यहाँ “जो चुप रहे, उसी को काम पकड़ा दो” वाली परंपरा है।
उसने ऑनलाइन ऑर्डर कर के एक सिंपल-सी, लेकिन क्लासी डेकोरेशन चुनी—ना ज़्यादा तामझाम, ना ही बनावटी चमक। वह चाहता था कि डेकोर देखकर मेहमानों को लगे, “यहाँ लोगों को हमारी परवाह है”, लेकिन साथ ही होटल की गंभीरता भी बनी रहे।
डेकोरेशन का असली मजा तब आया, जब बेसमेंट से डिब्बे निकालने पड़े—वही पुरानी, धूल लगी चीजें, जिनसे हमारे स्कूल के स्टोर रूम की याद आ जाए! एक-एक चीज सहेजकर, तारें सुलझाकर, पेड़ को फुलाकर (जैसे शादी में दूल्हे की पगड़ी ठीक की जाती है), आखिरकार उसने एकदम परफेक्ट ट्री खड़ा कर दिया। एक गेस्ट तो उसे ऐसे देख रहा था जैसे कोई जादूगर मंत्र फूँक रहा हो!
“मेरा पेड़, मेरी मेहनत”—सबके लिए, लेकिन सबके भरोसे नहीं
अब कहानी में ट्विस्ट आता है। अगले दिन एक सहकर्मी का मैसेज आता है, “पेड़ जबरदस्त लग रहा है, किसी को हाथ मत लगाने देना!” और ये सलाह उसने हँसी में टाल दी। लेकिन किस्मत को शायद कुछ और मंजूर था।
जब छुट्टी के बाद लौटता है, तो लॉबी में घुसते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं—पेड़ का हाल ऐसा था, जैसे किसी शादी के बाद मंडप की हालत हो जाती है। सजावट गायब, रिबन लटक रहा, गिफ्ट बॉक्स उड़न छू, और स्टार… झुका हुआ। पता चला, मैनेजमेंट को पार्टी के लिए अचानक पेड़ चाहिए था—और उनकी नज़र बस इसी ट्री की सजावट पर पड़ी!
यहाँ भारतीय दफ्तरों की याद आ गई, जहाँ त्योहारों पर सबसे अच्छा काम करने वाले को सबसे ज्यादा “उधार” पर बुलाया जाता है! एक कमेंट में एक पाठक ने लिखा, “लोग दूसरों की मेहनत की कद्र ही नहीं करते, चाहे आप कितनी भी शिद्दत से करें।” कई साथी पाठकों ने इसी पर सहमति जताई—किसी ने कहा, “जैसे शादी के बाद स्टेज की साज-सज्जा को बिना सोचे-समझे समेट लिया जाता है, वैसा ही हुआ।”
“सेवा भाव बनाम व्यवस्था”—मेहनत की कदर कौन करे?
पेड़ की ये दुर्गति देखकर हमारा नायक अंदर से टूट गया, लेकिन बाहर से वही मुस्कान, वही प्रोफेशनल व्यवहार। मेहमानों को चेक-इन कराना, कोई सवाल करे तो जवाब देना, लेकिन अब मन में वो चमक नहीं थी। एक पाठक ने बहुत सटीक कहा, “त्योहारों की खुशी तो थी, लेकिन वो भी कैफीन और हल्की-सी कुंठा के सहारे टिकी थी।”
जब पार्टी खत्म हुई, तो सारी सजावट एक बड़े डिब्बे में उलझी हुई लौटा दी गई—ना कोई धन्यवाद, ना माफी, ना समझ। यही नहीं, कई और पाठकों ने भी अपने-अपने अनुभव साझा किए—कोई स्कूल की सजावट लौटाने के बाद का हाल बताता है, तो कोई ऑफिस की। सबका दर्द एक जैसा—“लोग दूसरों की चीज़ों की कद्र नहीं करते।”
एक पाठक ने तो मजाक में सुझाव दे डाला, “ऐसे लोगों से ‘असभ्य शुल्क’ वसूला जाए, जिससे अगली बार उन्हें याद रहे!” क्या गज़ब का आइडिया है, है ना?
“पेड़ अभी भी खड़ा है”—आखिर में क्या सिखा ये किस्सा?
अंत में, जब उसकी सहकर्मी मारिया ने लॉबी में टेढ़े-मेढ़े पेड़ को देख कर पूछा, “किसी ने छुआ ना?” तो बस एक सिर हिलाने पर बात पूरी हो गई—“हाँ, पर अभी भी खड़ा है।”
यही असली सबक है—चाहे मेहनत को कितनी भी बार नजरअंदाज कर दिया जाए, हम फिर भी अपनी जगह डटे रहते हैं। हमारा काम, हमारी लगन, हमारे छोटे-छोटे त्योहारों के पल—उन्हें कोई पूरी तरह छीन नहीं सकता।
निष्कर्ष: क्या आपके साथ भी ऐसा हुआ है?
अगर कभी आपने ऑफिस, स्कूल या घर में कुछ अपनी मेहनत से सजाया हो, और दूसरों ने उसका हाल बेहाल कर दिया हो, तो ये कहानी आपके दिल को छू जाएगी। हमें कमेंट में बताइए—आपके त्यौहारों के “पेड़” के साथ क्या हुआ? और अगली बार जब कोई आपसे सजावट की जिम्मेदारी मांगे, तो… सोच लीजिएगा!
त्योहारों की शुभकामनाएँ, और याद रखें—चाहे पेड़ कैसा भी हो, असली रौनक तो आपकी मुस्कान और मेहनत में है!
मूल रेडिट पोस्ट: Fluff, Spiral, and Ruin - A holiday Tale