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जब ऑनलाइन वेबसाइट ने होटल वालों को परेशान कर दिया: 'पर श्मूकिंग ने कहा था नाश्ता फ्री है!

लग्ज़री प्रॉपर्टी में नाश्ते की उलझन पर चर्चा कर रहे मेहमानों का एनीमे-शैली का चित्रण।
इस जीवंत एनीमे दृश्य में, मेहमान श्मूकिंग डॉट शिट द्वारा फैलाए गए नाश्ते के मिथक पर मजेदार बहस कर रहे हैं। हमारे ब्लॉग पोस्ट में जानें कि आपकी ठहराई में वास्तव में क्या शामिल है!

सोचिए, आप किसी महंगे होटल में रुकने आते हैं, और सुबह-सुबह नाश्ते की टेबल पर पहुंचकर बहस शुरू—“श्मूकिंग डॉट कॉम ने तो लिखा था कि नाश्ता फ्री मिलेगा!” होटल के रिसेप्शनिस्ट की हालत देखिए—एक तरफ गुस्साए मेहमान, दूसरी तरफ अपनी मैनेजमेंट की बेपरवाही, और ऊपर से ऑनलाइन वेबसाइट्स की झूठी वादे! यह कहानी है उसी संघर्ष की, जिसमें असली परेशानी होटल वालों की होती है, मगर झेलना पड़ता है हर आम मेहमान को।

ऑनलाइन बुकिंग साइट्स का झांसा: “सब फ्री मिलेगा!”

आजकल हमारे देश में भी ऑनलाइन होटल बुकिंग खूब चलन में है—बड़ों से लेकर कॉलेज के लड़के-लड़कियाँ तक, सब मोबाइल निकालकर श्मूकिंग, गूड़ा, या स्कमएक्सपीडिया जैसे साइट्स से होटल ढूँढ लेते हैं। वहाँ होटल की फोटो, रेटिंग, और “फ्री ब्रेकफास्ट”, “स्विमिंग पूल”, “किचन” जैसी लंबी-चौड़ी लिस्ट! लेकिन असली कहानी तो होटल पहुंचने के बाद शुरू होती है।

रेडिट पर होटल रिसेप्शनिस्ट (u/ninestarryskies) अपनी हालत बताते हैं—उनके होटल में एक महंगा इतालवी रेस्टोरेंट है, जिसमें फ्री नाश्ते का सवाल ही नहीं! लेकिन श्मूकिंग साइट पर लिखा आता है—“ब्रेकफास्ट इनक्लूडेड”—बस फिर क्या, मेहमान बहस करने लग जाते हैं। एक कमेंट में तो किसी ने मज़ाक उड़ाया कि “अगर श्मूकिंग बोले पुल से कूदने पर डिस्काउंट मिलेगा, तो क्या आप दौड़ पड़ेंगे?” यही हाल हमारे यहाँ भी देखने को मिलता है, जब लोग “सस्ती वेबसाइट” के भरोसे चले आते हैं।

होटल वालों की असली जंग: “मेहमान, वेबसाइट या मैनेजमेंट?”

ऐसी हालत में सबसे ज्यादा फँसता है—फ्रंट डेस्क वाला। एक रीडर ने बड़ा अच्छा लिखा—“मैं मेहमान को सीधा वेबसाइट का कस्टमर केयर नंबर दे देता हूँ, कहता हूँ मुझसे बहस से कुछ नहीं बदलेगा, आप वहीं कॉल करके चिल्लाइए।” सुनने में अजीब लगे, मगर यही सच है! क्योंकि होटल वाले खुद वेबसाइट से परेशान हैं—कई बार वेबसाइट पर ऐसी-ऐसी चीजें भी लिख दी जाती हैं जो होटल में होती ही नहीं। एक और कमेंट में बताया गया—“हमारे होटल के पास झील है, श्मूकिंग ने लिख दिया ‘घुड़सवारी’ और ‘सर्फिंग’ भी है! अब कोई बताओ, भला झील में सर्फिंग और घोड़े कहाँ से आएंगे?”

एक और समस्या—कई बार बुकिंग साइट्स पर गलत कमरे, गलत सुविधाएँ, या फर्जी फोटो डाल दी जाती हैं। कोई “स्विमिंग पूल” ढूँढने आता है, तो होटल में बस पूल टेबल होती है! एक बार तो मेहमान ने रिसेप्शनिस्ट को बिल दिखाया और बोला—“यहाँ लिखा है किचन और अलग बेडरूम”—जबकि असल में ऐसा कुछ भी नहीं। कई बार होटल के कर्मचारी खुद भी परेशान रहते हैं कि वेबसाइट की गलत जानकारी हटाने के लिए महीनों मेल करना पड़ता है, फिर भी कुछ नहीं होता।

“सीधी बात, नो बकवास”—डायरेक्ट बुकिंग की अहमियत

कई लोग मानते हैं कि गलती मेहमान की नहीं, वेबसाइट की है—और कुछ हद तक यह सही भी है। जब वेबसाइट पर लिखा आता है “फ्री ब्रेकफास्ट”, तो आदमी उम्मीद तो करेगा ही। लेकिन ऐसे में होटल का नाम खराब होता है, और असली नुकसान होटल स्टाफ को झेलना पड़ता है। एक अनुभवी कर्मचारी ने सलाह दी—“अगर आपको कुछ एक्स्ट्रा चाहिए, होटल की वेबसाइट पर खुद देखो या फोन करके पूछो। अगर वेबसाइट पर नहीं लिखा, तो मानकर चलो वो सुविधा नहीं है।”

बड़े-बुजुर्ग भी हमेशा सलाह देते हैं—सीधा होटल में फोन करके बुकिंग करो। एक पाठक ने लिखा—“मैं पहले वेबसाइट पर होटल ढूंढता हूँ, लेकिन बुकिंग होटल से ही करता हूँ, ताकि सारी जानकारी पक्की रहे।” हमारे यहाँ भी “मुंह जबान का भरोसा” ज्यादा चलता है, इसलिए डायरेक्ट बुकिंग हमेशा फायदेमंद रहती है। हाँ, कई बार होटल वाले खुद भी अपनी वेबसाइट अपडेट करना भूल जाते हैं—तो ज़रूरी है कि बुकिंग से पहले दो बार पूछ लें।

हास्य भी, सीख भी: हर साइट की बात मत मानिए!

इन सारी मुसीबतों के बीच, होटल कर्मचारी भी अपने-अपने तरीके निकाल लेते हैं। कोई कस्टमर केयर नंबर थमा देता है, कोई हँसी में बात टाल देता है, तो कोई सीधा बोल देता है—“भैया, वेबसाइट की गलती है, मेरा क्या कसूर!” एक कमेंट में किसी ने लिखा, “अगर वेबसाइट कहे कि होटल में समंदर दिखता है, और होटल मिडवेस्ट में है, तो आप वहाँ जाकर समंदर ढूँढेंगे?” यही हाल श्मूकिंग और बाकी साइट्स का है—जो मन में आया, लिख दिया, और होटल वाले सिर पकड़ कर बैठ गए!

कई बार तो होटल कर्मचारी खुद भी अपनी मैनेजमेंट से परेशान हैं—“हमें वेबसाइट बदलने की ताकत नहीं दी जाती, बस शिकायत दर्ज करवाओ और भूल जाओ!” एक जगह तो किसी ने कहा—“अगर होटल में शिकायतें बढ़ जाएँ, तो मैनेजमेंट खुद ही नंबर बदल देगी, या फीचर हटवा देगी!” कुल मिलाकर, सबसे बड़ी सीख यही है—ऑनलाइन वेबसाइट पर आँख बंद करके भरोसा मत करिए, और होटल वालों का भी दर्द समझिए।

निष्कर्ष: आपका अनुभव? हमें बताइए!

तो दोस्तों, अगली बार जब कहीं होटल बुक करें—चाहे शादी, ट्रिप या ऑफिस टूर के लिए—कृपया वेबसाइट की हर बात पर भरोसा न करें। होटल वालों से सीधे बात करें, और दोनों ओर की परेशानी समझें। क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है, जब बुकिंग साइट्स ने आपको गुमराह किया हो? या होटल वालों ने आपको कोई मजेदार किस्सा सुनाया हो? अपने अनुभव कमेंट में जरूर लिखिए—शायद आपकी कहानी पर भी कभी एक मजेदार ब्लॉग बन जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: But Shmooking said breakfast is included!!