जब 'एटीट्यूड' की कीमत चुकानी पड़ी – एक मज़ेदार 'बिच फ़ी' की कहानी
कभी-कभी आप किसी ऐसी नौकरी में होते हैं जहाँ आपको हर दिन नए-नए रंग देखने को मिलते हैं। होटल, रेस्टोरेंट, या फिर किसी बड़े खेल परिसर में काम करने वाले लोग भले ही दूसरों को 'सर्विस स्टाफ' लगें, मगर असलियत में उनकी रोज़मर्रा की जंग किसी रणभूमि से कम नहीं होती। आज की कहानी भी ऐसी ही एक 'रणभूमि' की है, जहाँ एक कर्मचारी ने 'अभिमानी' ग्राहक को ऐसा सबक सिखाया कि इंटरनेट पर तालियाँ बज उठीं।
जब नियम बदलते हैं, तो 'वीआईपी' भी आम हो जाते हैं
इस कहानी की शुरुआत होती है एक ऐसे खेल परिसर से, जहाँ अक्सर टीमें, रेफरी, स्पॉन्सर आदि आते रहते हैं। बाहर पार्किंग है – वो भी मुफ्त नहीं! लेकिन सालों से वहाँ ये चलता आ रहा था कि कौन पैसे देगा और कौन नहीं, इसकी कोई ठोस गाइडलाइन नहीं थी। ऐसे में कर्मचारी भी कभी-कभी रियायत दे देते थे, "अरे रेफरी है, जाने दो", "स्पॉन्सर है, छोड़ो ना", वैसे ही जैसे हमारे यहाँ शादी-ब्याह में 'मामा' के हाथ में प्लेट थमा दी जाती है बिना टोकन के!
लेकिन हाल ही में वहाँ के बॉस लोगों ने तय कर दिया – अब सबको फीस देनी होगी, चाहे कोई भी हो, स्पॉन्सर या वीआईपी भी। अब आप समझ सकते हैं, सालों से फ्री में घुसने वाले जब पहली बार पैसे माँगे गए, तो उनका मुँह देखना बनता था!
'मैडम जी' का एटीट्यूड – और जवाब में 'बिच फ़ी'
तो हुआ यूँ कि एक मैच के दिन एक स्पॉन्सर और उनकी पत्नी (कहानी में EB – 'एंटाइटल्ड बिच' के नाम से मशहूर) पहुँचे। उन्होंने कहा, "हम तो स्पॉन्सर हैं, हमें तो फ्री में पार्किंग चाहिए!" कर्मचारी ने बड़ी नर्मी से समझाया, "अब नियम बदल गए हैं, सबको देना है।" मगर मैडम का एटीट्यूड तो आसमान छू रहा था, जैसे हमारे यहाँ मुहावरा है – "मानो राजघराने से आई हों!"
मैडम ने उल्टा कर्मचारी से पूछ लिया, "नाम क्या है तुम्हारा?" फिर ताना मारा, "तुमने तो स्कूल में पढ़ाई ही नहीं की होगी, तभी तो ये काम कर रहे हो!" अब ये बात तो किसी का भी खून खौला दे। मगर कर्मचारी ने भी ठान लिया था कि आज तो मज़ा चखाना है!
कर्मचारी ने कहा, "अगर ऐसे ही मजाक करती रहीं तो पार्किंग चार्ज बढ़ा दूँगा।" और जैसे ही मैडम ने दोबारा ताना कसा, कर्मचारी ने 1.10 यूरो की जगह 5 यूरो का चार्ज बोल दिया – यानी 'बिच फ़ी'! मैडम और भी भड़क गईं, मगर कर्मचारी ने अपनी ज़मीन नहीं छोड़ी।
'बिच फ़ी', 'पेन इन द...' और 'अस्सी हज़ार का टैक्स' – इंटरनेट की प्रतिक्रिया
अब Reddit पर ये कहानी वायरल हुई, तो लोगों ने अपने-अपने अनुभव और ह्यूमर भी जोड़ दिए। एक यूज़र ने कमेंट किया, "असली मज़ा तो तब आता है जब ऐसे लोगों को उनकी औकात दिखाओ और पूछो – तुम्हारी डिग्री किसमें है?" एक और ने लिखा, "हमारे यहाँ इसे 'पेन इन द...' टैक्स कहते हैं – यानी जो जितना तंग करे, उतनी फीस बढ़ा दो!" किसी ने 'डायरेक्ट हैंडलिंग' फ़ी, तो किसी ने 'अस्सी हज़ार का टैक्स' का सुझाव भी दिया।
एक यूज़र ने अपने अनुभव साझा किए, "लोग सोचते हैं कि जो दुकान, होटल या रेस्टोरेंट में काम करता है, वो ज़रूर पढ़ाई में कमज़ोर रहा होगा। जबकि सच्चाई ये है कि कई बार इन जॉब्स में वो लोग होते हैं, जिन्होंने पढ़ाई में भी झंडे गाड़े हैं, मगर हालात या पसंद के चलते अलग रास्ता चुना।"
यहाँ भारत में भी अक्सर देखा जाता है – लोग वेटर, सिक्योरिटी गार्ड या काउंटर स्टाफ को कमतर समझ लेते हैं, मगर सच्चाई ये है कि हर नौकरी का अपना सम्मान है। और ऐसे ग्राहकों की, जो 'बड़े घर की बहू' वाला ऐटिट्यूड लेकर आते हैं, उन्हें ही असली 'बिच फ़ी' का स्वाद चखाना चाहिए!
'असली ताकत' – सम्मान और समझदारी में है
कहानी का सबसे बड़ा संदेश यही है कि इंसानियत और विनम्रता हर जगह चलती है। एक यूज़र ने लिखा, "अगर कोई ग्राहक इज़्ज़त से पेश आता है, तो हम खुद छूट दे देते हैं। लेकिन अगर कोई 'राजा बेटा' बनकर तंग करता है, तो एक-एक पैसे का हिसाब लिया जाता है!"
सोचने वाली बात है – जो लोग दूसरों को कमतर समझते हैं, उन्हें कभी खुद ऐसी नौकरी करनी पड़ जाए, तो एक दिन भी नहीं टिक पाएंगे। यहाँ तक कि कर्मचारी ने भी आखिर में यही कहा – "कोई सोचता है कि मैं बेवकूफ हूँ, मगर वो खुद हमारी जगह एक दिन भी नहीं रह सकता।"
निष्कर्ष – आपकी बारी!
तो अगली बार जब आप किसी होटल, दुकान या सर्विस केंद्र जाएँ, याद रखें – सामने खड़ा व्यक्ति भी मेहनत कर रहा है, उसकी भी अपनी इज़्ज़त है। और अगर कभी 'बिच फ़ी' जैसी कोई अनोखी फीस आपके सामने आ जाए, तो समझ जाएँ – ये उसका तरीका है आपको आईना दिखाने का!
आपका क्या अनुभव रहा है ऐसे 'एटीट्यूड' वाले ग्राहकों या कर्मचारियों के साथ? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइएगा – हो सकता है आपकी कहानी भी अगली बार वायरल हो जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: i charged someone a bitch fee