जब एक साइकिल सवार ने ट्रक वाले को उसकी ही चाल में उलझा दिया
क्या आपने कभी सड़क पर साइकिल चलाते हुए गाड़ियों की भीड़ में फंसकर, किसी चालक के गुस्से का सामना किया है? अगर हां, तो आज की कहानी आपके चेहरे पर मुस्कान जरूर ले आएगी। और अगर नहीं, तो जनाब, कभी-कभी "छोटी बदला" भी बड़े मजे की चीज़ होती है।
कहानी का रंग जमाने से पहले, ज़रा सोचिए - किसी व्यस्त बाज़ार में, चारों ओर गाड़ियों का जाम, साइड में निर्माण कार्य, और हर कोई एक ही अच्छे रास्ते से निकलना चाहता है। ऐसे में एक साइकिल सवार, जिनका नाम मान लीजिए "राहुल" है, अपने दोस्त के साथ कॉफी पीकर लौट रहे हैं। राहुल को तो आदत है, बाइक पर ही आना-जाना, क्योंकि वहां पार्किंग की हालत ऐसी कि जैसे दिल्ली के चांदनी चौक में गाड़ी घुसा रहे हों।
राहुल जैसे-तैसे अपनी साइकिल लेकर, भीड़-भाड़ में से निकलते हुए, उस एकमात्र ट्रैफिक लाइट वाले रास्ते की ओर बढ़ते हैं। वहां फुटपाथ पर पहले ही लोगों की भीड़ है, बाइक ले जाना मुमकिन नहीं। मजबूरी में गाड़ियों के बीच से निकलना पड़ रहा है। ट्रैफिक इतना कि हर कोई अपनी-अपनी जगह के लिए जूझ रहा है, जैसे शादी में हलवाई की प्लेट के लिए लाइन लगी हो।
अब कहानी में ट्विस्ट आता है—एक ट्रक वाला, जो अपनी बारी के इंतज़ार में धैर्य खो बैठा है। ट्रक को थोड़ा आगे बढ़ाकर, राहुल पर "दबाव" डालता है कि जल्दी निकलो। भाई, ट्रक है, सड़क पर राजा जैसा महसूस करता है! लेकिन साइकिल के आगे ट्रक की क्या बिसात? राहुल क्लिप-इन पैडल में फंसे हुए हैं—यानी पैर साइकिल से जुड़े हैं, हमारे यहां अमूमन हीरो साइकिल चलाते वक़्त ये चीज़ नहीं दिखती, पर विदेशों में रेसिंग साइकिल पर ये बड़ी आम बात है। इससे पैडलिंग तो बढ़िया होती है, पर अचानक रुकना हो, तो पैर निकालना थोड़ा मुश्किल।
ट्रक वाले की हड़बड़ी के चक्कर में राहुल का संतुलन बिगड़ जाता है और वो धड़ाम से सड़क पर गिर पड़ते हैं। अब ट्रक वाला सोच रहा होगा—"अबे ये क्या हो गया!" ट्रैफिक लाइट हरी हो चुकी है, दूसरी लेन की गाड़ियां निकल रही हैं, लेकिन ट्रक वाला वहीं अटका है क्योंकि राहुल आराम-आराम से अपनी साइकिल उठाकर, पैंट झाड़कर, खुद को संभाल रहे हैं, जैसे घर में कोई मेहमान अचानक गिर जाए तो सब देखने लगते हैं—"भैया ठीक तो हो?"
यहां असली बदला यही था—ट्रक वाला, जो राहुल पर जल्दबाज़ी का दबाव डाल रहा था, अब उसी की वजह से सबसे ज्यादा देर तक फंसा रहा। राहुल को भी कोई जल्दी नहीं, अब तो मौके का पूरा मजा लिया।
रेडिट पर इस मजेदार वाकये को पढ़कर लोगों ने भी अपनी-अपनी राय दी। एक यूज़र ने चुटकी लेते हुए कहा, "वाह! भाई ने ट्रक वाले को सिखा दिया असली सड़क शिष्टाचार!" एक और कमेंट में मज़ाकिया अंदाज में लिखा गया, "ये कहानी तो इतनी अजीब लग रही है, जैसे हमारे मोहल्ले की बिजली सप्लाई—कभी भी असंभव हो जाती है।"
कुछ लोगों ने तकनीकी सवाल भी उठाए—"भाई, अगर ट्रैफिक इतना था तो क्लिप-इन पैडल क्यों इस्तेमाल किए?" इस पर साइकिल चलाने वालों ने बढ़िया जवाब दिया—"रेसिंग साइकिल में बिना क्लिप किए चलाना टेढ़ी खीर है, और ज्यादा दिक्कत तभी आती है जब पीछे कोई 'कैप्टन अस्सी' (जैसा कि एक कमेंट में लिखा गया) अपनी गाड़ी लेकर जलेबी की तरह घुसता रहता है।"
कुछ पाठकों ने ये भी समझाया कि हमारे देश में भी साइकिल सवार को सड़क पर पूरा हक है, खासकर जब उन्हें अपनी सुरक्षा का डर हो। लेकिन अफसोस, अधिकतर गाड़ी वाले इस बात को नजरअंदाज कर देते हैं।
एक और मजेदार बात—कहानी में लेखक ने डगलस एडम्स की किताब "हिचहाइकर गाइड टू द गैलेक्सी" की 'इम्प्रॉबेबिलिटी ड्राइव' का जिक्र किया था। पश्चिमी पाठकों को ये रेफरेंस समझ आया, वहीं हमारे यहां इसे ऐसे समझिए—जैसे मुहल्ले की गलियों से बिना ट्रैफिक में फंसे सीधे निकल जाएं, तो किस्मत का खेल है!
कुछ कमेंट्स में ट्रक वाले के खिलाफ पुलिस में शिकायत करने की सलाह भी दी गई, पर राहुल ने तो अपना बदला बड़े ही शांति और मजेदार अंदाज में ले लिया। आखिर में यही सीख मिलती है—सड़क पर साइकिल सवार को डराने की कोशिश करोगे, तो खुद ही फंस जाओगे, और राह दिखाने वाला वही बन जाएगा, जिसे तुम रास्ते से हटाने चले थे।
तो दोस्तों, अगली बार जब सड़क पर कोई साइकिल सवार दिखे, तो जरा धैर्य रखें। क्या पता, कहीं आप ही अगला "छोटा बदला" का शिकार ना बन जाएं!
आपकी क्या राय है—क्या आपने कभी ऐसी कोई घटना देखी या खुद अनुभव की है? कमेंट करके जरूर बताएं, और अगर कहानी पसंद आई हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। आखिरकार, मजा तो तब है जब सब मुस्कुराएं!
मूल रेडिट पोस्ट: Freak me out while I bike? Ok guess I will fall over and now you have to wait