जब आलसी सहकर्मी को मिला उसके ही सिक्के से जवाब: एक देखभाल गृह की कहानी
आजकल के ऑफिस या कामकाज की दुनिया में एक कहावत बहुत मशहूर है—"कामचोर को जब तक उसकी चौकीदारी न करनी पड़े, तब तक उसे मेहनत का असली मतलब नहीं पता चलता!" कुछ ऐसी ही कहानी आई है एक देखभाल गृह (केयर होम) से, जो Reddit पर वायरल हो गई और हर उस इंसान को सुकून दे गई, जिसे कभी न कभी अपने 'ब्रायन' जैसे सहकर्मियों से दो-चार होना पड़ा है।
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर किस्सा है क्या? चलिए, चाय की चुस्की लेकर बैठिए, क्योंकि यह कहानी तो हर भारतीय ऑफिस की हकीकत को भी छू जाती है!
आलसी ब्रायन और उसकी लंबी चाय की प्याली
हमारे नायक/नायिका (जो Reddit पर 'agedpunkfairy' के नाम से लिखते हैं) एक छोटे से देखभाल गृह में काम करते हैं, जहाँ सिर्फ 6 निवासी और 2 कर्मचारी हर समय मौजूद रहना जरूरी है, ताकि सबकी सुरक्षा बनी रहे। यहाँ काम करने वाले 'ब्रायन' नामक सज्जन, ऑफिस की भाषा में कहें तो "पुराने सरकारी बाबू" जैसे हैं—जहाँ तक हो सके, बस काम टालो और आराम का लुत्फ उठाओ।
अब जब 13 घंटे की ड्यूटी होती है, तो नियम के हिसाब से एक घंटे की ब्रेक मिलती है। लेकिन ब्रायन साहब, नियम-कायदे किस खेत की मूली! वे हर बार डेढ़ घंटे की ब्रेक लेकर आते, नतीजा यह कि हमारे नायक/नायिका को सिर्फ आधा घंटा ही मिलता। बाकी काम—रहवासियों को उठाना, नहलाना, चाय-पानी देना, रात का खाना बनाना—सब उन्हीं के सिर! आपको भी ऑफिस में कोई ऐसा 'ब्रायन' याद आ रहा है ना, जो बार-बार पान-चाय के बहाने गायब हो जाता है?
जब सब्र का बाँध टूटा: 'जैसी करनी वैसी भरनी'
कहते हैं, हर किसी की हद होती है। आखिरकार, हमारे नायक/नायिका ने भी ठान लिया—अब और नहीं! एक दिन, जब ब्रायन अपना डेढ़ घंटे का ब्रेक लेकर लौटे, तो इन्होंने मुस्कुराते हुए सीधे मैनेजर को बताया, "मैं अब अपने पूरे घंटे की ब्रेक लूंगी, ब्रायन यहाँ हैं, अब सारा काम वही देखेंगे।" और फिर क्या, ब्रायन को पसीना-पसीना कर देने वाले सभी काम—रहवासियों को तैयार करना, खाना बनाना—सब उनके जिम्मे!
जब लौटकर देखा, तो ब्रायन की हालत ऐसी थी जैसे किसी ने पहली बार उसे सच में काम पर लगा दिया हो—पसीने से तर, चेहरे पर बेबसी की लकीरें और खाना बनाते हुए घबराहट! Reddit पर पढ़ने वालों ने भी खूब मजे लिए—"वाह! अब तो ब्रायन को भी पता चलेगा कि टीमवर्क क्या होता है!"
एक कमेंट में किसी ने चुटकी ली, "अरे, ब्रायन को उसी की दवा पिलाई, अब समझ आएगा!" वहीं, किसी ने सलाह दी, "ऐसे लोगों की आदत बदलनी मुश्किल है, लेकिन कभी-कभी करारा झटका जरूरी है!"
ऑफिस की राजनीति और 'कागजी सबूत' का जादू
भारत में भी आपने सुना होगा—जब कोई सहकर्मी आपकी मेहनत का क्रेडिट खा जाए या आपके हिस्से का काम आपको ही थमा दे, तो 'सबूत' रखना कितना जरूरी है! यही बात Reddit के एक कमेंट में भी आई—"हर बार ब्रायन के देर से लौटने का रिकॉर्ड रखो, जरूरत पड़े तो मैनेजर को दिखाओ।"
हमारे नायक/नायिका ने भी जवाब दिया, "मैं पहले ही हर चीज रिकॉर्ड कर रही हूँ, ये मेरे काम का हिस्सा है!" एक और सलाह आई, "मैनेजर से कहो कि जो आधा घंटा ब्रायन के चक्कर में तुम्हारा गया, उसकी सैलरी दो, वरना लेबर बोर्ड में शिकायत करो।" क्या बात है! जैसे कोई भारतीय कर्मचारी अपने HR के कागज तैयार कर रहा हो—'अरे भैया, सबूत है मेरे पास!'
मैनेजर की भूमिका और 'ब्रायन बनाम ब्रेन' का ह्यूमर
अब सबसे बड़ा सवाल—मैनेजर क्या कर रहा था? Reddit पर भी लोग चुटकी लेते रहे—"क्या आपके मैनेजर को मैनेजमेंट का मतलब पता है?" जवाब में कोई बोला, "मैनेजर, मैनेजमेंट? ये तो मजाक लग रहा है!" किसी ने तो ब्रायन के नाम की स्पेलिंग की मस्ती में पूछ लिया, "ब्रायन बनाम ब्रेन—कहीं मैनेजर का नाम पिंकी तो नहीं?"
असल में, ऑफिसों में ऐसे मैनेजर मिलना आम है, जो सिर्फ फाइलों में उलझे रहते हैं, पर असली समस्या सुलझाने में कतराते हैं। इसी वजह से, कई कर्मचारी खुद ही 'जैसी करनी वैसी भरनी' वाला रास्ता अपनाते हैं—जैसे हमारे नायक/नायिका ने किया।
सबक और हंसी-मजाक: भारतीय दफ्तरों के लिए सीख
इस पूरी कहानी में कई चीजें छुपी हैं—सबसे बड़ा सबक ये कि जब तक आप अपने लिए खड़े नहीं होंगे, कोई और नहीं आएगा! ऑफिस के 'ब्रायन' को सबक सिखाना जरूरी है, लेकिन साथ ही सबूत रखना और मैनेजर को सूचित करना भी उतना ही अहम। Reddit पर एक कमेंट में खूब सही लिखा—"कर्मा में हाथ बँटाना भी बड़ा मजेदार होता है!"
और हाँ, अगली बार अगर आपका कोई ब्रायन आपको परेशान करे, तो एक बार ये 'पेटी रिवेंज' वाला तरीका आजमा लीजिए—हो सकता है उसे भी पसीना आ जाए!
निष्कर्ष: आपके ऑफिस में भी है कोई ब्रायन?
तो दोस्तों, क्या आपके ऑफिस में भी कोई 'ब्रायन' है? क्या आपने कभी ऐसे सहकर्मी को उसकी ही चाल में फँसाया है? या कोई और मजेदार कहानी है, जो सबको सुनानी चाहिए? नीचे कमेंट में जरूर साझा करें, क्योंकि ऑफिस की राजनीति और हंसी-मजाक दोनों में भागीदारी सबसे जरूरी है!
और हाँ, अगली बार अपने ब्रेक का पूरा फायदा उठाइए—क्योंकि "आपका घंटा, सिर्फ आपका घंटा!"
मूल रेडिट पोस्ट: Taking my break