जब आलसी सहकर्मी को बारिश ने सिखाया सबक: ऑफिस की छोटी बदला कहानी
ऑफिस या दुकान में काम करते हुए आपने भी ऐसे सहकर्मी ज़रूर देखे होंगे, जो काम के समय या तो गायब हो जाते हैं या फिर अपने मोबाइल में घुसे रहते हैं। इनसे बाकी साथियों का खून खौलना लाज़मी है! आज हम आपको सुनाने जा रहे हैं एक ऐसी ही दिलचस्प कहानी – कैसे एक चालाक 'सीनियर' ने अपने आलसी सहकर्मी को बिलकुल देसी अंदाज़ में सबक सिखा डाला।
जब मेहनत का मौसम आया, कोई बाथरूम में छुपा
ये किस्सा है एक लोकल किराना दुकान का, जहाँ चार लोग एक साथ ड्यूटी पर थे। दुकानदार, शिफ्ट लीडर (यहाँ उन्हें SL कहेंगे), और दो साथी – A और K। उस दिन काम का ऐसा बोझ था कि सबके पसीने छूट रहे थे। SL अपने मैनेजमेंट के कामों में डूबे थे, A और दुकानदार अपने-अपने हिस्से का काम निपटा रहे थे। और K? जनाब ओवरटाइम के लालच में आए थे, लेकिन काम से कोसों दूर।
K को एक आसान-सा काम सौंपा गया, जो आधे घंटे में निपटना था। मगर जनाब ने तो जैसे कसम खा ली थी – काम कम, आराम ज़्यादा! वे बाथरूम में छुपकर डेढ़ घंटे तक मोबाइल चलाते रहे, और शॉप के काउंटर पर नज़र तक नहीं डाली। उधर A और दुकानदार पसीना बहा रहे थे, और K मस्त थे।
जब 'कर्मा' ने दी दस्तक – बारिश में भीगा बदला
अब असली मज़ा यहाँ आया। जब सबका काम हो चुका था, तभी भारी सामान की डिलीवरी आ गई – बड़े-बड़े पिंजरे, उठाने में दम निकल जाए! ऐसे में दुकानदार ने SL से हल्के से कहा – “अगर K डिलीवरी में मदद कर दें, तो मैं वो स्कैनिंग कर लूं जो कल की टीम नहीं कर पाई।” SL को बात जम गई, और K को मजबूरी में बाहर जाना पड़ा।
अब जैसे ही K बाहर गया, ऊपर से बारिश बरस पड़ी – और ऐसी बरसी कि K बेचारे चूहे की तरह भीग गए! अंदर आए तो कपड़े से पानी टपक रहा था, और A व दुकानदार दोनों मुस्कुरा रहे थे। सच कहें तो, K को अपने आलसीपन का ऐसा सबक मिला, जो शायद ही कभी भूले।
देसी पाठ: "बूढ़ी घोड़ी, लाल लगाम" वाली बात सच निकली
कहानी में एक कमेंट ने बड़ा मज़ेदार तड़का लगाया – “मान लो, मैं बूढ़ी हूँ, लेकिन मेरे पास ज़्यादा इंश्योरेंस है!” इसका मतलब सीधा-सा है – अनुभव और चालाकी, नई उम्र के जोश पर हमेशा भारी पड़ती है। एक और पाठक ने लिखा, “पुराने खिलाड़ी को हल्के में मत लेना, वरना पछताना पड़ेगा।”
हमारे हिंदी ऑफिसों में भी ऐसा अक्सर होता है – कभी-कभी तो बड़े-बुज़ुर्ग कर्मचारी चुपचाप ऐसा खेल कर जाते हैं कि नए लोग देखते रह जाते हैं। जैसे गाँव में कहते हैं, “बूढ़ा बैल हल जोतना नहीं भूलेगा।” यहाँ भी K ने समझा, वह सबको चकमा दे देगा, लेकिन SL और दुकानदार ने सटीक चाल चली।
जब कामचोरी का फल मिलता है – "जो बोओगे, वही काटोगे"
कई पाठकों ने कमेंट किया, “कामचोर हमेशा छोटे-छोटे कामों से बचते हैं, लेकिन जब बड़ा सिरदर्द आता है, तो सबसे पहले उनकी ही बारी आती है।” एक ने लिखा, “लगता है K घर जाकर अपने बॉस की बुराई करेगा, लेकिन हकीकत यही है कि उसने खुद की करनी खुद ही भुगती।”
हमारे यहाँ भी, चाहे सरकारी ऑफिस हो या प्राइवेट, ऐसे कामचोरों को कभी-कभी ऊपरवाला भी सबक सिखा देता है – कभी बारिश, कभी बॉस, कभी ग्राहक। एक पाठक ने तो मज़ाक में लिखा, “K का टाइमिंग खराब था, लेकिन कर्मा एकदम टाइम पर आ गया!”
निष्कर्ष: क्या आपने भी कभी ऐसा बदला लिया?
कहानी से यही सीख मिलती है – “काम से बचोगे, तो किस्मत भी पीछा नहीं छोड़ेगी।” ऑफिस राजनीति हो या दुकान की शिफ्ट, मेहनत का कोई विकल्प नहीं। और हाँ, कभी-कभी छोटा सा बदला भी, किसी को जिंदगी भर की सीख दे जाता है।
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है? या आपने किसी कामचोर को देसी अंदाज़ में सबक सिखाया है? अपनी कहानी नीचे ज़रूर शेयर करें – कौन जाने, अगला मज़ेदार किस्सा आपका हो!
मूल रेडिट पोस्ट: Co-worker wanted to take it easy when we were flat out