जब आपको निकाले गए काम के लिए ही फिर से बुलाया जाए: एक लैब की छोटी-सी बदले की कहानी
ऑफिस की राजनीति और साथियों की तिकड़मबाज़ी से कौन नहीं जूझता? हर कोई चाहता है कि उसका मेहनत और भरोसा रंग लाए, लेकिन कई बार सारा खेल पलट जाता है। ज़रा सोचिए – आप जिस काम में माहिर हैं, उसी से आपको अचानक हटा दिया जाए और फिर उसी काम के लिए आपसे मदद भी मांगी जाए! आज की कहानी कुछ ऐसी ही है, जो न सिर्फ़ मज़ेदार है, बल्कि सोचने पर भी मजबूर कर देती है।
ऑफिस की राजनीति: जब मेहनत कम, चालबाज़ी ज़्यादा
हमारे कहानी के नायक एक लैब में मैनेजमेंट का काम करते थे। विषय में उनकी डिग्री शायद नहीं थी, लेकिन काम में कोई कमी नहीं थी। उनकी मेहनत से लैब चलती थी – एकदम घर की बड़ी बहू जैसी, जो सब सम्हालती है, पर कभी तारीफ़ नहीं मिलती।
कुछ महीने पहले उन्हें दस्तावेज़ीकरण और क्रायोजेनिक स्टोरेज (यानि बेहद ठंडे तापमान पर चीज़ों को संभालना) का ज़िम्मा मिला। सब ठीक चल रहा था, लेकिन अचानक एक दिन उनकी पीठ पीछे मीटिंग हुई – वो भी बिना उन्हें बुलाए! वहां तय हुआ कि अब ये जिम्मेदारी किसी “ज़्यादा जानकार” को दी जाएगी। कारण? किसी ने उन पर आरोप लगा दिया कि उनकी वजह से प्रयोग बिगड़ गया। बिना पूछे-समझे, मैनेजर ने उनका रोल बदल दिया।
बिना बात सुने सज़ा! क्या यही है ‘टीम वर्क’?
यह बात न सिर्फ़ अपमानजनक थी, बल्कि बहुत गैर-पेशेवर भी। Reddit पर एक कमेंट में किसी ने कहा – “क्या आपके पास कोई सबूत, ईमेल या वीडियो है जिससे आप साबित कर सकें कि गलती आपकी नहीं थी?” (जैसे हमारे यहाँ कहा जाता है – ‘डूबते को तिनके का सहारा’)। OP [यानी कहानी के असली नायक] ने जवाब दिया कि उन्होंने सबूत जुटाने की कोशिश की, लेकिन अंत में बात “उसने कहा-मैंने कहा” पर ही आ गई।
कम्युनिटी ने एक और अहम बात कही – “बिना जांच पड़ताल के किसी पर दोष मढ़ना, वो भी वैज्ञानिकों के बीच, सबसे बड़ी बेइमानी है।” सोचिए, विज्ञान की दुनिया में जहां हर चीज़ प्रमाण पर चलती है, वहाँ आरोप-प्रत्यारोप का ये खेल!
असली मज़ा तो तब आया जब…
अब असली ट्विस्ट देखिए। ऑफिस में, नए-नवेले, बिना ट्रेनिंग वाले बंदे को वही काम सौंपा गया, जिसमें OP माहिर थे। दिन के आखिर में उस नए व्यक्ति ने OP को मैसेज किया – “भैया/दीदी, ज़रा ये काम कर दीजिए, जल्दी चाहिए, वरना एक साइंटिस्ट (वही जिसने OP पर झूठा आरोप लगाया था) को 6 बजे के बाद रुकना पड़ेगा।”
OP ने जवाब दिया – “मैं देखता/देखती हूँ।” और फिर… कुछ नहीं किया! नतीजा – उस वैज्ञानिक को कई घंटे ज़्यादा रुकना पड़ा।
किसी ने कमेंट में लिखा – “किसी को उसके ही जाल में फँसाना, यही तो असली ‘छोटी बदला’ है!” हमारे यहाँ इसे कहते हैं – “जैसा बोओगे, वैसा काटोगे।”
कम्युनिटी की राय: क्या सही, क्या ग़लत?
Reddit कम्युनिटी ने इस पूरे मामले पर जमकर प्रतिक्रिया दी। एक ने कहा, “अब जब आपको इस रोल से हटा दिया गया है, तो आपसे वही काम करवाना बिल्कुल भी सही नहीं। अगर उन्हें ज़रूरत थी, तो पहले आपको सम्मान के साथ बात करनी चाहिए थी।”
एक और मज़ेदार कमेंट था – “अब जब आपको ‘योग्य’ नहीं माना गया, तो जवाब सीधा होना चाहिए – ‘माफ़ कीजिए, अब ये मेरी ज़िम्मेदारी नहीं है।’”
कुछ लोगों ने OP को सलाह दी कि जब भी ऐसी स्थिति आए, दस्तावेज़ और सबूत संभाल कर रखें। “ऑफिस में भरोसेमंद गवाह बनाइए, HR में शिकायत करिए या कानूनी सलाह लीजिए,” एक ने सलाह दी।
यहां तक कि कुछ ने अपने अनुभव भी साझा किए – “मुझे भी बिना वजह निकाला गया था, फिर उन्हीं लोगों ने मुझसे मदद मांगी। मैंने साफ़ मना कर दिया!”
भारतीय दफ्तरों में भी ऐसे किस्से आम हैं
अगर आप सोच रहे हैं कि ये सिर्फ़ पश्चिमी देशों की दास्तान है, तो ज़रा अपने आसपास देखिए। हमारे देश में भी कई बार वरिष्ठता या जुगाड़ के नाम पर काबिल लोगों की अनदेखी हो जाती है। किसी की ‘डिग्री’ या ‘जुगाड़’ भारी पड़ जाती है, तो कभी किसी के ‘अंदर’ की वजह से मेहनती कर्मचारी को किनारे कर दिया जाता है।
यह कहानी हमें सिखाती है कि आत्म-सम्मान और अपना हक़ जानना ज़रूरी है। जब कोई आपको आपकी काबिलियत न पहचाने, तो सिर झुकाने से बेहतर है – अपनी शर्तों पर डटे रहना। और हाँ, अगर बदले का मौका मिले, तो ‘छोटी बदला’ भी कभी-कभी बहुत सुकून देता है!
निष्कर्ष: क्या आप भी ऐसी स्थिति में रहे हैं?
इन घटनाओं से एक बात तो साफ़ है – ऑफिस में राजनीति हर जगह है, लेकिन खुद का आत्म-सम्मान सबसे ऊपर।
क्या आपके साथ भी कभी ऐसा हुआ है कि आपको किनारे कर दिया गया, और फिर वही लोग मदद के लिए आपके पास लौटे? या कभी किसी ने आपका हक़ छीनने की कोशिश की हो? अपनी कहानी नीचे कमेंट में जरूर साझा करें – क्या पता, अगली बार आपकी कहानी ही यहां पढ़ने को मिले!
मूल रेडिट पोस्ट: You want me to do the job you fired me from? I don’t think so.