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जब आईटी कर्मचारी ने मैनेजर को उसी के बनाए नियम में फंसा दिया

एक एनीमे चित्रण जिसमें एक आईटी पेशेवर डिजिटल पोर्टल पर उपयोगकर्ता पहुंच का प्रबंधन कर रहा है, उपयोगकर्ता हटाने की प्रक्रिया को दर्शाता है।
इस जीवंत एनीमे दृश्य में, हमारा आईटी हीरो कंपनी के पोर्टल पर उपयोगकर्ता पहुंच की सफाई करने की चुनौती का सामना कर रहा है, सूची को 100 से केवल 30 तक घटाते हुए। एक साधारण कार्य जो अप्रत्याशित जटिलताओं की ओर ले जाता है—किसने सोचा था कि उपयोगकर्ताओं का प्रबंधन इतना नाटकीय हो सकता है?

ऑफिस की ज़िंदगी में कभी-कभी ऐसे किस्से हो जाते हैं कि सुनकर हँसी छूट जाती है। खासकर जब बात आईटी डिपार्टमेंट और मैनेजरों की हो, तो मसाला डबल हो जाता है। ज़रा सोचिए, अगर आपके बॉस ही अपने बनाए नियमों में फँस जाएँ, तो क्या होगा? आज की कहानी कुछ ऐसी ही है, जहाँ एक समझदार आईटी कर्मचारी ने अपने ‘सिगल’ (सीगुल) टाइप मैनेजर को उनकी ही चाल में उलझा दिया।

ऑफिस में ‘सीगुल’ मैनेजर का आतंक

हमारे देश के दफ़्तरों में आपने कई तरह के बॉस देखे होंगे—कुछ शांत, कुछ हमेशा गुस्से में, और कुछ ऐसे जो हर बात में टांग अड़ाते हैं लेकिन असली काम कम ही करते हैं। Reddit के एक किस्से में एक आईटी कर्मचारी ने अपने ऐसे ही ‘सीगुल’ टाइप मैनेजर की कहानी सुनाई है। ‘सीगुल’ यानी ऐसे मैनेजर जो आते हैं, शोर मचाते हैं, सब पर गुस्सा निकालते हैं, और फिर उड़ जाते हैं—काम किसी का नहीं हल होता, उल्टा सब गड़बड़ हो जाती है।

यहाँ भी कुछ ऐसा ही हुआ। कंपनी बड़ी थी, कुछ हज़ार कर्मचारी थे, लेकिन एक पोर्टल को सिर्फ़ सौ लोग इस्तेमाल करते थे। मैनेजर साहब ने आदेश दिया—"सभी अनावश्यक यूज़र्स हटा दो!" भाई ने भी आदेश का पालन किया, सौ से सीधे तीस नाम बचाए। सब खुश!

पर कुछ ही हफ्तों में मैनेजर को फिर से चैन नहीं आया—"ये तीस भी ज़्यादा हैं! पूरी लिस्ट बनाओ—कौन किस टीम का है, किसको रिपोर्ट करता है, कौन-कितनी बार पोर्टल इस्तेमाल करता है?" अब आईटी वाले बेचारे को क्या करना था, लिस्ट बनाकर दे दी। मैनेजर ने जिन नामों को नहीं पहचाना, सबको डिलीट करने का फ़रमान सुना दिया।

नियमों का जाल और उसका असर

अब यहाँ से असली तमाशा शुरू होता है। चूँकि कंपनी ग्लोबल थी, रातों-रात अनेकों देशों से शिकायतें आने लगीं—"सिस्टम डाउन है, लॉगिन नहीं हो रहा, हेल्प!" लेकिन हमारे आईटी साथी ने सोचा—"भैया, रात के तीन बजे मेरी ड्यूटी नहीं है, जो होगा सुबह देखा जाएगा।"

सुबह मैनेजर साहब गुस्से में आग-बबूला—"ये क्या कर दिया, सबका एक्सेस क्यों हटा दिया?!" अब भाई ने सीधा जवाब दिया—"आपने ही बोला था, जिनको आप नहीं जानते, उनका एक्सेस हटा दो।" मतलब, जैसा बोला गया, वैसा किया गया।

एक हफ्ते बाद फिर वही घिसा-पिटा राग—"सिस्टम सिक्योर नहीं है, एक्सेस बहुत लोगों के पास है, सबका रिव्यू करो!" अबकी बार आदेश आया—"जो रोज़ पोर्टल यूज़ नहीं करता, उसे हटा दो, और जो नया एक्सेस चाहता है, उसे फ़ॉर्म भरवाओ!"

आईटी वाले ने भी सोचा—अब जो होगा देखा जाएगा। सिस्टम से सारे गैर-ज़रूरी यूज़र्स को हटा दिया, यहाँ तक कि मैनेजर साहब खुद भी बाहर हो गए।

जब शिकारी खुद शिकार बन गया

कुछ दिनों बाद मैनेजर साहब खुद आईटी के पास—"मुझे लॉगिन नहीं हो रहा, सिस्टम में गड़बड़ है!" आईटी वाला बोला—"सिस्टम तो ठीक है, पर आपने खुद ही कहा था—जो रोज़ यूज़ नहीं करता, उसे हटा दो।"

अब साहब बोले—"मुझे फिर से ऐड करो।" आईटी वाला मुस्कुरा कर बोला—"ये लीजिए, आपका ही बनाया हुआ फ़ॉर्म, पहले इसे भरिए!"

अब हालात ये हैं कि कई हफ्ते बीत गए, मैनेजर साहब ने अभी तक फ़ॉर्म नहीं भरा, और आईटी वाला मज़े में है। दोनों के बीच रिश्ता भी अब कुछ ठीक-ठाक है, शायद मैनेजर को समझ आ गया कि हद से ज़्यादा टांग अड़ाने का नतीजा क्या होता है।

पाठक की नज़र से: दफ़्तरों में ऐसे मैनेजर क्यों होते हैं?

इस कहानी पर Reddit कम्युनिटी का भी खूब मनोरंजन हुआ। कई लोगों ने अपने अनुभव शेयर किए कि ऐसे ‘सीगुल’ मैनेजर हर जगह होते हैं—जो खुद को सुपरहीरो समझते हैं, पर असल में सबका सिर दर्द बन जाते हैं। एक यूज़र ने मस्त कमेंट किया—"ऐसे बॉस आते हैं, शोर मचाते हैं, सबकी हवा खराब करते हैं, और फिर उड़ लेते हैं, जैसे चील रोटी छीनकर भाग जाए।"

दूसरे ने तो यहां तक कहा—"बोर्ड मैनेजर ऑफिस में बस टाइम पास के लिए आते हैं, असली काम आईटी वाले ही करते हैं।" कई लोगों ने सलाह दी कि ऐसे बॉस के साथ सब कुछ लिखित में रखो—ताकि बाद में कोई पेंच न फँसे।

एक कमेंट मज़ेदार था—"जब बॉस खुद फँस जाए, तो उसे उसी का बनाया फ़ॉर्म पकड़ाओ—ये तो असली जीत है!" किसी ने ‘पीटर प्रिंसिपल’ का जिक्र किया—यानि, बहुत से लोग अपनी काबिलियत की हद तक प्रमोट होते-होते वहाँ पहुँच जाते हैं जहाँ वे असल में फिट नहीं होते।

आख़िर में: दफ़्तर की राजनीति के बीच मुस्कान

तो भाइयों-बहनों, दफ़्तर की राजनीति और नियम-क़ानून में उलझने से बेहतर है कि थोड़ा हास्य का चश्मा लगाकर देखें। कभी-कभी नियम बनाने वाले ही उनमें फँस जाते हैं। ऐसे हालात में धैर्य और थोड़ा-सा तंज़, दोनों ही ज़रूरी हैं।

क्या आपके ऑफिस में भी ऐसे सीगुल मैनेजर या अजीबो-गरीब नियमों का सामना करना पड़ा है? अपनी कहानी नीचे कमेंट में ज़रूर शेयर करें—शायद अगली बार आपकी दास्तान यहाँ सुनाई जाए!


मूल रेडिट पोस्ट: Want me to clean up users on the portal? Done, you’re deleted.