जब 'अपना पेय' लाने वालों को बार मैनेजर ने दिया ज़बरदस्त झटका!
कॉलेज के दिनों में दोस्तों के साथ बार में बैठना, चाय-कॉफी की चुस्कियों के बजाय किफ़ायती दामों वाली ड्रिंक्स का मज़ा लेना—कितना आम है! लेकिन सोचिए अगर कोई अपने घर से ही बोतलें भरकर बार के अंदर लाए और फिर मैनेजर के सामने अकड़ भी दिखाए, तो क्या होगा? आज की कहानी एक ऐसे ही शरारती गिरोह और चालाक बार मैनेजर की है, जिसमें मज़ा, मस्ती और बदले का तड़का सबकुछ है।
यूनिवर्सिटी बार: जहां दोस्ती भी सस्ती, ड्रिंक भी सस्ती
यूनिवर्सिटी या कॉलेज के स्टूडेंट यूनियन बार हमारे देश के कैंटीन जैसे होते हैं, लेकिन फर्क ये कि वहां चाय-स्मोसा नहीं बल्कि बीयर, वाइन वगैरह मिलती हैं—वो भी जेब पर भारी न पड़े, ऐसे दामों में। सारा मुनाफा कॉलेज की एक्टिविटीज, सोसाइटीज और खेलकूद में जाता है। यानी जितना पियो, उतना कॉलेज का भला! लेकिन एक नियम बड़ा पक्का—"बाहर से कुछ भी लाना मना है।"
अब भारत में भी शादी-ब्याह या पार्टी में लोग कभी-कभी अपनी बोतलें छुपा लेते हैं, पर कॉलेज बार में ये चालाकी चल नहीं पाती। फिर भी, एक ग्रुप ऐसा था, जो हर रात बड़ा शातिर बनकर बाहर से शराब की थैलियां भरकर लाता और बार के स्टाफ को जैसे कुछ समझता ही नहीं था।
चालाकी की हद: छुपकर पीना और फिर बेशर्मी से झूठ बोलना
ये लड़के-लड़कियां अपने झुंड में आते, बार से एक ग्लास पानी तक नहीं मंगवाते, लेकिन धीरे-धीरे नशे में चूर हो जाते। बार के कोने में, जहाँ स्टाफ के अलावा किसी का जाना मना था, वहाँ अपने कोटों और बैग्स के नीचे बोतलें छिपा देते। बार मैनेजर (जिन्होंने Reddit पर ये किस्सा सुनाया) कई बार इन्हें पकड़ते, बाहर निकालते, लेकिन हर बार ये शेर की तरह लौट आते।
एक दिन मैनेजर ने ठान लिया—"अब तो इनकी अकड़ निकालनी ही है!"
मास्टरस्ट्रोक: जब बदमाशों की बोतलें हुईं 'गायब'
शाम को जैसे ही उस गिरोह ने अपने कोट-बैग्स स्टाफ-ओनली कॉरिडोर में छुपाए, मैनेजर खामोशी से दफ्तर से निकले, सबकी बोतलें और कोट समेटकर अंदर ले गए। कुछ देर बाद, गिरोह का खुद को लीडर समझने वाला लड़का बगलें झांकते हुए बार काउंटर पर आया—"भैया, हमारे कोट कॉरिडोर में थे, मिल नहीं रहे!"
मैनेजर मुस्कुराए, "किस कॉरिडोर में? जहाँ से तुम्हें कई बार निकाला है?"
"वो... वहीं रख दिए थे, बस जाते वक्त उठाने थे।"
"कोई चीज़ मिली तो बताऊँगा, चलो देख लेते हैं।"
मैनेजर दफ्तर के उसी दरवाजे से निकले, जिसकी भनक उन लड़कों को थी ही नहीं, और कोट लौटा दिए। लड़के बोले, "बैग्स भी थे, उसमें... वो... वाइन, बीयर वगैरह थी।"
मैनेजर फिर मुस्कुराए, "अरे भाई, ऐसी कोई चीज़ किसी ने नहीं दी!"
लड़का मायूस होकर चला गया। उसके बाद उस गैंग ने बार का रुख़ ही नहीं किया। उस रात स्टाफ ने जो 'पार्टी' मनाई, उसका जवाब नहीं!
Reddit कम्युनिटी की राय: ज़बरदस्त बदला, वाह मैनेजर साहब!
इस घटना पर Reddit यूज़र्स की प्रतिक्रियाएं भी किसी मसालेदार टीवी शो जैसी रहीं। एक यूज़र ने लिखा, "क्या जबरदस्त बदला लिया! ऐसे लोगों को सबक सिखाना ही चाहिए।" (Well done you!) एक और प्रतिक्रिया थी, "नियमों का पालन करना इतना मुश्किल भी नहीं, फिर भी कुछ लोग खुद को राजा समझते हैं!"
भारतीय नज़रिए से सोचें तो ये वैसा ही है, जैसे किसी शादी में मेहमान अपनी प्लेटें लाकर पंगत में बैठ जाएं और फिर पूछें—"भैया, हमारी थाली कहाँ गई?" ऐसे में कभी-कभी थोड़ी 'प्यारी बदलेबाज़ी' (petty revenge) ज़रूरी हो जाती है।
कुछ ने तो ये भी सुझाव दिया, "भाई, कोट-कपड़े सब कूड़ेदान में डाल देते, और कहते—'वहाँ देख लो, शायद कचरे में मिल जाए!' " किसी ने लिखा, "ऐसे मौके पर स्टाफ का आनंद देखना लाजवाब रहा होगा!"
भारतीय संदर्भ में: नियम तोड़ने वालों को सबक ज़रूरी
हमारे यहाँ भी चाहे ऑफिस हो या कॉलेज, कुछ लोग नियमों को हल्के में लेते हैं। कभी-कभी तो छोटे-छोटे नियम तोड़ना उन्हें 'हीरो' जैसा महसूस कराता है। लेकिन जब ऐसे हीरो अपने ही जाल में फँस जाएँ, तो मज़ा ही कुछ और है!
इस घटना से एक सीख मिलती है—नियम सबके लिए हैं; और जब आप बार-बार बेशर्मी दिखाएँगे, तो कोई न कोई मैनेजर आपके लिए 'खास इंतज़ाम' ज़रूर करेगा! आखिर, "जैसी करनी, वैसी भरनी" का फल सबको मिलता है।
आपकी राय क्या है?
क्या आपने कभी किसी को नियम तोड़ते हुए रंगेहाथ पकड़ा है? या कभी किसी ने आपको ऐसे मज़ेदार तरीके से सबक सिखाया? नीचे कमेंट में अपना अनुभव ज़रूर साझा करें! और हाँ, अगली बार बार या पार्टी में जाएँ, तो अपनी बोतल घर पर ही छोड़िए—वरना कहीं आपकी बोतल भी 'गायब' न हो जाए!
मूल रेडिट पोस्ट: Bring your own drinks into the bar? Oh no they seem to have gone missing!