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जनरेशन Z बना ऑफिस का नया IT एक्सपर्ट – जब बेसिक कंप्यूटर ज्ञान ने सबको चौंका दिया

जनरेशन ज़ेड तकनीकी सहायता की समस्याओं को हल करते हुए एक व्यस्त कार्यालय के सिनेमाई पृष्ठभूमि में।
इस सिनेमाई दृश्य में, एक युवा पेशेवर जनरेशन ज़ेड से अचानक तकनीकी सहायता की भूमिका में आ जाता है, अपने सहयोगियों को एक आंतरिक ऐप से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में मदद करते हुए। उनकी यात्रा कार्यस्थल में तकनीकी विशेषज्ञ बनने की चुनौतियों और आश्चर्यजनक पहलुओं को उजागर करती है।

ऑफिस में हर किसी को लगता है कि कंप्यूटर चलाना कोई बड़ी बात नहीं। लेकिन जब वही कंप्यूटर दो मिनट में नखरे दिखाने लगे, तो अक्सर सबकी हालत पतली हो जाती है। हमारी कहानी भी कुछ ऐसी ही है – जहाँ जनरेशन Z का एक युवा, जो खुद को IT एक्सपर्ट नहीं मानता, अचानक पूरे ऑफिस का इकलौता ‘टेक्निकल बाबा’ बन जाता है।

सोचिए, आप बस अपने काम से काम रखते हैं, और अचानक सब लोग आपके पास अपने कंप्यूटर के दुखड़े लेकर आ जाते हैं। कोई कहता है – “ये ऐप खुल ही नहीं रहा!”, तो कोई पूछता है – “डाटा गायब हो गया, अब क्या करें?” और जब आप देखते हैं कि पूरा ऑफिस एक ही ऐप को बार-बार डाउनलोड और इंस्टॉल कर रहा है, तो सिर पकड़ना तो बनता है!

जब हर दिन ऐप इंस्टॉल करना बना ऑफिस का ‘रिवाज’

कहानी Reddit यूज़र u/Gullible_Umpire_3893 की है, जो एक साधारण कंपनी में काम करते हैं। कंपनी का एक आंतरिक ऐप है – जिसे एक बार इंस्टॉल करना है, और फिर रोज़ काम में लाना है। पर यहाँ तो आधा स्टाफ रोज़ उसी .exe फाइल को डाउनलोड करता, इंस्टॉलर चलाता, फिर से ऐप इंस्टॉल करता – और यह सिलसिला चलता ही रहता।

ये देखकर तो खुद लेखक की भी हंसी छूट गई – “मुझे लगा था, एक बार इंस्टॉल करो, फिर डेस्कटॉप से खोलो। लेकिन यहाँ तो लोग हर रोज़ नए सिर से शादी रचाते हैं!” जब उन्होंने समझाया कि ऐसा करने की ज़रूरत नहीं, तो हर कोई ऐसे देख रहा था जैसे उन्होंने आग जलाना सिखा दिया हो।

एक मज़ेदार कमेंट में किसी ने लिखा, “भाई, आपने तो जैसे इंसानों को दो पैरों पर चलना सिखा दिया!”
दूसरे ने तंज कसा – “हमने सालों तक कंप्यूटर साइंस नहीं पढ़ी, बस ये सीखा है कि क्या गड़बड़ हो तो Google बाबा से पूछो।”
किसी ने तो कहा, “ऑफिस में हर कोई बस वही नुस्खा चाहता है – ये बटन दबाओ, सब ठीक हो जाएगा। असल में क्यों होता है, समझना किसी को नहीं।”

टेक्नोलॉजी की पूजा: मशीन का ‘संस्कार’ और कंप्यूटर का ‘कर्मकांड’

इस पूरे मामले पर एक कमेंट में बड़ी शानदार बात कही गई – “लोग कंप्यूटर को मशीन नहीं, कोई देवी-देवता मानते हैं। रोज़ वही कर्मकांड दोहराते हैं – इंस्टॉलर डाउनलोड करो, सेटअप चलाओ, तभी सॉफ्टवेयर खुलेगा। जैसे कोई पूजा-पाठ के बिना भगवान नहीं मिलते!”

यह परेशानी सिर्फ उम्रदराज़ लोगों में नहीं, कई युवा कर्मचारी भी बस यही फॉर्मूला रट लेते हैं – हर बार वही ईमेल निकालो जिसमें स्टेप्स लिखे हैं, और एक-एक स्टेप फॉलो करो। किसी ने कमेंट किया, “आपको जानकर हैरानी होगी, कई लोग स्क्रीन पर दिख रहे एरर मैसेज को भी पढ़ते नहीं, बस फौरन मदद मांग लेते हैं।”

किसी पुराने टेक-सपोर्ट एक्सपर्ट ने लिखा, “30 साल से देख रहा हूँ – टेक्नोलॉजी कितनी भी बढ़ जाए, लोगों की बेसिक समझ वहीं की वहीं है। नए-पुराने, सबमें यही आलस्य है – खुद से कोशिश करने की बजाय बस किसी को बुला लो।”

जेनरेशन गैप या टेक्निकल आलस्य?

कई लोगों ने इस पर चर्चा की कि आजकल के युवा भी कंप्यूटर के बेसिक कॉन्सेप्ट्स नहीं जानते।
एक ने शेयर किया, “कॉलेज के नए बच्चों में से 70% Word फाइल को किसी खास फोल्डर में सेव करना तक नहीं जानते!”
दूसरे ने कहा, “अब तो सब कुछ ऑटोसेव हो जाता है, इसलिए खुद से सेव करना भी भूल गए हैं।”
मजेदार बात – एक एक्सपर्ट ने अपनी मां की कहानी सुनाई, “मुझे हर बार उन्हें समझाना पड़ता है कि PDF फाइल एडिट नहीं होती!”

एक और कमेंट था – “आजकल के लोग फाइल सिस्टम ही नहीं समझते। सबकुछ डाउनलोड फोल्डर में पड़ा रहता है, कोई फोल्डर ऑर्गनाइज़ करना नहीं जानता।”

ऑफिस में ‘आईटी एक्सपर्ट’ बनने की मजबूरी – और कुछ मीठे-तीखे अनुभव

जहाँ एक ओर लोग ‘टेक्निकल बाबा’ की पूजा कर रहे हैं, वहीं किसी ने सलाह दी – “जब तक टिकटिंग सिस्टम नहीं बनता, हर मदद के बाद ‘नो टिकट’ बोल दो, जैसे इंडियाना जोन्स फिल्म में था!”
किसी ने कहा, “अब तो AC भी सही करवाना पड़ेगा, क्योंकि आप तो ऑफिस के ‘सबकुछ सुधारक’ बन गए!”

एक एक्सपर्ट ने तो सलाह दी, “इन्हें एक बार फिशिंग ईमेल भेज दो, पता चल जाएगा कौन कितना समझदार है।”

Reddit पर कम्युनिटी की राय ये थी – “तकनीकी जानकारी होना अब भी दुर्लभ है। जो थोड़ा बहुत भी सिस्टम समझ गया, वही ऑफिस का आईटी हेड बन जाता है।”
और एक कमेंट में बड़ा प्यारा संदेश था – “आईटी वाले बिल्ली जैसे होते हैं – कभी प्यारे, कभी खड़ूस। लेकिन अगर आप क्यूट बने रहेंगे, तो सबका प्यार मिलेगा!”

निष्कर्ष: क्या हम सब अंदर से थोड़े ‘टेक्निकल आलसी’ हैं?

कहानी पढ़कर लगता है – चाहे कितनी भी टेक्नोलॉजी आ जाए, अगर इंसान खुद से सीखने की कोशिश न करे, तो बार-बार वही ग़लती दोहराता रहेगा।
जनरेशन Z के हमारे नायक ने दिखा दिया – थोड़ी सी जिज्ञासा और बेसिक समझ आपको ऑफिस का हीरो बना सकती है।
तो अगली बार जब कोई कंप्यूटर पर अटक जाए, तो उसे एक बार खुद से सोचने दीजिए – शायद वो भी अगला ‘टेक्निकल बाबा’ बन जाए!

आपके ऑफिस में भी ऐसे किस्से होते हैं? नीचे कमेंट में जरूर बताइए – और हाँ, अगली बार कोई .exe फाइल बार-बार डाउनलोड करे, तो मुस्कुरा कर समझा दीजिए – “भाई, एक बार काफी है!”


मूल रेडिट पोस्ट: I’m not tech support (just Gen Z), but apparently I am now