छोटी सी बदला-कहानी: डॉजबॉल के मैदान में नमक-मिर्च वाला बदला
बचपन की गर्मी की छुट्टियाँ... वो दिन जब खेल के मैदान में जितना पसीना बहता था, उतनी ही शरारतें भी होती थीं। स्कूल के बोरिंग क्लासरूम से बाहर निकलकर जब बच्चे खेल-कूद के कैम्प में इकट्ठा होते हैं तो दोस्तों के साथ-साथ कुछ 'दुश्मनियां' भी जन्म ले लेती हैं। ऐसी ही एक मज़ेदार और हल्की-फुल्की बदला-गाथा Reddit पर वायरल हो रही है, जिसे पढ़कर आप भी अपने बचपन के किस्से याद करने लगेंगे।
बचपन के खेल और तानों की तासीर
हमारे देश में भी गली-मोहल्ले की क्रिकेट, कबड्डी या पिट्ठू के खेल में हारने पर ताने सुनना तो आम बात है। Reddit यूज़र u/Embarrassed_Bid_331 ने अपनी तीसरी-चौथी क्लास की गर्मी की छुट्टियों का एक ऐसा ही किस्सा सुनाया है। कैम्प में रोज़-रोज़ खेलते हुए, जब भी वे कोई बॉल मिस कर देते या गोल नहीं कर पाते, एक लड़की हमेशा उनका मज़ाक उड़ाती – “हा हा! फिर से चूक गया!” अब भला, किसे अच्छा लगता है बार-बार नाकामी पर नमक छिड़कना?
जब सब्र का बाँध टूटा: एक झटके में हिसाब बराबर
जैसे हमारे यहाँ कहते हैं, "अति हर चीज़ की बुरी होती है।" एक दिन तो उनके सब्र का बाँध टूट गया। उन्होंने तय कर लिया – ‘अब तो इस लड़की को सबक सिखाना ही है!’ मौका आया, डॉजबॉल हाथ में थी, और गुस्सा सिर पर। उन्होंने पूरी ताकत से बॉल सीधे लड़की के चेहरे पर दे मारी। न केवल दर्द हुआ, बल्कि उसकी ऐनक भी टूट गई। मज़ेदार बात ये कि किसी ने उन्हें रंगे हाथों पकड़ा ही नहीं!
सामूहिक माफी और दिल में छुपी तसल्ली
अब सोचिए, लड़की रो रही थी, ऐनक टूटी पड़ी थी। इंस्ट्रक्टर आए, सब बच्चों को खेल रोककर लड़की से हाई-फाइव करने और माफी माँगने को कहा। लेकिन हमारे नायक, अंदर ही अंदर तसल्ली से मुस्कुरा रहे थे – "मुझे कोई पछतावा नहीं!" Reddit कम्युनिटी में एक कमेंट था, “अब वो लड़की हँस नहीं रही होगी, है ना?” किसी और ने लिखा, “डॉजबॉल ने उसे असली में जमीन पर ला दिया!”
एक और यूज़र बोले, “कभी-कभी ये छोटा सा बदला दिल को बड़ी राहत दे जाता है, खासकर जब पानी सिर से ऊपर चला जाए।” वही बात, बचपन में कभी-कभी सब्र टूट जाना आम है – कोई-कोई तो कहता है, "बचपन में सबका कहीं न कहीं 'सुपरविलन मोमेंट' होता ही है!"
क्या बदला लेने से सच में सब बदल जाता है?
कई लोगों ने ये भी पूछा कि क्या उस दिन के बाद लड़की ने फिर से मज़ाक उड़ाना बंद कर दिया? OP (कहानी सुनाने वाले) ने जवाब दिया – “मुझे याद नहीं कि उसके बाद उसने कभी ऐसा किया हो।” लगता है, डॉजबॉल वाले झटके ने उसे भी सीख दे दी – “भैया, हर किसी की सहनशीलता की सीमा होती है!”
वैसे, कुछ ने ये भी कहा कि ऐनक टूटना ज़्यादा हो गया, क्योंकि चश्मा पहनने वालों के लिए ये बहुत बड़ा डर होता है। हमारे समाज में भी चश्मा टूट जाए तो घरवाले से ले कर मोहल्ले तक सबकी डाँट पड़ती है। लेकिन, जैसा कि एक कमेंट में था – “कभी-कभी गुस्सा ऐसे ही बाहर आ जाता है, और बचपन में तो ये ‘सीखने’ का हिस्सा है।”
खेल, ताने और छोटी-छोटी दुश्मनियों का अपना मज़ा
हम सबने बचपन में किसी न किसी को तंग किया होगा, या खुद तंग हुए होंगे। कभी-कभी तो दोस्ती और दुश्मनी की लाइनें बहुत पतली होती हैं – आज की दुश्मनी कल की दोस्ती में बदल जाती है। Reddit के एक कमेंट ने बड़ी अच्छी बात लिखी, “भैया, डॉजबॉल तो वैसे भी टक्कर वाला खेल है!” और एक और – “अगर सिर पर बॉल लगी तो आप खुद आउट हो जाते!”
ये सारी बातें सुनकर लगता है कि चाहे अमेरिका हो या भारत, बचपन की शरारतें और बदले की छोटी-छोटी कहानियाँ हर जगह एक जैसी हैं। फर्क बस इतना है कि हमारे यहाँ शायद ‘डॉजबॉल’ की जगह गिल्ली-डंडा या क्रिकेट में बल्ले से बॉल मारने की घटनाएँ होंगी!
निष्कर्ष: आपकी बचपन की बदला-कहानियाँ क्या हैं?
कहानी सुनाने वाले ने खुद कहा कि वो कभी बदले की भावना रखने वाले इंसान नहीं रहे, लेकिन उस एक पल में सब्र का बाँध टूट गया। यही तो है बचपन की मासूमियत – कभी-कभी छोटी-छोटी बातों में भी बड़ा सुकून छुपा होता है।
क्या आपके साथ भी कुछ ऐसा हुआ है जब किसी ने बार-बार तंग किया और एक दिन आपने भी उसे उसकी ही भाषा में जवाब दे दिया? या फिर आपको बचपन की कोई ऐसी शरारत याद है, जिसे आज सोचकर मुस्कान आ जाती है? अपनी मज़ेदार कहानियाँ नीचे कमेंट में जरूर शेयर कीजिए – देखिए, किसका बदला ज्यादा फिल्मी था!
बचपन की इन छोटी-छोटी बदला-कहानियों में ही तो जिंदगी का असली स्वाद छुपा है – कभी हँसी, कभी आँसू, और कभी-कभी एक सीधा-साधा ‘डॉजबॉल’... चेहरे पर!
मूल रेडिट पोस्ट: Right In The Face